रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान: Difference between revisions
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'''रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान''' [[राजस्थान]] के [[सवाईमाधोपुर ज़िला|सवाईमाधोपुर ज़िले]] में स्थित है। यह [[उत्तर भारत]] के बड़े [[राष्ट्रीय उद्यान|राष्ट्रीय उद्यानों]] में गिना जाता है। 392 वर्ग किलोमीटर में फैले इस उद्यान में अधिक संख्या में बरगद के पेड़ दिखाई देते हैं। यह उद्यान [[बाघ]] संरक्षित क्षेत्र है। यह राष्ट्रीय अभयारण्य अपनी खूबसूरती, विशाल परिक्षेत्र और बाघों की मौजूदगी के कारण विश्व प्रसिद्ध है। अभयारण्य के साथ-साथ यहाँ का ऐतिहासिक दुर्ग भी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। लंबे समय से यह राष्ट्रीय उद्यान और इसके नजदीक स्थित रणथंभौर दुर्ग पर्यटकों को विशेष रूप से प्रभावित करता है। | |||
==राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा== | |||
रणथंभौर उद्यान को [[भारत सरकार]] ने [[1955]] में 'सवाई माधोपुर खेल अभयारण्य' के तौर पर स्थापित किया था। बाद में देशभर में [[बाघ|बाघों]] की घटती संख्या से चिंतित होकर सरकार ने इसे [[1973]] में 'प्रोजेक्ट टाइगर अभयारण्य' घोषित किया और बाघों के संरक्षण की कवायद शुरू की। इस प्रोजेक्ट से अभयारण्य और राज्य को लाभ मिला और रणथंभौर एक सफारी पर्यटन का प्रमुख केंद्र बन गया। इसके चलते [[1984]] में रणथंभौर को राष्ट्रीय अभयारण्य घोषित कर दिया गया। 1984 के बाद से लगातार राज्य के अभयारण्यों और वन क्षेत्रों को संरक्षित किया गया। वर्ष 1984 में 'सवाई मानसिंह अभयारण्य' और 'केवलादेव अभयारण्य' की घोषणा भी की गई। बाद में इन दोनो नई सेंचुरी को भी बाघ संरक्षण परियोजना से जोड़ दिया गया। | |||
====सरकार की जागरुकता==== | |||
बाघों की लगातार घटती संख्या ने सरकार की [[आंख|आँखेंं]] खोल दी और लम्बे समय से रणथंभौर अभयारण्य में चल रही शिकार की घटनाओं पर लगाम कसी गई। स्थानीय बस्तियों को भी संरक्षित वन क्षेत्र से धीरे-धीरे बाहर किया जाने लगा। बाघों के लापता होने और उनकी चर्म के लिए बाघों का शिकार किए जाने के मामलों ने देश के चितंकों को झकझोर दिया था। कई संगठनों ने बाघों को बचाने की गुहार लगाई और [[वर्ष]] [[1991]] के बाद लगातार इस दिशा में प्रयास किए गए। बाघों की संख्या अब भी बहुत कम है और अभयारण्यों से अभी भी बाघ लापता हो रहे हैं। ऐसे में वन विभाग को चुस्त दुरूस्त होना ही है, साथ ही उच्च तकनीकि से भी लैस होने की ज़रूरत है। | |||
==बाघों की मौजूदगी== | |||
रणथंभौर वन्यजीव अभयारण्य दुनिया भर में बाघों की मौजूदगी के कारण जाना जाता है और [[भारत]] में इन जंगल के राजाओं को देखने के लिए भी यह अभयारण्य सबसे अच्छा स्थल माना जाता है। रणथम्भौर में दिन के समय भी बाघों को आसानी से देखा जा सकता है। रणथम्भौर अभयारण्य की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय [[नवम्बर]] और [[मई]] के महीने हैं। इस शुष्क पतझड़ के [[मौसम]] में जंगल में विचरण करते [[बाघ]] आसानी से दिखाई देते हैं और उन्हें पानी के स्रोतों के आसपास देखा जा सकता है। रणथम्भौर के जंगल भारत के मध्यक्षेत्रीय शानदार जंगलों का एक हिस्सा थे, लेकिन बेलगाम वन कटाई के चलते भारत में जंगल तेज़ीसे सीमित होते चले गए और यह जंगल [[मध्य प्रदेश]] के जंगलों से अलग हो गया। | |||
==जीव-जंतु== | |||
रणथम्भौर को 'बाघ संरक्षण परियोजना' के तहत जाना जाता है और यहाँ बाघों की अच्छी खासी संख्या भी है। समय-समय पर जब यहाँ बाघिनें शावकों को जन्म देती हैं। तो ऐसे अवसर यहाँ के वन विभाग अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए किसी उत्सव से कम नहीं होते। इस अभयारण्य को "बाघों को अभयारण्य" कहा जाता है लेकिन यहाँ बड़ी संख्या में अन्य वन्यजीवों की मौजूदगी भी है। इनमें [[तेंदुआ]], नील गाय, [[जंगली सूअर]], सांभर, हिरण, [[भालू]] और [[चीतल]] आदि शामिल हैं। यह अभयारण्य विविध प्रकार की वनस्पति, पेड़-पौधों, लताओं, छोटे जीवों और पक्षियों के लिए विविधताओं से भरा घर है। रणथम्भौर में [[भारत]] का सबसे बड़ा [[बरगद]] भी एक लोकप्रिय स्थल है। | |||
जानवरों के अलावा पक्षियों की लगभग 264 प्रजातियाँ यहाँ देखी जा सकती हैं। सर्दियों में अनेक प्रवासी पक्षी यहाँ आते हैं। पक्षियों में चील, क्रेस्टड सरपेंट ईगल, ग्रेट इंडियन हॉर्न्ड आउल, तीतर, पेंटेड तीतर, क्वैल, स्परफाइल मोर, ट्री पाई और कई तरह के स्टॉर्क देखे जा सकते हैं। यहाँ राजबाग़ तालाब, पदम तालाब, मिलक तालाब जैसे सुंदर स्थल अनेक प्रकार के जानवरों को आकर्षित करते हैं और इनका शिकार करने की कोशिश में रहते हैं मांसाहारी जानवर। इस उद्यान की झीलों में [[मगरमच्छ]] भी हैं। यहाँ जीप सफारी का भी आनंद उठाया जा सकता है। | |||
==भौगोलिक स्थिति== | |||
रणथम्भौर राष्ट्रीय अभयारण्य हाड़ौती के पठार के किनारे पर स्थित है। यह [[चंबल नदी]] के उत्तर और [[बनास नदी]] के दक्षिण में विशाल मैदानी भूभाग पर फैला है। अभयारण्य का क्षेत्रफल 392 वर्ग कि.मी. है। इस विशाल अभयारण्य में कई [[झील|झीलें]] हैं, जो वन्यजीवों के लिए अनुकूल प्राकृतिक वातावरण और जलस्रोत उपलब्ध कराती हैं। रणथंभौर अभयारण्य का नाम यहाँ के प्रसिद्ध [[रणथम्भौर क़िला|रणथम्भौर दुर्ग]] पर रखा गया है। | |||
==कैसे पहुँचें== | |||
यह राष्ट्रीय अभयारण्य [[उत्तर भारत]] के सबसे बड़े राष्ट्रीय अभयारण्यों में से एक है। इस अभयारण्य का निकटतम हवाई अड्डा [[कोटा राजस्थान|कोटा]] है, जो यहाँ से केवल 110 कि.मी. की दूरी पर स्थित है, जबकि [[जयपुर]] का सांगानेर हवई अड्डा 130 कि.मी. की दूरी पर है। [[राजस्थान]] के दक्षिण पूर्व में स्थित यह अभयारण्य [[सवाईमाधोपुर ज़िला|सवाईमाधोपुर ज़िले]] में स्थित है, जो [[मध्य प्रदेश]] की सीमा से लगता हुआ है। अभयारण्य सवाईमाधोपुर शहर के रेलवे स्टेशन से 11 कि.मी. की दूरी पर है। सवाईमाधोपुर रेलवे स्टेशन से नजदीकी जंक्शन कोटा है, जहाँ से मेगा हाइवे के जरिए भी रणथंभौर तक पहुंचा जा सकता है। | |||
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रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान
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विवरण | 'रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान' राजस्थान स्थित प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। यह अभयारण्य अपनी खूबसूरती, विशाल परिक्षेत्र और बाघों की मौजूदगी के कारण विश्व प्रसिद्ध है। |
राज्य | राजस्थान |
ज़िला | सवाईमाधोपुर |
स्थापना | 1984 |
भौगोलिक स्थिति | अभयारण्य हाड़ौती के पठार के किनारे पर स्थित है। |
प्रसिद्धि | बाघ संरक्षित क्षेत्र |
कब जाएँ | नवम्बर और मई |
हवाई अड्डा | कोटा, सांगानेर हवई अड्डा, जयपुर |
रेलवे स्टेशन | सवाईमाधोपुर |
संबंधित लेख | राजस्थान, राजस्थान पर्यटन, बाघ, रणथम्भौर क़िला
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अन्य जानकारी | रणथंभौर वन्यजीव अभयारण्य दुनिया भर में बाघों की मौजूदगी के कारण जाना जाता है और भारत में इन जंगल के राजाओं को देखने के लिए भी यह अभयारण्य सबसे अच्छा स्थल माना जाता है। |
रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान के सवाईमाधोपुर ज़िले में स्थित है। यह उत्तर भारत के बड़े राष्ट्रीय उद्यानों में गिना जाता है। 392 वर्ग किलोमीटर में फैले इस उद्यान में अधिक संख्या में बरगद के पेड़ दिखाई देते हैं। यह उद्यान बाघ संरक्षित क्षेत्र है। यह राष्ट्रीय अभयारण्य अपनी खूबसूरती, विशाल परिक्षेत्र और बाघों की मौजूदगी के कारण विश्व प्रसिद्ध है। अभयारण्य के साथ-साथ यहाँ का ऐतिहासिक दुर्ग भी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। लंबे समय से यह राष्ट्रीय उद्यान और इसके नजदीक स्थित रणथंभौर दुर्ग पर्यटकों को विशेष रूप से प्रभावित करता है।
राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा
रणथंभौर उद्यान को भारत सरकार ने 1955 में 'सवाई माधोपुर खेल अभयारण्य' के तौर पर स्थापित किया था। बाद में देशभर में बाघों की घटती संख्या से चिंतित होकर सरकार ने इसे 1973 में 'प्रोजेक्ट टाइगर अभयारण्य' घोषित किया और बाघों के संरक्षण की कवायद शुरू की। इस प्रोजेक्ट से अभयारण्य और राज्य को लाभ मिला और रणथंभौर एक सफारी पर्यटन का प्रमुख केंद्र बन गया। इसके चलते 1984 में रणथंभौर को राष्ट्रीय अभयारण्य घोषित कर दिया गया। 1984 के बाद से लगातार राज्य के अभयारण्यों और वन क्षेत्रों को संरक्षित किया गया। वर्ष 1984 में 'सवाई मानसिंह अभयारण्य' और 'केवलादेव अभयारण्य' की घोषणा भी की गई। बाद में इन दोनो नई सेंचुरी को भी बाघ संरक्षण परियोजना से जोड़ दिया गया।
सरकार की जागरुकता
बाघों की लगातार घटती संख्या ने सरकार की आँखेंं खोल दी और लम्बे समय से रणथंभौर अभयारण्य में चल रही शिकार की घटनाओं पर लगाम कसी गई। स्थानीय बस्तियों को भी संरक्षित वन क्षेत्र से धीरे-धीरे बाहर किया जाने लगा। बाघों के लापता होने और उनकी चर्म के लिए बाघों का शिकार किए जाने के मामलों ने देश के चितंकों को झकझोर दिया था। कई संगठनों ने बाघों को बचाने की गुहार लगाई और वर्ष 1991 के बाद लगातार इस दिशा में प्रयास किए गए। बाघों की संख्या अब भी बहुत कम है और अभयारण्यों से अभी भी बाघ लापता हो रहे हैं। ऐसे में वन विभाग को चुस्त दुरूस्त होना ही है, साथ ही उच्च तकनीकि से भी लैस होने की ज़रूरत है।
बाघों की मौजूदगी
रणथंभौर वन्यजीव अभयारण्य दुनिया भर में बाघों की मौजूदगी के कारण जाना जाता है और भारत में इन जंगल के राजाओं को देखने के लिए भी यह अभयारण्य सबसे अच्छा स्थल माना जाता है। रणथम्भौर में दिन के समय भी बाघों को आसानी से देखा जा सकता है। रणथम्भौर अभयारण्य की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय नवम्बर और मई के महीने हैं। इस शुष्क पतझड़ के मौसम में जंगल में विचरण करते बाघ आसानी से दिखाई देते हैं और उन्हें पानी के स्रोतों के आसपास देखा जा सकता है। रणथम्भौर के जंगल भारत के मध्यक्षेत्रीय शानदार जंगलों का एक हिस्सा थे, लेकिन बेलगाम वन कटाई के चलते भारत में जंगल तेज़ीसे सीमित होते चले गए और यह जंगल मध्य प्रदेश के जंगलों से अलग हो गया।
जीव-जंतु
रणथम्भौर को 'बाघ संरक्षण परियोजना' के तहत जाना जाता है और यहाँ बाघों की अच्छी खासी संख्या भी है। समय-समय पर जब यहाँ बाघिनें शावकों को जन्म देती हैं। तो ऐसे अवसर यहाँ के वन विभाग अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए किसी उत्सव से कम नहीं होते। इस अभयारण्य को "बाघों को अभयारण्य" कहा जाता है लेकिन यहाँ बड़ी संख्या में अन्य वन्यजीवों की मौजूदगी भी है। इनमें तेंदुआ, नील गाय, जंगली सूअर, सांभर, हिरण, भालू और चीतल आदि शामिल हैं। यह अभयारण्य विविध प्रकार की वनस्पति, पेड़-पौधों, लताओं, छोटे जीवों और पक्षियों के लिए विविधताओं से भरा घर है। रणथम्भौर में भारत का सबसे बड़ा बरगद भी एक लोकप्रिय स्थल है।
जानवरों के अलावा पक्षियों की लगभग 264 प्रजातियाँ यहाँ देखी जा सकती हैं। सर्दियों में अनेक प्रवासी पक्षी यहाँ आते हैं। पक्षियों में चील, क्रेस्टड सरपेंट ईगल, ग्रेट इंडियन हॉर्न्ड आउल, तीतर, पेंटेड तीतर, क्वैल, स्परफाइल मोर, ट्री पाई और कई तरह के स्टॉर्क देखे जा सकते हैं। यहाँ राजबाग़ तालाब, पदम तालाब, मिलक तालाब जैसे सुंदर स्थल अनेक प्रकार के जानवरों को आकर्षित करते हैं और इनका शिकार करने की कोशिश में रहते हैं मांसाहारी जानवर। इस उद्यान की झीलों में मगरमच्छ भी हैं। यहाँ जीप सफारी का भी आनंद उठाया जा सकता है।
भौगोलिक स्थिति
रणथम्भौर राष्ट्रीय अभयारण्य हाड़ौती के पठार के किनारे पर स्थित है। यह चंबल नदी के उत्तर और बनास नदी के दक्षिण में विशाल मैदानी भूभाग पर फैला है। अभयारण्य का क्षेत्रफल 392 वर्ग कि.मी. है। इस विशाल अभयारण्य में कई झीलें हैं, जो वन्यजीवों के लिए अनुकूल प्राकृतिक वातावरण और जलस्रोत उपलब्ध कराती हैं। रणथंभौर अभयारण्य का नाम यहाँ के प्रसिद्ध रणथम्भौर दुर्ग पर रखा गया है।
कैसे पहुँचें
यह राष्ट्रीय अभयारण्य उत्तर भारत के सबसे बड़े राष्ट्रीय अभयारण्यों में से एक है। इस अभयारण्य का निकटतम हवाई अड्डा कोटा है, जो यहाँ से केवल 110 कि.मी. की दूरी पर स्थित है, जबकि जयपुर का सांगानेर हवई अड्डा 130 कि.मी. की दूरी पर है। राजस्थान के दक्षिण पूर्व में स्थित यह अभयारण्य सवाईमाधोपुर ज़िले में स्थित है, जो मध्य प्रदेश की सीमा से लगता हुआ है। अभयारण्य सवाईमाधोपुर शहर के रेलवे स्टेशन से 11 कि.मी. की दूरी पर है। सवाईमाधोपुर रेलवे स्टेशन से नजदीकी जंक्शन कोटा है, जहाँ से मेगा हाइवे के जरिए भी रणथंभौर तक पहुंचा जा सकता है।
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वीथिका
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रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान, राजस्थान
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रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान, राजस्थान
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रणथंभौर क़िले से रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान का दृश्य, राजस्थान
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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