Difference between revisions of "पुलकेशी द्वितीय"

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[[पुलकेशी प्रथम]] का पौत्र तथा [[चालुक्य वंश]] का चौथा राजा था, जिसने 609-42 ई0 तक राज्य किया। वह महाराजाधिराज हर्षवर्धन का समसामयिक तथा प्रतिद्वन्द्वी था। उसने 620 ई0 में दक्षिण पर हर्ष का आक्रमण विफल कर दिया। वह महान् योद्धा था और उसने [[गुजरात]], राजपूताना तथा [[मालवा]] को विजय किया। उसने [[कृष्णा नदी|कृष्णा]] और [[गोदावरी नदी|गोदावरी]] नदियों के बीच स्थित वेंगि का राज्य जीता और अपने भाई कुब्ज विष्णुवर्धन को वहाँ अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया। उसने दक्षिण [[भारत]] के चोल, पांड्य तथा [[केरल]] राज्यों को अपने अधीन कर लिया, पल्लव राजाओं से भी दीर्घकाल तक युद्ध किया और लगभग 609 ई0 में राजा महेन्द्रवर्मा को परास्त कर दिया। उसकी कीर्ति सुदूरवर्ती फ़ारस देश तक पहुँच गयी थी। फ़ारस के शाह ख़ुसरो द्वितीय ने 625-26 ई0 में पुलकेशी द्वितीय के द्वारा भेजे गये दूतमंडल से भेंट की थी। इसके बदले में उसने भी अपना दूतमंडल पुलकेशी द्वितीय की सेवा में भेजा। अजंता की गुफा संख्या 1 में एक भित्तिचित्र में फ़ारस के दूतमंडल को पुलकेशी द्वितीय के सम्मुख अपना परिचय पत्र प्रस्तुत करते हुए दिखाया गया है। चीनी यात्री [[ह्वेन त्सांग|ह्यु-एन-त्सांग]] 641 ई0 में उसके राज्य में आया था और उसके राज्य का भ्रमण किया था। उसने पुलकेशी द्वितीय के शौर्य और उसके सामंतों की स्वामिभक्ति की प्रशंसा की है। किन्तु 642 ई0 में इस शक्तिशाली राजा को पल्लव राजा नरसिंहवर्मा ने एक युद्ध में पराजित कर मार डाला। उसने उसकी राजधानी पर भी अधिकार कर लिया और कुछ समय के लिए उसके वंश का उच्छेद कर दिया।
 
[[पुलकेशी प्रथम]] का पौत्र तथा [[चालुक्य वंश]] का चौथा राजा था, जिसने 609-42 ई0 तक राज्य किया। वह महाराजाधिराज हर्षवर्धन का समसामयिक तथा प्रतिद्वन्द्वी था। उसने 620 ई0 में दक्षिण पर हर्ष का आक्रमण विफल कर दिया। वह महान् योद्धा था और उसने [[गुजरात]], राजपूताना तथा [[मालवा]] को विजय किया। उसने [[कृष्णा नदी|कृष्णा]] और [[गोदावरी नदी|गोदावरी]] नदियों के बीच स्थित वेंगि का राज्य जीता और अपने भाई कुब्ज विष्णुवर्धन को वहाँ अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया। उसने दक्षिण [[भारत]] के चोल, पांड्य तथा [[केरल]] राज्यों को अपने अधीन कर लिया, पल्लव राजाओं से भी दीर्घकाल तक युद्ध किया और लगभग 609 ई0 में राजा महेन्द्रवर्मा को परास्त कर दिया। उसकी कीर्ति सुदूरवर्ती फ़ारस देश तक पहुँच गयी थी। फ़ारस के शाह ख़ुसरो द्वितीय ने 625-26 ई0 में पुलकेशी द्वितीय के द्वारा भेजे गये दूतमंडल से भेंट की थी। इसके बदले में उसने भी अपना दूतमंडल पुलकेशी द्वितीय की सेवा में भेजा। अजंता की गुफा संख्या 1 में एक भित्तिचित्र में फ़ारस के दूतमंडल को पुलकेशी द्वितीय के सम्मुख अपना परिचय पत्र प्रस्तुत करते हुए दिखाया गया है। चीनी यात्री [[ह्वेन त्सांग|ह्यु-एन-त्सांग]] 641 ई0 में उसके राज्य में आया था और उसके राज्य का भ्रमण किया था। उसने पुलकेशी द्वितीय के शौर्य और उसके सामंतों की स्वामिभक्ति की प्रशंसा की है। किन्तु 642 ई0 में इस शक्तिशाली राजा को पल्लव राजा नरसिंहवर्मा ने एक युद्ध में पराजित कर मार डाला। उसने उसकी राजधानी पर भी अधिकार कर लिया और कुछ समय के लिए उसके वंश का उच्छेद कर दिया।
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Revision as of 10:01, 22 May 2010

pulakeshi pratham ka pautr tatha chaluky vansh ka chautha raja tha, jisane 609-42 ee0 tak rajy kiya. vah maharajadhiraj harshavardhan ka samasamayik tatha pratidvandvi tha. usane 620 ee0 mean dakshin par harsh ka akraman viphal kar diya. vah mahanh yoddha tha aur usane gujarat, rajapootana tatha malava ko vijay kiya. usane krishnaa aur godavari nadiyoan ke bich sthit veangi ka rajy jita aur apane bhaee kubj vishnuvardhan ko vahaan apana pratinidhi niyukt kiya. usane dakshin bharat ke chol, paandy tatha keral rajyoan ko apane adhin kar liya, pallav rajaoan se bhi dirghakal tak yuddh kiya aur lagabhag 609 ee0 mean raja mahendravarma ko parast kar diya. usaki kirti sudooravarti faras desh tak pahuanch gayi thi. faras ke shah khusaro dvitiy ne 625-26 ee0 mean pulakeshi dvitiy ke dvara bheje gaye dootamandal se bheant ki thi. isake badale mean usane bhi apana dootamandal pulakeshi dvitiy ki seva mean bheja. ajanta ki gupha sankhya 1 mean ek bhittichitr mean faras ke dootamandal ko pulakeshi dvitiy ke sammukh apana parichay patr prastut karate hue dikhaya gaya hai. chini yatri hyu-en-tsaang 641 ee0 mean usake rajy mean aya tha aur usake rajy ka bhraman kiya tha. usane pulakeshi dvitiy ke shaury aur usake samantoan ki svamibhakti ki prashansa ki hai. kintu 642 ee0 mean is shaktishali raja ko pallav raja narasianhavarma ne ek yuddh mean parajit kar mar dala. usane usaki rajadhani par bhi adhikar kar liya aur kuchh samay ke lie usake vansh ka uchchhed kar diya.