खाखेल: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 3: | Line 3: | ||
*[[मौर्य]] समाज की अवनति के बाद [[कलिंग]] में चेदि राजवंश का उदय हुआ था, जो [[बुंदेलखंड]] के चेदि वंश की ही उपशाखा थी। | *[[मौर्य]] समाज की अवनति के बाद [[कलिंग]] में चेदि राजवंश का उदय हुआ था, जो [[बुंदेलखंड]] के चेदि वंश की ही उपशाखा थी। | ||
*खाखेल इस राजवंश का तीसरा नरेश था, जो कलिंग चक्रवर्ती कहलाया। | *खाखेल इस राजवंश का तीसरा नरेश था, जो कलिंग चक्रवर्ती कहलाया। | ||
*[[उदयगिरि | *[[उदयगिरि और खण्डगिरि गुफ़ाएँ|उदयगिरि]] के [[हाथी गुम्फा अभिलेख|हाथी गुम्फा]] नाम के [[शिलालेख]] से विदित होता है कि, यह [[जैन धर्म]] का अनुयायी था। | ||
*24 वर्ष की उम्र में महाराज पद पर आसीन होने पर खाखेल ने अपने राज्य का विस्तार आरंभ किया। | *24 वर्ष की उम्र में महाराज पद पर आसीन होने पर खाखेल ने अपने राज्य का विस्तार आरंभ किया। | ||
*इसकी सेना दक्षिण में [[पाण्ड्य राजवंश|पाण्डय]] राज्य की सीमा तक पहुँच गयी थी। | *इसकी सेना दक्षिण में [[पाण्ड्य राजवंश|पाण्डय]] राज्य की सीमा तक पहुँच गयी थी। |
Latest revision as of 07:25, 15 June 2012
खाखेल 'चेदि राजवंश' का तीसरा नरेश था, जो बाद में 'कलिंग चक्रवर्ती' कहलाया। खाखेल ने मथुरा के यवन राजा और सातवाहन वंश के नरेश 'शातकीर्ण' को भी पराजित किया था। उसका शासन समय ईसा की पहली और दूसरी शताब्दी माना जाता है। खाखेल ने राज्य की जनता के कल्याण के लिए अनेक कार्य किए थे। विद्वानों की एक विराट सभा का भी उसने आयोजन किया था।
- मौर्य समाज की अवनति के बाद कलिंग में चेदि राजवंश का उदय हुआ था, जो बुंदेलखंड के चेदि वंश की ही उपशाखा थी।
- खाखेल इस राजवंश का तीसरा नरेश था, जो कलिंग चक्रवर्ती कहलाया।
- उदयगिरि के हाथी गुम्फा नाम के शिलालेख से विदित होता है कि, यह जैन धर्म का अनुयायी था।
- 24 वर्ष की उम्र में महाराज पद पर आसीन होने पर खाखेल ने अपने राज्य का विस्तार आरंभ किया।
- इसकी सेना दक्षिण में पाण्डय राज्य की सीमा तक पहुँच गयी थी।
- खाखेल ने मथुरा के यवन राजा और सातवाहन वंश के एक शातकीर्ण राजा को पराजित किया था।
- उसके द्वारा मगध पर भी आक्रमण किया गया था।
- उसका समय कुछ लोग ईसा पूर्व की दूसरी शताब्दी मानते हैं, तो कुछ लोग ईसा पूर्व की पहली शताब्दी।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 205 |
संबंधित लेख