अष्टादशन्‌

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अष्टादशन् (विशेषण) [अष्ट च दश च]

  • अठारह


समस्त पद-उपपुराणम् (नपुंसक लिंग) गौण या छोटे पुराण, अष्टान्युपपुराणानि मुनिभिः कवितानि तु, जथ सनत्कुमारोक्तं नारसिंहमतः परम्, तृतीयं नारदं प्रोक्तं कुमारेण तु भाषितन्, चतुर्थ शिवधर्माख्यं साक्षान्नन्दीशभाषितम्, दुर्वाससोक्तभाश्वर्य नारदोक्तमतः परम्, कापिलं मानयं चैव तथैवोशन-सरितम्, ब्रह्माण्डं वारुणं चाथ कातिकाइयमेव च. माहेश्वरं तथा साम्ब तौरं सर्वाचंसव्ययम्, पराशरोक्तं प्रवरं तथा भागवतद्वयमं। इदमष्टादर्श प्रोक्तं पुराणं कौर्मसंज्ञितम्। चतुर्चा संस्थितं पुण्यं संहितानां प्रभेदतः-हेमाद्रि।-पुराणम् (नपुंसक लिंग) अठारह पुराण,ब्राह्मं पाद्यं वैष्णव च शैवं भागवतं तथा, तयान्वन्नारदीयं च मार्कण्डेयं च सप्तमम्, आग्नेयमष्टकं प्रोक्तं भविष्यन्नवमं तथा, दशमं ब्रह्मवैवर्त लिङ्गमेकादशं तथा, वाराहं द्वादशं प्रोक्तं स्कान्दं चात्र त्रयोदशम्‌, चतुर्दशं वामनं च कौर्मं पंचदशं तथा, मत्स्यं च गारुडं चैव ब्रह्मांडाष्टादशं तथा।-विवादपदम्‌ मुकदमेबाजी के अठारह विषय (झगड़े के कारण)[1][2]


  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. -मनुस्मृति 8/47
  2. संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश |लेखक: वामन शिवराम आप्टे |प्रकाशक: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली-110002 |पृष्ठ संख्या: 134 |

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