क्षारीय मिट्टी: Difference between revisions
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*इसे विभिन्न स्थानों पर थूर, ऊसर, कल्लर, रेह, करेल, राँकड़, चोपन, नमकीन मिट्टी आदि नामों से जाना जाता है। | *इसे विभिन्न स्थानों पर थूर, ऊसर, कल्लर, रेह, करेल, राँकड़, चोपन, नमकीन मिट्टी आदि नामों से जाना जाता है। | ||
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Latest revision as of 08:39, 26 May 2012
क्षारीय मिट्टी शुष्क एवं अर्धशुष्क भागों एवं दलदली क्षेत्रों में मिलती है। इसकी उत्पत्ति शुष्क एवं अर्धशुष्क भागों में जल तल के ऊँचा होने एवं जलप्रवाह के दोषपूर्ण होने के कारण होती है। ऐसी स्थिति में केशिकाकर्षण की क्रिया द्वारा सोडियम, कैल्शियम एवं मैग्नीशियम के लवण मृदा की ऊपरी सतह पर निक्षेपित हो जाते हैं।
- इसे विभिन्न स्थानों पर थूर, ऊसर, कल्लर, रेह, करेल, राँकड़, चोपन, नमकीन मिट्टी आदि नामों से जाना जाता है।
- समुद्र तटीय क्षेत्रों में ज्वार के समय नमकीन जल भूमि पर फैल जाने से भी इस मृदा का निर्माण होता है।
- प्रायः यह मिट्टी उर्वरता से रहित होती है जबकि जीवांश आदि नहीं मिलते है। ऐसी मृदा में नाइट्रोजन की कमी होती है।
- यह एक अंतःक्षेत्रीय मिट्टी है, जिसका विस्तार सभी जलवायु प्रदेशों में पाया जाता है।
- यह मिट्टी मुख्यतः दक्षिणी पंजाब, दक्षिणी हरियाणा, पश्चिमी राजस्थान, गंगा के बायें किनारे के क्षेत्र, केरल तट, सुंदरवन क्षेत्र सहित वैसे क्षेत्रों में भी पाई जाती है जहाँ सिंचाई के कारण जल स्तर ऊपर उठ गया है। यह एक अनुपजाऊ मृदा है।
- तटीय क्षेत्रों में इस मृदा में नारियल एवं तेल ताड़ की कृषि की जाती है।
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