आरंग: Difference between revisions
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आरंग में एक भव्य जैन मंदिर और महामाया का एक प्राचीन महत्त्वपूर्ण मन्दिर स्थित है। इसका सभामण्डल नष्ट हो चुका है। मन्दिर की छत सपाट है। ज़िला रायपुर के आसपास के प्रदेश में 11वीं-12वीं शती में शाक्त और तांत्रिक संप्रदायों का बाहुल्य था। यह मन्दिर इसी समय का प्रतीत होता है। इसको [[वास्तुकला]] से भी यही सिद्ध होता है। आरंग के मूर्ति-[[अवशेष|अवशेषों]] में भी [[शिव]] के तांत्रिक रूपों की अनेक कृतियाँ उपलब्ध हुई हैं। योगमाया के मन्दिर के सामने ही सैकड़ों [[वर्ष]] प्राचीन एक | आरंग में एक भव्य [[जैन]] मंदिर और [[महामाया]] का एक प्राचीन महत्त्वपूर्ण मन्दिर स्थित है। इसका सभामण्डल नष्ट हो चुका है। मन्दिर की छत सपाट है। ज़िला रायपुर के आसपास के प्रदेश में 11वीं-12वीं शती में [[शाक्त सम्प्रदाय|शाक्त]] और तांत्रिक संप्रदायों का बाहुल्य था। यह मन्दिर इसी समय का प्रतीत होता है। इसको [[वास्तुकला]] से भी यही सिद्ध होता है। आरंग के मूर्ति-[[अवशेष|अवशेषों]] में भी [[शिव]] के तांत्रिक रूपों की अनेक कृतियाँ उपलब्ध हुई हैं। | ||
[[योगमाया]] के मन्दिर के सामने ही सैकड़ों [[वर्ष]] प्राचीन एक महान् [[वृक्ष]] है जिसके बारे में अनेक [[किंवदंती|किंवदंतियां]] प्रचलित हैं। आरंग में कई [[अभिलेख]] भी प्राप्त हुए हैं। जिनमें से एक 601 ई. का है और इसमें '''राजर्षि तुल्यकुल''' नामक राजवंश का उल्लेख है।<ref>मध्य प्रदेश का इतिहास, पृ. 22</ref> यदि इस वंश की राजधानी आरंग में ही थी तो इस स्थान का [[इतिहास]] उत्तर [[गुप्त काल]] तक जा पहुँचता है। | |||
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*ऐतिहासिक स्थानावली | पृष्ठ संख्या= 68| विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार | |||
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Latest revision as of 07:40, 5 May 2018
आरंग छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर ज़िले में स्थित एक नगर है। आरंग नामक वृक्ष के नाम पर ही इस स्थान का नामकरण हुआ जान पड़ता है क्योंकि इस भूभाग में इस प्रकार के स्थान नाम अनेक हैं।
- मंदिर
आरंग में एक भव्य जैन मंदिर और महामाया का एक प्राचीन महत्त्वपूर्ण मन्दिर स्थित है। इसका सभामण्डल नष्ट हो चुका है। मन्दिर की छत सपाट है। ज़िला रायपुर के आसपास के प्रदेश में 11वीं-12वीं शती में शाक्त और तांत्रिक संप्रदायों का बाहुल्य था। यह मन्दिर इसी समय का प्रतीत होता है। इसको वास्तुकला से भी यही सिद्ध होता है। आरंग के मूर्ति-अवशेषों में भी शिव के तांत्रिक रूपों की अनेक कृतियाँ उपलब्ध हुई हैं।
योगमाया के मन्दिर के सामने ही सैकड़ों वर्ष प्राचीन एक महान् वृक्ष है जिसके बारे में अनेक किंवदंतियां प्रचलित हैं। आरंग में कई अभिलेख भी प्राप्त हुए हैं। जिनमें से एक 601 ई. का है और इसमें राजर्षि तुल्यकुल नामक राजवंश का उल्लेख है।[1] यदि इस वंश की राजधानी आरंग में ही थी तो इस स्थान का इतिहास उत्तर गुप्त काल तक जा पहुँचता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ऐतिहासिक स्थानावली | पृष्ठ संख्या= 68| विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
- ↑ मध्य प्रदेश का इतिहास, पृ. 22