Difference between revisions of "शेरशाह सूरी"

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[[चित्र:Shershah-Suri.jpg|शेरशाह सूरी<br /> Shershah Suri|thumb|250px]]
[[मथुरा]] शेरशाह सूरी मार्ग पर ही स्थित है। जो शेरशाह ने बनवाया था। यह मार्ग उस समय 'सड़क-ए-आज़म' कहलाता था। बंगाल से पेशावर तक की यह सड़क 500 कोस (शुद्ध= 'क्रोश') या 2500 किलो मीटर लम्बी थी।
 
 
शेरशाह सूरी का नाम फरीद खाँ था। वह वैजवाड़ा (होशियारपुर 1472 ई.) में अपने पिता हसन की अफगान पत्‍नी से उत्पन्न था। उसका पिता हसन बिहार के सासाराम का जमींदार था।
 
शेरशाह सूरी का नाम फरीद खाँ था। वह वैजवाड़ा (होशियारपुर 1472 ई.) में अपने पिता हसन की अफगान पत्‍नी से उत्पन्न था। उसका पिता हसन बिहार के सासाराम का जमींदार था।
[[हुमायूँ]] को हराने वाला शेर खाँ 'सूर' नाम के कबीले का पठान सरदार था। वह 'शेरशाह' के नाम से बादशाह हुआ। उसने [[आगरा]] को राजधानी बनाया था। [[दिल्ली]] के सुल्तानों की हिन्दू विरोधी नीति के खिलाफ़ उसने हिन्दूओं से मित्रता की नीति अपनायी। जिससे उसे अपनी शासन व्यवस्था सृदृढ़ करने में सहायता मिली। उसका दीवान और सेनापति एक हिन्दू सरदार था, जिसका नाम [[हेमू]] (हेमचंद्र)था। उसकी सेना में हिन्दू वीरों की संख्या बहुत थी। उसने अपने राज्य में शांति कर जनता को सुखी और समृद्ध बनाने के प्रयास किये। उसने यात्रियों और व्यापारियों की सुरक्षा का प्रबंध किया। लगान और मालगुजारी वसूल करने की संतोषजनक व्यवस्था की। वह पहला बादशाह था, जिसने बंगाल के सोनागाँव से सिंध नदी तक दो हजार मील लंबी पक्की सड़क बनवाई थी। उस सड़क पर घुड़सवारों द्वारा डाक लाने−ले−जाने की व्यवस्था थी। उसके फरमान फारसी के साथ नागरी अक्षरों में भी होते थे।
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[[हुमायूँ]] को हराने वाला शेर खाँ 'सूर' नाम के कबीले का पठान सरदार था। वह 'शेरशाह' के नाम से बादशाह हुआ। उसने [[आगरा]] को राजधानी बनाया था। [[दिल्ली]] के सुल्तानों की हिन्दू विरोधी नीति के खिलाफ़ उसने हिन्दूओं से मित्रता की नीति अपनायी। जिससे उसे अपनी शासन व्यवस्था सृदृढ़ करने में सहायता मिली। उसका दीवान और सेनापति एक हिन्दू सरदार था, जिसका नाम [[हेमू]] (हेमचंद्र)था। उसकी सेना में हिन्दू वीरों की संख्या बहुत थी। उसने अपने राज्य में शांति कर जनता को सुखी और समृद्ध बनाने के प्रयास किये। उसने यात्रियों और व्यापारियों की सुरक्षा का प्रबंध किया। लगान और मालगुजारी वसूल करने की संतोषजनक व्यवस्था की। शेरशाह सूरी के फ़रमान फ़ारसी के साथ नागरी अक्षरों में भी होते थे। वह पहला बादशाह था, जिसने बंगाल के सोनागाँव से सिंध नदी तक दो हजार मील लंबी पक्की सड़क बनवाई थी। उस सड़क पर घुड़सवारों द्वारा डाक लाने−ले−जाने की व्यवस्था थी। यह मार्ग उस समय 'सड़क--आज़म' कहलाता था। बंगाल से पेशावर तक की यह सड़क 500 कोस (शुद्ध= 'क्रोश') या 2500 किलो मीटर लम्बी थी।
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मलिकमुहम्मद जायसी, फरिश्ता और बदाँयूनी ने शेरशाह के शासन की बड़ी प्रशंसा की है। '''बदाँयूनी''' ने लिखा है-
 
  
बंगाल से पंजाब तक, तथा आगरा से मालवा तक, सड़क पर दोनों ओर छाया के लिए फल वाले वृक्ष लगाये गये थे। कोस−कोस पर एक सराय, एक मस्जिद और कुँए का निर्माण किया था। मस्जिद में एक इनाम और अजान देने वाला एक मुल्ला था। निर्धन यात्रियों का भोजन बनाने के लिए एक हिन्दू और मुसलमान नौकर था। 'प्रबंध की यह व्यवस्था थी कि बिल्कुल अशक्त बुड्ढ़ा अशर्फियों का थाल हाथ पर लिये चला जाय और जहाँ चाहे वहाँ पड़ा रहे। चोर या लुटेरे की मजाल नहीं कि आँख भर कर उसकी ओर देख सके'।  
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<blockquote>मलिकमुहम्मद जायसी, फरिश्ता और बदाँयूनी ने शेरशाह के शासन की बड़ी प्रशंसा की है। '''बदाँयूनी''' ने लिखा है-
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बंगाल से पंजाब तक, तथा आगरा से मालवा तक, सड़क पर दोनों ओर छाया के लिए फल वाले वृक्ष लगाये गये थे। कोस−कोस पर एक सराय, एक मस्जिद और कुँए का निर्माण किया था। मस्जिद में एक इनाम और अजान देने वाला एक मुल्ला था। निर्धन यात्रियों का भोजन बनाने के लिए एक हिन्दू और मुसलमान नौकर था। 'प्रबंध की यह व्यवस्था थी कि बिल्कुल अशक्त बुड्ढ़ा अशर्फियों का थाल हाथ पर लिये चला जाय और जहाँ चाहे वहाँ पड़ा रहे। चोर या लुटेरे की मजाल नहीं कि आँख भर कर उसकी ओर देख सके'।</blockquote>
  
 
शेरशाह 5 [[वर्ष]] तक ही शासन कर सका। उस थोड़े काल में ही उसने अपनी योग्यता और प्रबंध−कुशलता का सिक्का जमा दिया था। 22 मई, सन् 1545 में कालिंजर के दुर्ग की घेराबंदी करते हुए बारूदख़ाने में आग लग जाने से उसकी अकाल मृत्यु हो गई थी।  
 
शेरशाह 5 [[वर्ष]] तक ही शासन कर सका। उस थोड़े काल में ही उसने अपनी योग्यता और प्रबंध−कुशलता का सिक्का जमा दिया था। 22 मई, सन् 1545 में कालिंजर के दुर्ग की घेराबंदी करते हुए बारूदख़ाने में आग लग जाने से उसकी अकाल मृत्यु हो गई थी।  
 
==शेरशाह सूर के निर्माण कार्य==
 
==शेरशाह सूर के निर्माण कार्य==
 
शेरशाह सूरी हुमायूँ को पराजित कर बादशाह बना। उसके निर्माण कार्यों में सड़कों, सरायों एवं मस्जिदों आदि का बनाया जाना प्रसिद्ध है। वह पहला मुस्लिम शासक था, जिसने यातायात की उत्तम व्यवस्था की और यात्रियों एवं व्यापारियों की सुरक्षा का संतोषजनक प्रबंध किया। उसने बंगाल के सोनागाँव से लेकर पंजाब में [[सिंधु नदी]] तक, आगरा से [[राजस्थान]] और [[मालवा]] तक पक्की सड़कें बनवाई थीं। सड़कों के किनारे छायादार एवं फल वाले वृक्ष लगाये गये थे, और जगह-जगह पर सराय, मस्जिद और कुओं का निर्माण कराया गया था। ब्रजमंडल के चौमुहाँ गाँव की सराय और [[छाता]] गाँव की सराय का भीतरी भाग उसी के द्वारा निर्मित हैं। दिल्ली में उसने शहर पनाह बनवाया था, जो आज वहाँ का 'लाल दरवाजा' है। दिल्ली का 'पुराना क़िला' भी उसी के द्वारा बनवाया माना जाता है।
 
शेरशाह सूरी हुमायूँ को पराजित कर बादशाह बना। उसके निर्माण कार्यों में सड़कों, सरायों एवं मस्जिदों आदि का बनाया जाना प्रसिद्ध है। वह पहला मुस्लिम शासक था, जिसने यातायात की उत्तम व्यवस्था की और यात्रियों एवं व्यापारियों की सुरक्षा का संतोषजनक प्रबंध किया। उसने बंगाल के सोनागाँव से लेकर पंजाब में [[सिंधु नदी]] तक, आगरा से [[राजस्थान]] और [[मालवा]] तक पक्की सड़कें बनवाई थीं। सड़कों के किनारे छायादार एवं फल वाले वृक्ष लगाये गये थे, और जगह-जगह पर सराय, मस्जिद और कुओं का निर्माण कराया गया था। ब्रजमंडल के चौमुहाँ गाँव की सराय और [[छाता]] गाँव की सराय का भीतरी भाग उसी के द्वारा निर्मित हैं। दिल्ली में उसने शहर पनाह बनवाया था, जो आज वहाँ का 'लाल दरवाजा' है। दिल्ली का 'पुराना क़िला' भी उसी के द्वारा बनवाया माना जाता है।
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==शेरशाह की उपाधि==
 
1539 ई. में चौसा के युद्ध में [[हुमायूँ]] को हरा शेर खाँ ने शेरशाह की उपाधि ली। 1540 ई. में शेरशाह ने हुमायूँ को दोबारा हराकर राजसिंहासन पर बैठा। शेरशाह का 10 जून, 1540 को [[आगरा]] में विधिवत राज्याभिषेक हुआ। उसके बाद 1540 ई. में लाहौर पर अधिकार कर लिया। बाद में ख्वास खाँ और हैबत खाँ ने पूरे पंजाब पर अधिकार कर लिया। फलतः शेरशाह ने भारत में पुनः द्वितीय अफगान साम्राज्य की स्थापना की। इतिहास में इसे 'सूरवंश' के नाम से जाना जाता है। सिंहासन पर बैठते समय शेरशाह 68 वर्ष का हो चुका था और 5 [[वर्ष]] तक शासन सम्भालने के बाद मई 1545 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
 
1539 ई. में चौसा के युद्ध में [[हुमायूँ]] को हरा शेर खाँ ने शेरशाह की उपाधि ली। 1540 ई. में शेरशाह ने हुमायूँ को दोबारा हराकर राजसिंहासन पर बैठा। शेरशाह का 10 जून, 1540 को [[आगरा]] में विधिवत राज्याभिषेक हुआ। उसके बाद 1540 ई. में लाहौर पर अधिकार कर लिया। बाद में ख्वास खाँ और हैबत खाँ ने पूरे पंजाब पर अधिकार कर लिया। फलतः शेरशाह ने भारत में पुनः द्वितीय अफगान साम्राज्य की स्थापना की। इतिहास में इसे 'सूरवंश' के नाम से जाना जाता है। सिंहासन पर बैठते समय शेरशाह 68 वर्ष का हो चुका था और 5 [[वर्ष]] तक शासन सम्भालने के बाद मई 1545 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
  
 
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<blockquote>श्री कालिकारंजन कानूनगो ने लिखा है :- ‘‘बचपन में उसने साहित्य का जो अध्ययन किया उसने उस सैनिक जीवन के मार्ग से उसे पृथक कर दिया जिसपर शिवाजी, हैदरअली और रणजीतसिंह जैसे निरक्षण वीर साधारण परिस्थिति से ऊंचे उठकर राजा की मर्यादा प्राप्त कर लेते हैं। भारत के इतिहास में हमें दूसरा कोई व्यक्ति नहीं मिलता जो अपने प्रारंभिक जीवन में सैनिक रहे बिना ही एक राज्य की नींव डालने में समर्थ हुआ हो।’’</blockquote>
 
    
 
    
  
 
[[Category:इतिहास कोश]]
 
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Revision as of 17:21, 31 March 2010

sherashah soori / Shershah Suri

(sanh 1540 − sanh 1545 )
sherashah soori
Shershah Suri|thumb|250px
sherashah soori ka nam pharid khaan tha. vah vaijava da (hoshiyarapur 1472 ee.) mean apane pita hasan ki aphagan path‍ni se utpann tha. usaka pita hasan bihar ke sasaram ka jamiandar tha. humayooan ko harane vala sher khaan 'soor' nam ke kabile ka pathan saradar tha. vah 'sherashah' ke nam se badashah hua. usane agara ko rajadhani banaya tha. dilli ke sultanoan ki hindoo virodhi niti ke khilaf usane hindoooan se mitrata ki niti apanayi. jisase use apani shasan vyavastha sridridh karane mean sahayata mili. usaka divan aur senapati ek hindoo saradar tha, jisaka nam hemoo (hemachandr)tha. usaki sena mean hindoo viroan ki sankhya bahut thi. usane apane rajy mean shaanti kar janata ko sukhi aur samriddh banane ke prayas kiye. usane yatriyoan aur vyapariyoan ki suraksha ka prabandh kiya. lagan aur malagujari vasool karane ki santoshajanak vyavastha ki. sherashah soori ke faraman farasi ke sath nagari aksharoan mean bhi hote the. vah pahala badashah tha, jisane bangal ke sonagaanv se siandh nadi tak do hajar mil lanbi pakki s dak banavaee thi. us s dak par ghu dasavaroan dvara dak lane−le−jane ki vyavastha thi. yah marg us samay 's dak-e-azam' kahalata tha. bangal se peshavar tak ki yah s dak 500 kos (shuddh= 'krosh') ya 2500 kilo mitar lambi thi.

malikamuhammad jayasi, pharishta aur badaanyooni ne sherashah ke shasan ki b di prashansa ki hai. badaanyooni ne likha hai- bangal se panjab tak, tatha agara se malava tak, s dak par donoan or chhaya ke lie phal vale vriksh lagaye gaye the. kos−kos par ek saray, ek masjid aur kuane ka nirman kiya tha. masjid mean ek inam aur ajan dene vala ek mulla tha. nirdhan yatriyoan ka bhojan banane ke lie ek hindoo aur musalaman naukar tha. 'prabandh ki yah vyavastha thi ki bilkul ashakt buddha asharphiyoan ka thal hath par liye chala jay aur jahaan chahe vahaan p da rahe. chor ya lutere ki majal nahian ki aankh bhar kar usaki or dekh sake'.

sherashah 5 varsh tak hi shasan kar saka. us tho de kal mean hi usane apani yogyata aur prabandh−kushalata ka sikka jama diya tha. 22 mee, sanh 1545 mean kalianjar ke durg ki gherabandi karate hue baroodakhane mean ag lag jane se usaki akal mrityu ho gee thi.

sherashah soor ke nirman kary

sherashah soori humayooan ko parajit kar badashah bana. usake nirman karyoan mean s dakoan, sarayoan evan masjidoan adi ka banaya jana prasiddh hai. vah pahala muslim shasak tha, jisane yatayat ki uttam vyavastha ki aur yatriyoan evan vyapariyoan ki suraksha ka santoshajanak prabandh kiya. usane bangal ke sonagaanv se lekar panjab mean siandhu nadi tak, agara se rajasthan aur malava tak pakki s dakean banavaee thian. s dakoan ke kinare chhayadar evan phal vale vriksh lagaye gaye the, aur jagah-jagah par saray, masjid aur kuoan ka nirman karaya gaya tha. brajamandal ke chaumuhaan gaanv ki saray aur chhata gaanv ki saray ka bhitari bhag usi ke dvara nirmit haian. dilli mean usane shahar panah banavaya tha, jo aj vahaan ka 'lal daravaja' hai. dilli ka 'purana qila' bhi usi ke dvara banavaya mana jata hai.

sherashah ki upadhi

1539 ee. mean chausa ke yuddh mean humayooan ko hara sher khaan ne sherashah ki upadhi li. 1540 ee. mean sherashah ne humayooan ko dobara harakar rajasianhasan par baitha. sherashah ka 10 joon, 1540 ko agara mean vidhivat rajyabhishek hua. usake bad 1540 ee. mean lahaur par adhikar kar liya. bad mean khvas khaan aur haibat khaan ne poore panjab par adhikar kar liya. phalatah sherashah ne bharat mean punah dvitiy aphagan samrajy ki sthapana ki. itihas mean ise 'sooravansh' ke nam se jana jata hai. sianhasan par baithate samay sherashah 68 varsh ka ho chuka tha aur 5 varsh tak shasan sambhalane ke bad mee 1545 ee. mean usaki mrityu ho gee.

shri kalikaranjan kanoonago ne likha hai :- ‘‘bachapan mean usane sahity ka jo adhyayan kiya usane us sainik jivan ke marg se use prithak kar diya jisapar shivaji, haidarali aur ranajitasianh jaise nirakshan vir sadharan paristhiti se ooanche uthakar raja ki maryada prapt kar lete haian. bharat ke itihas mean hamean doosara koee vyakti nahian milata jo apane praranbhik jivan mean sainik rahe bina hi ek rajy ki nianv dalane mean samarth hua ho.’’