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प्राचीन भारत की लेखन सामग्री में लिखने के लिए 'लकड़ी की तख्ती' या 'काष्ठफलक' का प्रयोग प्राचीन काल से होता आ रहा है। बौद्ध जातक कथाओं में प्राथमिक शालाओं में शिशुओं की शिक्षा के प्रसंग में ‘फलक’ का उल्लेख है। कात्यायन और दंडी ने पांडुलेख (खड़िया) से काष्ठफलक पर लिखित राजकीय घोषणाओं का उल्लेख किया है। लकड़ी की इन स्लेटों पर मुल्तानी मिट्टी या खड़िया पोत दी जाती थी। फिर उस पर ईंटों का चूरा बिछाकर तीखे गोल मुख की लकड़ी की कलम से लिखते थे। काष्ठ की चीज़ों पर कई लेख मिले हैं। जैसे, भाजा गुफ़ाचैत्य, महाराष्ट्र की लकड़ी की कड़ियों पर लेख उत्कीर्ण हैं।
सन 1965 में अम्बाला ज़िले, हरियाणा के सुघ (प्राचीन स्रुघ्र) से मिट्टी का बना एक खिलौना मिला। इसमें एक बालक को बैठा हुआ और गोद में एक तख्ती लिए हुए दर्शाया गया है। तख्ती ठीक उसी प्रकार की है, जैसी आजकल के प्राथमिक पाठशाला के विद्यार्थी प्रयोग करते हैं। यह खिलौना शुंग काल (ईसा पूर्व दूसरी सदी) का है।
धूलिकर्म
ईसा की सातवीं सदी से फलक के लिए ‘पाटी’ शब्द का प्रयोग होने लगा और ‘पाटीगणित’ का अर्थ हो गया अंकगणित। भास्कराचार्य (1150 ई.) ने अंकगणित को ‘धूलिकर्म’ भी कहा है। पाटी या ज़मीन पर धूल बिछाकर उंगली या एक छोटी लकड़ी की नोंक से अंक लिखे जाते थे, गणनाएँ की जाती थीं, इसीलिए यह 'धूलिकर्म' शब्द अस्तित्व में आया।
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