ब्रह्माण्ड: Difference between revisions
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विश्व के नियमित अध्ययन का प्रारम्भ [[क्लॉडियस टॉलमी]] ने 140 ई. में प्रारम्भ किया था। क्लाडियम टालेमी [[मिस्र]]-[[यूनानी]] परम्परा के प्रख्यात खगोलशास्त्री थे। उन्होंने इस सिद्धांत को स्वीकार किया कि पृथ्वी विश्व के केन्द्र में है तथा [[सूर्य]] और अन्य ग्रह इसकी परिक्रमा करते हैं और अन्य ग्रह इसकी परिक्रमा करते हैं। 1543 ई. में [[पोलैण्ड]] के खगोलज्ञ कोपरनिकास ने सूर्य को विश्व केन्द्र में माना, न कि पृथ्वी को। [[निकोलस कॉपरनिकस]] के सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी के बदले सूर्य को केन्द्र में स्वीकार किया, परंतु उनके विश्व की मान्यता सौर परिवार तक ही सीमित थी। 1805 ई. में [[ब्रिटेन]] तक ही सीमित थी। 1805 ई. में ब्रिटेन के खगोलज्ञ हर्शेल ने दूरबीन की सहायता से अंतरिक्ष का अध्ययन किया तो ज्ञात हुआ कि विश्व मात्र सौरमण्डल तक ही सीमित नहीं है। सौरमण्डल [[आकाशगंगा]] का एक अंश मात्र है। [[1925]] ई. में [[अमेरिका]] के खगोलज्ञ एडविन पी. हबल ने बताया कि विश्व में हमारी आकाशगंगा की भाँति लाखों अन्य दुग्ध मेखलाएँ हैं। हबल ने [[1929]] में यह प्रमाणित कर दिया कि ये आकाशगंगाएँ एक-दूसरे से दूर होती जा रही हैं। हबल ने यह भी बताया कि यदि आकाशगंगाओं की गति से भागें। आइजक एसीनोव ने यह विचार प्रस्तुत किया कि हबल के निरूपण के अनुसार यदि दूरी के साथ प्रतिसरण की गति बढ़ती जाए तो 125 करोड़ प्रकाश वर्ष की दूरी पर आकाशगंगाएँ इस प्रकार प्रतिसरण करेंगी कि उन्हें देख पाना भी सम्भव नहीं होगा। दृश्य पथ में आने वाले ब्रह्माण्ड का व्यास 250 करोड़ प्रकाश वर्ष है और इसके अन्दर असंख्य आकाशगंगाएँ हैं। | |||
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Latest revision as of 12:01, 28 July 2014
thumb|300px|ब्रह्माण्ड ब्रह्माण्ड अस्तित्वमान द्रव्य एवं ऊर्जा के सम्मिलित रूप को कहा जाता है। ब्रह्माण्ड के अन्तर्गत उन सभी आकाशीय पिंण्डों एवं उल्काओं तथा समस्त सौर मण्डल, जिसमें सूर्य, चन्द्र आदि भी सम्मिलित हैं, का अध्ययन किया जाता है। ब्रह्माण्ड उस अनन्त आकाश को कहते हैं, जिसमें अनन्त तारे, ग्रह, चन्द्रमा एवं अन्य आकाशीय पिण्ड स्थित हैं। ब्रह्माण्ड का व्यास लगभग 108 प्रकाशवर्ष है।
आधुनिक विचारधारा
आधुनिक विचारधारा के अनुसार ब्रह्माण्ड के दो भाग हैं-
- वायुमण्डल और
- अंतरिक्ष
उत्पत्ति परिकल्पनाएँ
ब्रह्माण्ड उत्पत्ति की दो प्रमुख वैज्ञानिक परिकल्पनाएँ हैं-
- सामान्यस्थिति सिद्धान्त - इस सिद्धान्त के प्रतिपादक बेल्जियम के खगोलविद एवं पादरी 'ऐब जॉर्ज लेमेण्टर' थे।
- महाविस्फोट सिद्धान्त (बिग बैंग थ्योरी) - यह सिद्धान्त दो सिद्धान्तों पर आधारित है-
- निरन्तर उत्पत्ति का सिद्धान्त - इसके प्रतिपादक 'गोल्ड' और 'हरमैन बॉण्डी' थे।
- संकुचन विमाचन का सिद्धान्त - 'डॉक्टर ऐलन सेण्डोज' इसके प्रतिपादक थे।
ब्रह्माण्ड का केन्द्र
ब्रह्माण्ड के बारे में हमारा बदलता दृष्टिकोण प्रारम्भ में पृथ्वी को सम्पूर्ण ब्रह्माण का केन्द्र माना जाता था, जिसकी परिक्रमा सभी आकाशीय पिण्ड विभिन्न कक्षाओं में करते थे। इसे भूकेन्द्रीय सिद्धान्त कहा गया। मानव मन सर्वप्रथम एक क्रमबद्ध इकाई के रूप में विश्व का चित्र उभरा तो उसने इसे 'ब्राह्माण्ड' की संज्ञा दी।
अनुसंधान
विश्व के नियमित अध्ययन का प्रारम्भ क्लॉडियस टॉलमी ने 140 ई. में प्रारम्भ किया था। क्लाडियम टालेमी मिस्र-यूनानी परम्परा के प्रख्यात खगोलशास्त्री थे। उन्होंने इस सिद्धांत को स्वीकार किया कि पृथ्वी विश्व के केन्द्र में है तथा सूर्य और अन्य ग्रह इसकी परिक्रमा करते हैं और अन्य ग्रह इसकी परिक्रमा करते हैं। 1543 ई. में पोलैण्ड के खगोलज्ञ कोपरनिकास ने सूर्य को विश्व केन्द्र में माना, न कि पृथ्वी को। निकोलस कॉपरनिकस के सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी के बदले सूर्य को केन्द्र में स्वीकार किया, परंतु उनके विश्व की मान्यता सौर परिवार तक ही सीमित थी। 1805 ई. में ब्रिटेन तक ही सीमित थी। 1805 ई. में ब्रिटेन के खगोलज्ञ हर्शेल ने दूरबीन की सहायता से अंतरिक्ष का अध्ययन किया तो ज्ञात हुआ कि विश्व मात्र सौरमण्डल तक ही सीमित नहीं है। सौरमण्डल आकाशगंगा का एक अंश मात्र है। 1925 ई. में अमेरिका के खगोलज्ञ एडविन पी. हबल ने बताया कि विश्व में हमारी आकाशगंगा की भाँति लाखों अन्य दुग्ध मेखलाएँ हैं। हबल ने 1929 में यह प्रमाणित कर दिया कि ये आकाशगंगाएँ एक-दूसरे से दूर होती जा रही हैं। हबल ने यह भी बताया कि यदि आकाशगंगाओं की गति से भागें। आइजक एसीनोव ने यह विचार प्रस्तुत किया कि हबल के निरूपण के अनुसार यदि दूरी के साथ प्रतिसरण की गति बढ़ती जाए तो 125 करोड़ प्रकाश वर्ष की दूरी पर आकाशगंगाएँ इस प्रकार प्रतिसरण करेंगी कि उन्हें देख पाना भी सम्भव नहीं होगा। दृश्य पथ में आने वाले ब्रह्माण्ड का व्यास 250 करोड़ प्रकाश वर्ष है और इसके अन्दर असंख्य आकाशगंगाएँ हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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