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==चरण==
==चरण==
रुबाई में चार, समवृत्त चरण होते हैं। कसीदा अथवा गज़ल के प्रारम्भिक चार पाद रुबाई हो सकते हैं। चार चरणों अथवा मिसरों में से प्रथम-द्वितीय और चतुर्थ सम-तुकान्त, अर्थात एक ही क़ाफ़िये और रदीफ में होते हैं, केवल तीसरा चरण भिन्न-तुकान्त होता है।
रुबाई में चार, समवृत्त चरण होते हैं। [[क़सीदा]] अथवा गज़ल के प्रारम्भिक चार पाद रुबाई हो सकते हैं। चार चरणों अथवा मिसरों में से प्रथम-द्वितीय और चतुर्थ सम-तुकान्त, अर्थात एक ही क़ाफ़िये और रदीफ में होते हैं, केवल तीसरा चरण भिन्न-तुकान्त होता है।
 
==छंद==
==छंद==
रुबाई के लिए विशेष छन्दों का विधान है और उनमें मुख्य है 'हजाज'। परन्तु उर्दू में 'इकबाल' ने इस नियम का पालन नहीं किया है।   
रुबाई के लिए विशेष छन्दों का विधान है और उनमें मुख्य है 'हजाज'। परन्तु उर्दू में 'इक़बाल' ने इस नियम का पालन नहीं किया है।   
==मुक्तक==
==मुक्तक==
रुबाई मुक्तक है और अपने-आप में पूर्ण भी। इसके चार चरणों में दो बैत होते हैं, इसलिए इसका नाम 'दो-बैती' है और चार मिसरे होते हैं, अत: रुबाई कहलाती है। रुबाई फ़ारसी का सर्वाधिक लोकप्रिय रचनाविधान है। फ़ारसी में इसे 'तराना' भी कहते हैं।  
रुबाई मुक्तक है और अपने-आप में पूर्ण भी। इसके चार चरणों में दो बैत होते हैं, इसलिए इसका नाम 'दो-बैती' है और चार मिसरे होते हैं, अत: रुबाई कहलाती है। रुबाई फ़ारसी का सर्वाधिक लोकप्रिय रचनाविधान है। फ़ारसी में इसे 'तराना' भी कहते हैं।  
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जितनी उर की भावुकता हो, उतना सुन्दर साकी है,  
जितनी उर की भावुकता हो, उतना सुन्दर साकी है,  
जितना हो जो रसिक, उसे है, उतनी रसमय मधुशाला।"</poem>  
जितना हो जो रसिक, उसे है, उतनी रसमय मधुशाला।"</poem>  
यों तो रुबाई में सब बातें कही जा सकती हैं, लेकिन उर्दू के शायरों ने इसमें ज़्यादातर नैतिक बातें ही लिखी हैं। रुबाइयाँ क़रीब-क़रीब उर्दू के सभी शायरों ने लिखी हैं, लेकिन इनमें अनीस, दबीर, इकबाल, जगतमोहन 'ख़ाँ' और जोश आदि ने विशिष्ट स्थान प्राप्त किया है। हिन्दी में उमर खैयाम की रुबाइयों के अनेक अनुवाद हुए हैं और उनके प्रभाव से अनेक प्रसिद्ध कवियों ने रुबाइयाँ लिखी हैं। नये कवि 'मुक्तक' नाम से भी रुबाइयाँ लिखते हैं। रुबाइयों में प्राय: सूक्ति या उक्तिवैचित्र्य की प्रधानता रहती है।
यों तो रुबाई में सब बातें कही जा सकती हैं, लेकिन उर्दू के शायरों ने इसमें ज़्यादातर नैतिक बातें ही लिखी हैं। रुबाइयाँ क़रीब-क़रीब उर्दू के सभी शायरों ने लिखी हैं, लेकिन इनमें अनीस, दबीर, इक़बाल, जगतमोहन 'ख़ाँ' और जोश आदि ने विशिष्ट स्थान प्राप्त किया है। हिन्दी में उमर खैयाम की रुबाइयों के अनेक अनुवाद हुए हैं और उनके प्रभाव से अनेक प्रसिद्ध कवियों ने रुबाइयाँ लिखी हैं। नये कवि 'मुक्तक' नाम से भी रुबाइयाँ लिखते हैं। रुबाइयों में प्राय: सूक्ति या उक्तिवैचित्र्य की प्रधानता रहती है।




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Latest revision as of 14:42, 31 July 2014

उर्दू और फ़ारसी का एक छंद विशेष जिसका मूल वज़न 1तगण, 1यगण, 1सगण और 1मगण होता है। इसके पहले, दूसरे और चौथे पद में क़ाफ़िया होता है, कभी कभी चारों ही सानुप्रास होते हैं, परंतु अच्छा यही है कि चौथा सानुप्रास न हो।

चरण

रुबाई में चार, समवृत्त चरण होते हैं। क़सीदा अथवा गज़ल के प्रारम्भिक चार पाद रुबाई हो सकते हैं। चार चरणों अथवा मिसरों में से प्रथम-द्वितीय और चतुर्थ सम-तुकान्त, अर्थात एक ही क़ाफ़िये और रदीफ में होते हैं, केवल तीसरा चरण भिन्न-तुकान्त होता है।

छंद

रुबाई के लिए विशेष छन्दों का विधान है और उनमें मुख्य है 'हजाज'। परन्तु उर्दू में 'इक़बाल' ने इस नियम का पालन नहीं किया है।

मुक्तक

रुबाई मुक्तक है और अपने-आप में पूर्ण भी। इसके चार चरणों में दो बैत होते हैं, इसलिए इसका नाम 'दो-बैती' है और चार मिसरे होते हैं, अत: रुबाई कहलाती है। रुबाई फ़ारसी का सर्वाधिक लोकप्रिय रचनाविधान है। फ़ारसी में इसे 'तराना' भी कहते हैं।

उमर खैयाम का अनुवाद

उमर खैयाम की 'रुबाइयात' के फिट्जजेराल्ड-कृत अंग्रेज़ी अनुवाद को इंग्लैण्ड और अमेरिका में अधिक प्रशंसा प्राप्त हुई और उमर खैयाम की रहस्यात्मकता का प्रचार हुआ। अपने देश में उमर खैयाम की प्रसिद्धि गणितज्ञ, ज्योतिषी और दार्शनिक के रूप में थी, फिट्जेराल्ड के कारण उसकी ख्याति रहस्यवादी कवि के रूप में भी हुई।

प्रसिद्धि

हिन्दी में भी फिट्जजेराल्ड-कृत अनुवाद के अनेक अनुवाद हुए हैं और उनमें हरिवंश राय 'बच्चन' कृत 'खैयाम की मधुशाला' अधिक प्रसिद्ध और लोकप्रिय हुई। मैथिलीशरण गुप्त तक ने इसका अनुवाद किया है। 'बच्चन' कृत 'मधुशाला' इसी रचना-विधान में है -

"जितनी दिल की गहराई हो उतना गहरा है प्याला,
जितनी मन की मादकता हो, उतनी मादक है हाला,
जितनी उर की भावुकता हो, उतना सुन्दर साकी है,
जितना हो जो रसिक, उसे है, उतनी रसमय मधुशाला।"

यों तो रुबाई में सब बातें कही जा सकती हैं, लेकिन उर्दू के शायरों ने इसमें ज़्यादातर नैतिक बातें ही लिखी हैं। रुबाइयाँ क़रीब-क़रीब उर्दू के सभी शायरों ने लिखी हैं, लेकिन इनमें अनीस, दबीर, इक़बाल, जगतमोहन 'ख़ाँ' और जोश आदि ने विशिष्ट स्थान प्राप्त किया है। हिन्दी में उमर खैयाम की रुबाइयों के अनेक अनुवाद हुए हैं और उनके प्रभाव से अनेक प्रसिद्ध कवियों ने रुबाइयाँ लिखी हैं। नये कवि 'मुक्तक' नाम से भी रुबाइयाँ लिखते हैं। रुबाइयों में प्राय: सूक्ति या उक्तिवैचित्र्य की प्रधानता रहती है।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ


वर्मा, धीरेंद्र हिन्दी साहित्य कोश, भाग - 1 (हिंदी), 568।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

  1. REDIRECT साँचा:साहित्यिक शब्दावली