कहु रहीम कैसे निभै -रहीम
कहु ‘रहीम’ कैसे निभै, बेर केर को संग।
वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग॥
- अर्थ
बेर और केले के साथ-साथ कैसे निभाव हो सकता है? बेर का पेड़ तो अपनी मौज में डोल रहा है, पर उसके डोलने से केले का एक-एक अंग फटा जा रहा है। दुर्जन की संगती में सज्जन की ऐसी ही गति होती है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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