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सारिपुत्र जाति से [[ब्राह्मण]] था और [[राजगृह]] निवासी था। इसने [[महात्मा बुद्ध]] के धर्म और सिद्धांतों को जन-उपकारी मानकर उनके प्रति अपनी आस्था व्यक्त की थी। यह बुद्ध का प्रबुद्ध और प्रज्ञावान शिष्य था। इसके लिए बुद्ध का कहना था, 'मेरे द्वारा संचालित चक्र, अनुपम धर्मचक्र को तथागत का अनुजात सारिपुत्र अनुचालित कर रहा है।'<ref> मज्जिम निकाय, 2.5.3</ref> उसके सदाचारी व्यक्त्तित्व पर मिलिंदपह ओ अभिव्यक्त करता है, 'देवताओं सहित इस सम्पूर्ण जगत के उलट जाने, सूर्य और चंद्रमा के पृथ्वी पर टूट पड़ने और पर्वतराज सुमेरू के चूर चूर हो जाने पर भी स्थविर सारिपुत्र किसी को दु:ख पहुँचाने की इच्छा मन में नहीं ला सकते।' <ref>संयुक्तनिकाय, 45.2.1 </ref> सारिपुत्र की मृत्यु महात्मा बुद्ध के जीवन काल में ही हुई थी। बुद्ध ने अत्यंत दु:खी और शोक संतप्त होकर कहा था, 'यह भिक्षु संतुष्ट, प्रविविक्त, असंतुष्ट, उद्योगी, पापनिंदक था।...इस वीतराग, जितेंद्रीय, निर्वाण प्राप्त सारिपुत्र की वंदना करो।'<ref> {{cite book | last = | first =चंद्रमौली मणि त्रिपाठी  | title =दीक्षा की भारतीय परम्पराएँ  | edition = | publisher = | location =भारत डिस्कवरी पुस्तकालय | language =हिंदी  | pages =85-86  | chapter =}}</ref>
'''सारिपुत्र''' जाति से [[ब्राह्मण]] था और [[राजगृह]] निवासी था। इसने [[महात्मा बुद्ध]] के धर्म और सिद्धांतों को जन-उपकारी मानकर उनके प्रति अपनी आस्था व्यक्त की थी।


*सारिपुत्र बुद्ध का प्रबुद्ध और प्रज्ञावान शिष्य था। इसके लिए बुद्ध का कहना था, 'मेरे द्वारा संचालित चक्र, अनुपम धर्मचक्र को तथागत का अनुजात सारिपुत्र अनुचालित कर रहा है।'<ref> मज्जिम निकाय, 2.5.3</ref>
*उसके सदाचारी व्यक्त्तित्व पर मिलिंदपह ओ अभिव्यक्त करता है, 'देवताओं सहित इस सम्पूर्ण जगत के उलट जाने, [[सूर्य]] और [[चंद्रमा]] के [[पृथ्वी]] पर टूट पड़ने और [[सुमेरु पर्वत|पर्वतराज सुमेरु]] के चूर चूर हो जाने पर भी स्थविर सारिपुत्र किसी को दु:ख पहुँचाने की इच्छा मन में नहीं ला सकते।'<ref>संयुक्तनिकाय, 45.2.1 </ref>
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Latest revision as of 10:22, 23 January 2020

सारिपुत्र जाति से ब्राह्मण था और राजगृह निवासी था। इसने महात्मा बुद्ध के धर्म और सिद्धांतों को जन-उपकारी मानकर उनके प्रति अपनी आस्था व्यक्त की थी।

  • सारिपुत्र बुद्ध का प्रबुद्ध और प्रज्ञावान शिष्य था। इसके लिए बुद्ध का कहना था, 'मेरे द्वारा संचालित चक्र, अनुपम धर्मचक्र को तथागत का अनुजात सारिपुत्र अनुचालित कर रहा है।'[1]
  • उसके सदाचारी व्यक्त्तित्व पर मिलिंदपह ओ अभिव्यक्त करता है, 'देवताओं सहित इस सम्पूर्ण जगत के उलट जाने, सूर्य और चंद्रमा के पृथ्वी पर टूट पड़ने और पर्वतराज सुमेरु के चूर चूर हो जाने पर भी स्थविर सारिपुत्र किसी को दु:ख पहुँचाने की इच्छा मन में नहीं ला सकते।'[2]
  • सारिपुत्र की मृत्यु महात्मा बुद्ध के जीवन काल में ही हुई थी। बुद्ध ने अत्यंत दु:खी और शोक संतप्त होकर कहा था- 'यह भिक्षु संतुष्ट, प्रविविक्त, असंतुष्ट, उद्योगी, पापनिंदक था।... इस वीतराग, जितेंद्रीय, निर्वाण प्राप्त सारिपुत्र की वंदना करो।'[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मज्जिम निकाय, 2.5.3
  2. संयुक्तनिकाय, 45.2.1
  3. दीक्षा की भारतीय परम्पराएँ (हिंदी), 85-86।

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