कदली, सीप, भुजंग मुख -रहीम

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कदली, सीप, भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन॥
जैसी संगति बैठिये, तासोई फल दीन॥

अर्थ

जिसकी जैसी संगति होती है, उनके कर्मों का फल भी वैसा ही होता है। जैसे कि स्वाति नक्षत्र में वर्षा होती है तो अलग-अलग संगति के कारण उसका परिणाम भी अलग-अलग होता है। अर्थात् जब स्वाति नक्षत्र में पानी की बूंद जब केले पर पड़ती है तो कपूर का निर्माण होता है, सीप में गिरने पर वही मोती बन जाता है परंतु वही जब साँप के मुंह में गिरे तो विष बन जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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