छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-6 खण्ड-7: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
 
Line 1: Line 1:
*[[छान्दोग्य उपनिषद]] के [[छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-6|अध्याय छठा]] का यह सातवाँ खण्ड है।
{{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय
{{main|छान्दोग्य उपनिषद}}
|चित्र=Chandogya-Upanishad.jpg
*मन और अन्न का परस्परिक सम्बन्ध
|चित्र का नाम=छान्दोग्य उपनिषद का आवरण पृष्ठ
इस खण्ड में 'मन और अन्न का पारस्परिक सम्बन्ध' बताया गया है। [[उद्दालक]] ने एक दृष्टान्त से इसे समझाया है। उन्होंने अपने पुत्र [[श्वेतकेतु]] से कहा-'हे वत्स! यह मनुष्य सोलह कलाओं को धारण कर सकता है। यदि तुम पन्द्रह दिन तक भोजन न करो और मात्र जल का ही सेवन करते रहो, तो तुम्हारा जीवन नष्ट नहीं होगा; क्योंकि 'प्राण' को जल-रूप कहा गया है। केवल जल ग्रहण करने से जीवन का अन्त नहीं होता।' इस कथन की परीक्षा के लिए श्वेवकेतु ने पन्द्रह दिन तक भोजन नहीं किया। वह जल द्वारा ही अपने प्राणों को पुष्ट करता रहा।<br />
|विवरण='छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस [[उपनिषद|उपनिषदों]] में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार [[छन्द]] है।
पन्द्रह दिन बाद उद्दालक ने अपने पुत्र श्वेतकेतु से कहा कि अब वह जाये और वेदों का अध्ययन करे, किन्तु वह ऐसा नहीं कर सका। उसे मन्त्र याद नहीं होते थे। तब उद्दालक ने अपने पुत्र को भोजन करने के लिए कहा और फिर मन्त्र याद करने के लिए कहा। <br />
|शीर्षक 1=अध्याय
इस बार उसे मन्त्र याद हो गये। इससे पता चला कि जैसे जल 'प्राण' के लिए अनिवार्य है, उसी प्रकार अन्न भी 'मन' के लिए अनिवार्य है। इसी प्रकार 'वाणी' तभी प्रस्फुटित होती है, जब ज्ञान का 'तेज' मनुष्य के भीतर होता है। <br />
|पाठ 1=छठा
|शीर्षक 2=कुल खण्ड
|पाठ 2=16 (सोलह)
|शीर्षक 3=सम्बंधित वेद
|पाठ 3=[[सामवेद]]
|शीर्षक 4=
|पाठ 4=
|शीर्षक 5=
|पाठ 5=
|शीर्षक 6=
|पाठ 6=
|शीर्षक 7=
|पाठ 7=
|शीर्षक 8=
|पाठ 8=
|शीर्षक 9=
|पाठ 9=
|शीर्षक 10=
|पाठ 10=
|संबंधित लेख=[[उपनिषद]], [[वेद]], [[वेदांग]], [[वैदिक काल]], [[संस्कृत साहित्य]]
|अन्य जानकारी= [[सामवेद]] की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
}}
[[छान्दोग्य उपनिषद]] के [[छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-6|अध्याय छठे]] का यह सातवाँ खण्ड है। इस खण्ड में 'मन और अन्न का पारस्परिक सम्बन्ध' बताया गया है।


[[उद्दालक]] ने एक दृष्टान्त से इसे समझाया है। उन्होंने अपने पुत्र [[श्वेतकेतु]] से कहा- "हे वत्स! यह मनुष्य [[सोलह कला|सोलह कलाओं]] को धारण कर सकता है। यदि तुम पन्द्रह दिन तक भोजन न करो और मात्र [[जल]] का ही सेवन करते रहो, तो तुम्हारा जीवन नष्ट नहीं होगा; क्योंकि 'प्राण' को जल-रूप कहा गया है। केवल जल ग्रहण करने से जीवन का अन्त नहीं होता।"


{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
इस कथन की परीक्षा के लिए श्वेवकेतु ने पन्द्रह दिन तक भोजन नहीं किया। वह जल द्वारा ही अपने प्राणों को पुष्ट करता रहा।
{{संदर्भ ग्रंथ}}
 
पन्द्रह दिन बाद उद्दालक ने अपने पुत्र श्वेतकेतु से कहा कि "अब वह जाये और [[वेद|वेदों]] का अध्ययन करे। किन्तु श्वेतकेतु ऐसा नहीं कर सका। उसे [[मन्त्र]] याद नहीं होते थे। तब उद्दालक ने अपने पुत्र को भोजन करने के लिए कहा और फिर मन्त्र याद करने के लिए कहा।
 
इस बार उसे मन्त्र याद हो गये। इससे पता चला कि जैसे [[जल]] 'प्राण' के लिए अनिवार्य है, उसी प्रकार अन्न भी 'मन' के लिए अनिवार्य है। इसी प्रकार 'वाणी' तभी प्रस्फुटित होती है, जब ज्ञान का 'तेज' मनुष्य के भीतर होता है।
 
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{छान्दोग्य उपनिषद}}
{{छान्दोग्य उपनिषद}}
[[Category:छान्दोग्य उपनिषद]]
[[Category:छान्दोग्य उपनिषद]][[Category:दर्शन कोश]][[Category:उपनिषद]][[Category:संस्कृत साहित्य]]
[[Category:दर्शन कोश]]
[[Category:उपनिषद]][[Category:संस्कृत साहित्य]]  
 
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 13:13, 23 August 2016

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-6 खण्ड-7
विवरण 'छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार छन्द है।
अध्याय छठा
कुल खण्ड 16 (सोलह)
सम्बंधित वेद सामवेद
संबंधित लेख उपनिषद, वेद, वेदांग, वैदिक काल, संस्कृत साहित्य
अन्य जानकारी सामवेद की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं।

छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय छठे का यह सातवाँ खण्ड है। इस खण्ड में 'मन और अन्न का पारस्परिक सम्बन्ध' बताया गया है।

उद्दालक ने एक दृष्टान्त से इसे समझाया है। उन्होंने अपने पुत्र श्वेतकेतु से कहा- "हे वत्स! यह मनुष्य सोलह कलाओं को धारण कर सकता है। यदि तुम पन्द्रह दिन तक भोजन न करो और मात्र जल का ही सेवन करते रहो, तो तुम्हारा जीवन नष्ट नहीं होगा; क्योंकि 'प्राण' को जल-रूप कहा गया है। केवल जल ग्रहण करने से जीवन का अन्त नहीं होता।"

इस कथन की परीक्षा के लिए श्वेवकेतु ने पन्द्रह दिन तक भोजन नहीं किया। वह जल द्वारा ही अपने प्राणों को पुष्ट करता रहा।

पन्द्रह दिन बाद उद्दालक ने अपने पुत्र श्वेतकेतु से कहा कि "अब वह जाये और वेदों का अध्ययन करे। किन्तु श्वेतकेतु ऐसा नहीं कर सका। उसे मन्त्र याद नहीं होते थे। तब उद्दालक ने अपने पुत्र को भोजन करने के लिए कहा और फिर मन्त्र याद करने के लिए कहा।

इस बार उसे मन्त्र याद हो गये। इससे पता चला कि जैसे जल 'प्राण' के लिए अनिवार्य है, उसी प्रकार अन्न भी 'मन' के लिए अनिवार्य है। इसी प्रकार 'वाणी' तभी प्रस्फुटित होती है, जब ज्ञान का 'तेज' मनुष्य के भीतर होता है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1

खण्ड-1 | खण्ड-2 | खण्ड-3 | खण्ड-4 | खण्ड-5 | खण्ड-6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 | खण्ड-10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-2

खण्ड-1 | खण्ड-2 | खण्ड-3 | खण्ड-4 | खण्ड-5 | खण्ड-6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 | खण्ड-10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 | खण्ड-14 | खण्ड-15 | खण्ड-16 | खण्ड-17 | खण्ड-18 | खण्ड-19 | खण्ड-20 | खण्ड-21 | खण्ड-22 | खण्ड-23 | खण्ड-24

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-3

खण्ड-1 से 5 | खण्ड-6 से 10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 से 19

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-4

खण्ड-1 से 3 | खण्ड-4 से 9 | खण्ड-10 से 17

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-5

खण्ड-1 | खण्ड-2 | खण्ड-3 से 10 | खण्ड-11 से 24

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-6

खण्ड-1 से 2 | खण्ड-3 से 4 | खण्ड-5 से 6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 से 13 | खण्ड-14 से 16

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-7

खण्ड-1 से 15 | खण्ड-16 से 26

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-8

खण्ड-1 से 6 | खण्ड-7 से 15