Difference between revisions of "तबरी"

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Adding category Category:इतिहासकार (को हटा दिया गया हैं।))
m (Adding category Category:विदेशी (को हटा दिया गया हैं।))
 
(10 intermediate revisions by 3 users not shown)
Line 1: Line 1:
*'''तबरी''' अथवा '''टबरी''' (अबू जाफ़र मुहम्मद इब्न, जरी उत तबरी) एक महान [[अरब]] इतिहासकार और [[इस्लाम धर्म]] शास्त्री था।
+
'''तबरी''' अथवा '''टबरी''' (अबू जाफ़र मुहम्मद इब्न, जरी उत तबरी) एक महान् [[अरब]] इतिहासकार और [[इस्लाम धर्म]] शास्त्री था।
*सम्भवत: 838-839 ई० में तबरिस्तान क्षेत्र के आमुल नामक स्थान पर उसका जन्म हुआ था।
+
*सम्भवत: 838-839 ई. में तबरिस्तान क्षेत्र के आमुल नामक स्थान पर उसका जन्म हुआ था।
 
*संपन्न परिवार में जन्म, कुशाग्रबुद्धि और मेघावी होने के कारण बचपन से ही वह अत्यन्त होनहार दिखाई पड़ता था।
 
*संपन्न परिवार में जन्म, कुशाग्रबुद्धि और मेघावी होने के कारण बचपन से ही वह अत्यन्त होनहार दिखाई पड़ता था।
 
*कहते हैं कि सात वर्ष की अवस्था में ही संपूर्ण [[क़ुरान]] तबरी को कंठस्थ हो गया।
 
*कहते हैं कि सात वर्ष की अवस्था में ही संपूर्ण [[क़ुरान]] तबरी को कंठस्थ हो गया।
*अपने नगर में रहकर तो तबरी ने बहुमूल्य शिक्षा पाई ही, उस समय के इस्लाम जगत के अन्य सभी प्रसिद्ध विद्याकेंद्रों में भी वह गया और अनेक प्रसिद्ध विद्वानों से विद्या ग्रहण की।
+
*अपने नगर में रहकर तो तबरी ने बहुमूल्य शिक्षा पाई ही, उस समय के इस्लाम जगत् के अन्य सभी प्रसिद्ध विद्याकेंद्रों में भी वह गया और अनेक प्रसिद्ध विद्वानों से विद्या ग्रहण की।
*बसरा, बगदाद, कूफ और [[मिस्र]] की उसने अनेक बार यात्राएँ की थीं।
+
*[[बसरा]], [[बगदाद]], कूफ और [[मिस्र]] की उसने अनेक बार यात्राएँ की थीं।
 
*दूसरी बार मिस्र जाते हुए सीरिया में उसने हदीस का अध्यन किया और शीघ्र ही उन क्षेत्रों में वह एक प्रकाण्ड के रूप में गिना जाने लगा।
 
*दूसरी बार मिस्र जाते हुए सीरिया में उसने हदीस का अध्यन किया और शीघ्र ही उन क्षेत्रों में वह एक प्रकाण्ड के रूप में गिना जाने लगा।
*तबरी की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि, वह विद्वान होने के साथ-साथ अत्यंत चरित्रवान् भी था।
+
*तबरी की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि, वह विद्वान् होने के साथ-साथ अत्यंत चरित्रवान् भी था।
 
*राज्य की ओर से अर्थिक लाभ वाले कई सम्मानजनक पदों को स्वीकृत करने के लिये उससे आग्रह किए गए, किंतु किसी भी प्रलोभन में न पड़कर उसने पढ़ने-पढ़ाने और साहित्यिक सेवा में ही अपना जीवन बिताया।
 
*राज्य की ओर से अर्थिक लाभ वाले कई सम्मानजनक पदों को स्वीकृत करने के लिये उससे आग्रह किए गए, किंतु किसी भी प्रलोभन में न पड़कर उसने पढ़ने-पढ़ाने और साहित्यिक सेवा में ही अपना जीवन बिताया।
 
*यद्यपि कोई भी विषय, [[इतिहास]], क़ुरान का पाठ और उसकी व्याख्या, काव्य-रचना, व्याकरण और शब्दकोष, नीतिशास्त्र, गणित और भैषज्य जैसे विष्य उससे अछूते नहीं रहे, लेकिन फिर भी तबरी मुख्यत: इतिहास और इस्लामी धर्मशास्त्र के ज्ञाता और लेखक के रूप में ही सर्वाधिक प्रसिद्ध है।
 
*यद्यपि कोई भी विषय, [[इतिहास]], क़ुरान का पाठ और उसकी व्याख्या, काव्य-रचना, व्याकरण और शब्दकोष, नीतिशास्त्र, गणित और भैषज्य जैसे विष्य उससे अछूते नहीं रहे, लेकिन फिर भी तबरी मुख्यत: इतिहास और इस्लामी धर्मशास्त्र के ज्ञाता और लेखक के रूप में ही सर्वाधिक प्रसिद्ध है।
*उसकी प्रमुख रचना 'तारीख़ अल रसूल वल-मुलूक' नामक विश्व का इतिहास है, जो ३० हज़ार [[काग़ज़]] की तख्तियों पर लिखा गया है।
+
*उसकी प्रमुख रचना 'तारीख़ अल रसूल वल-मुलूक' नामक विश्व का इतिहास है, जो 30 हज़ार [[काग़ज़]] की तख्तियों पर लिखा गया है।
 
*अनुश्रुतियों, दंत-कथाओं और बूढे लोगों से सुनी हुई कहानियों के आधार पर लिखे गए [[अरब]] इतिहास के इस महोदधि को छान सकना किसी भी एक व्यक्ति के लिये दुष्कर कार्य है।
 
*अनुश्रुतियों, दंत-कथाओं और बूढे लोगों से सुनी हुई कहानियों के आधार पर लिखे गए [[अरब]] इतिहास के इस महोदधि को छान सकना किसी भी एक व्यक्ति के लिये दुष्कर कार्य है।
 
*तबरी के जीवनकाल के थोड़े ही समय पश्चात्‌ [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] में उसका अनुवाद हुआ था और उस अनुवाद का पुन: तुर्की भाषा में भी अनुवाद हुआ।
 
*तबरी के जीवनकाल के थोड़े ही समय पश्चात्‌ [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] में उसका अनुवाद हुआ था और उस अनुवाद का पुन: तुर्की भाषा में भी अनुवाद हुआ।
*इस तारीख़ के अतिरिक्त उसने 'जामी अल‌-बयान की तफसीर अल-कुरान' पर एक टीका भी लिखी थी, जिसे संक्षेप में 'तफसीर' कहा जाता है।
+
*इस तारीख़ के अतिरिक्त उसने 'जामी अल‌-बयान की तफसीर अल-क़ुरान' पर एक टीका भी लिखी थी, जिसे संक्षेप में 'तफसीर' कहा जाता है।
*लगभग 75 वर्षों की अवस्था तक साहित्यसर्जन करते हुए तबरी ने 923 ई० में शरीर त्याग दिया था।
+
*लगभग 75 वर्षों की अवस्था तक साहित्यसर्जन करते हुए तबरी ने 923 ई. में शरीर त्याग दिया था।
  
{{प्रचार}}
 
 
{{लेख प्रगति
 
{{लेख प्रगति
 
|आधार=
 
|आधार=
Line 27: Line 26:
 
{{विदेशी यात्री}}
 
{{विदेशी यात्री}}
 
[[Category:इतिहास कोश]]
 
[[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:विदेशी यात्री]]
+
[[Category:विदेशी यात्री]][[Category:चरित कोश]]
 
[[Category:पूर्व मध्य काल]]
 
[[Category:पूर्व मध्य काल]]
[[Category:इस्लाम धर्म कोश]]
+
[[Category:इस्लाम धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]]
 
[[Category:इतिहासकार]]
 
[[Category:इतिहासकार]]
 +
[[Category:विदेशी]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__

Latest revision as of 05:03, 7 January 2020

tabari athava tabari (aboo jafar muhammad ibn, jari ut tabari) ek mahanh arab itihasakar aur islam dharm shastri tha.

  • sambhavat: 838-839 ee. mean tabaristan kshetr ke amul namak sthan par usaka janm hua tha.
  • sanpann parivar mean janm, kushagrabuddhi aur meghavi hone ke karan bachapan se hi vah atyant honahar dikhaee p data tha.
  • kahate haian ki sat varsh ki avastha mean hi sanpoorn quran tabari ko kanthasth ho gaya.
  • apane nagar mean rahakar to tabari ne bahumooly shiksha paee hi, us samay ke islam jagath ke any sabhi prasiddh vidyakeandroan mean bhi vah gaya aur anek prasiddh vidvanoan se vidya grahan ki.
  • basara, bagadad, kooph aur misr ki usane anek bar yatraean ki thian.
  • doosari bar misr jate hue siriya mean usane hadis ka adhyan kiya aur shighr hi un kshetroan mean vah ek prakand ke roop mean gina jane laga.
  • tabari ki sabase b di visheshata yah thi ki, vah vidvanh hone ke sath-sath atyant charitravanh bhi tha.
  • rajy ki or se arthik labh vale kee sammanajanak padoan ko svikrit karane ke liye usase agrah kie ge, kiantu kisi bhi pralobhan mean n p dakar usane padhane-padhane aur sahityik seva mean hi apana jivan bitaya.
  • yadyapi koee bhi vishay, itihas, quran ka path aur usaki vyakhya, kavy-rachana, vyakaran aur shabdakosh, nitishastr, ganit aur bhaishajy jaise vishy usase achhoote nahian rahe, lekin phir bhi tabari mukhyat: itihas aur islami dharmashastr ke jnata aur lekhak ke roop mean hi sarvadhik prasiddh hai.
  • usaki pramukh rachana 'tarikh al rasool val-mulook' namak vishv ka itihas hai, jo 30 hazar kagaz ki takhtiyoan par likha gaya hai.
  • anushrutiyoan, dant-kathaoan aur boodhe logoan se suni huee kahaniyoan ke adhar par likhe ge arab itihas ke is mahodadhi ko chhan sakana kisi bhi ek vyakti ke liye dushkar kary hai.
  • tabari ke jivanakal ke tho de hi samay pashchath‌ farasi mean usaka anuvad hua tha aur us anuvad ka pun: turki bhasha mean bhi anuvad hua.
  • is tarikh ke atirikt usane 'jami al‌-bayan ki taphasir al-quran' par ek tika bhi likhi thi, jise sankshep mean 'taphasir' kaha jata hai.
  • lagabhag 75 varshoan ki avastha tak sahityasarjan karate hue tabari ne 923 ee. mean sharir tyag diya tha.


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

sanbandhit lekh