कला-संस्कृति और धर्म सामान्य ज्ञान 420: Difference between revisions
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-देव सराय | -देव सराय | ||
-अमी सराय | -अमी सराय | ||
+तलवंडी | +[[तलवंडी]] | ||
-सरायँ अकिल | -सरायँ अकिल | ||
||[[चित्र:Guru-Nanak.jpg|right|border|100px|गुरु नानक]]'गुरु नानक' [[सिक्ख|सिक्खों]] के प्रथम गुरु (आदि गुरु) थे। इनके अनुयायी इन्हें 'गुरु नानक', 'बाबा नानक' और 'नानकशाह' नामों से संबोधित करते हैं। [[गुरु नानक]] [[20 अगस्त]], 1507 को सिक्खों के प्रथम गुरु बने थे। वे इस पद पर [[22 सितम्बर]], 1539 तक रहे। [[पंजाब]] के [[तलवंडी]] नामक स्थान में [[15 अप्रैल]], 1469 को एक किसान के घर गुरु नानक उत्पन्न हुए। यह स्थान [[लाहौर]] से 30 मील पश्चिम में स्थित है। अब यह 'नानकाना साहब' कहलाता है। तलवंडी का नाम आगे चलकर नानक के नाम पर [[ननकाना]] पड़ गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[गुरु नानक]] | |||
{[[गंगा]] के बाद दूसरा बड़ा क्षेत्र किस नदी का है? | {[[गंगा]] के बाद दूसरा बड़ा क्षेत्र किस नदी का है? | ||
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-[[कावेरी नदी|कावेरी]] | -[[कावेरी नदी|कावेरी]] | ||
-[[यमुना]] | -[[यमुना]] | ||
||[[चित्र:Godavari-River.jpg|right|border|100px|गोदावरी नदी]]'गोदावरी नदी' [[भारत]] की प्रसिद्ध नदी है। यह नदी [[दक्षिण भारत]] में पश्चिमी घाट से लेकर पूर्वी घाट तक प्रवाहित होती है। नदी की लंबाई लगभग 900 मील है। यह नदी [[नासिक]] त्रयंबक गाँव की पृष्ठवर्ती पहाड़ियों में स्थित एक बड़े जलागार से निकलती है। मुख्य रूप से नदी का बहाव दक्षिण-पूर्व की ओर है। ऊपरी हिस्से में नदी की चौड़ाई एक से दो मील तक है, जिसके बीच-बीच में बालू की भित्तिकाएँ हैं। [[समुद्र]] में मिलने से 60 मील पहले ही नदी बहुत ही सँकरी उच्च दीवारों के बीच से बहती है। [[बंगाल की खाड़ी]] में दौलेश्वरम् के पास [[डेल्टा]] बनाती हुई यह नदी सात धाराओं के रूप में समुद्र में गिरती है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[गोदावरी नदी]] | |||
{किस पक्षी के बारे में ऐसी मान्यता है कि वह [[स्वर्ग|स्वर्ग लोक]] आता-जाता रहता है? | {किस पक्षी के बारे में ऐसी मान्यता है कि वह [[स्वर्ग|स्वर्ग लोक]] आता-जाता रहता है? | ||
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-[[कोयल]] | -[[कोयल]] | ||
- | -[[बाज़]] | ||
+[[कौआ]] | +[[कौआ]] | ||
-[[गिद्ध|गृद्ध]] | -[[गिद्ध|गृद्ध]] | ||
||[[चित्र:Crow-3.jpg|right|border|100px|कौआ]]'कौआ' [[काला रंग|काले रंग]] का एक पक्षी है। [[राजस्थानी भाषा]] में इसे 'कागला' तथा [[मारवाड़ी भाषा|मारवाड़ी]] में 'हाडा' कहा जाता है। यह [[कबूतर]] के आकार का काला पक्षी है, जो कर्ण कर्कश ध्वनि 'काँव-काँव' करता है। [[भारत]] में कई स्थानों पर काला [[कौआ]] अब दिखाई नहीं देता। बिगड़ रहे पर्यावरण की मार कौओं पर भी पड़ी है। स्थिति यह है कि [[श्राद्ध]] में अनुष्ठान पूरा करने के लिए कौए तलाशने से भी नहीं मिल रहे हैं। कौए के विकल्प के रूप में लोग [[बंदर]], [[गाय]] और अन्य पक्षियों को भोजन का अंश देकर अनुष्ठान पूरा कर रहे हैं। [[हिन्दू धर्म]] में [[श्राद्ध|श्राद्ध पक्ष]] के समय कौओं का विशेष महत्त्व है और प्रत्येक श्राद्ध के दौरान पितरों को खाना खिलाने के तौर पर सबसे पहले कौओं को खाना खिलाया जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कौआ]] | |||
{[[द्वापर युग]] के कुल कितने दिव्य वर्ष माने गए हैं? | {[[द्वापर युग]] के कुल कितने दिव्य वर्ष माने गए हैं? | ||
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-2,100 | -2,100 | ||
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||'द्वापर' चार युगों में तीसरा [[युग]] है। इसका आरम्भ [[भाद्रपद]] [[कृष्ण पक्ष|कृष्ण]] [[त्रयोदशी]] [[गुरुवार|बृहस्पतिवार]] से होता है। यह युद्ध प्रधान युग है, [[मत्स्य पुराण|मत्स्य पुराणानुसार]] द्वापर लगते ही [[धर्म]] का क्षय आरंभ हो जाता है। श्रुति के और स्मृति अनुसार ही धार्मिक निर्णय हुआ करते थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[द्वापर युग]] | |||
{निम्नलिखित में से किस [[संत]] [[कवि]] ने समाज की विद्रूपता एवं रूढ़िवादिता पर अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रहार किया? | {निम्नलिखित में से किस [[संत]] [[कवि]] ने समाज की विद्रूपता एवं रूढ़िवादिता पर अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रहार किया? | ||
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-[[तुलसीदास]] | -[[तुलसीदास]] | ||
-[[रैदास]] | -[[रैदास]] | ||
||[[चित्र:Sant-Kabirdas.jpg|right|border|100px|कबीर]]'कबीर' [[मध्यकालीन भारत]] के स्वाधीनचेता महापुरुष थे और इनका परिचय, प्राय: इनके जीवनकाल से ही, इन्हें सफल साधक, भक्त कवि, मतप्रवर्तक अथवा समाज सुधारक मानकर दिया जाता रहा है तथा इनके नाम पर [[कबीरपंथ]] नामक संप्रदाय भी प्रचलित है। कबीरपंथी इन्हें एक अलौकिक अवतारी पुरुष मानते हैं और इनके संबंध में बहुत-सी चमत्कारपूर्ण कथाएँ भी सुनी जाती हैं। [[कबीर]] [[हिंदी साहित्य]] के [[भक्ति काल]] के इकलौते ऐसे कवि हैं, जो आजीवन समाज और लोगों के बीच व्याप्त आडंबरों पर कुठाराघात करते रहे। वह कर्म प्रधान समाज के पैरोकार थे और इसकी झलक उनकी रचनाओं में साफ़ झलकती है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कबीर]] | |||
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