रोहतक: Difference between revisions

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Revision as of 11:53, 19 January 2011

रोहतक शहर और ज़िला, मध्य हरियाणा राज्य, पश्चिमोत्तर भारत में स्थित है। रोहतक दिल्ली और फ़िरोज़पुर को जोड़ने वाले प्रमुख रेलमार्ग पर स्थित है। यह सड़क मार्ग द्वारा दिल्ली, पानीपत, जींद, हिसार, भिवानी, रिवाड़ी, अम्बाला छावनी और चण्‍डीगढ़ से जुड़ा हुआ है।

इतिहास

कहा जाता है कि पहले रोहतासगढ़ (रोहतास का दुर्ग) कहलाने वाले रोहतक की स्थापना एक पंवार राजपूत राजा रोहतास द्वारा की गई थी। यहाँ 1140 में निर्मित दीनी मस्जिद है। समीप के खोकरा कोट टीले की खुदाई से बौद्ध मूर्तियों के अवशेष मिले हैं।

दक्षिण पंजाब का यह अति प्राचीन नगर है। इसका उल्लेख महाभारत सभापर्व[1] में प्रसंग नकुल की पश्चिम दिशा की दिग्विजय का है जो इस प्रकार है:-

'ततो बहुधनं रम्यं गवाढ्यं धनधान्यवत्,
कार्तिकेयस्य दयितं रोहितकमुपाद्रवत्,
तत्र युद्धं महच्चासीच्छूरैर्मत्तरमूरकैः'

इस प्रदेश को यहाँ बहुत उपजाऊ बताया गया है तथा इसमें मत्तमयूरकों का निवास बताया गया है, जिनके इष्टदेव स्वामी कार्तिकेय थे।[2] इसी प्रसंग में इसके पश्चात ही शेरीषक (वर्तमान सिरसा) का उल्लेख है। उद्योग पर्व[3] में भी रोहितक को कुरुदेश के सन्निकट बताया गया है-दुर्योधन के सहायतार्थ जो सेनाएँ आई थीं, वे रोहतक के पास भी ठहरी थीं-

'तथा रोहिताकारण्यं मरुभूमिश्च केवला,
अहिच्छत्रं कालकूटं गंगाकूलं चं भारत'

रोहतक के पास उस समय वन प्रदेश रहा होगा, जिसे यहाँ रोहिताकारण्य कहा गया है। कर्ण ने भी रोहितक निवासियों को जीता था, 'भद्रान् रोहितकांश्चैव आग्रेयान् मालवानपि,'।[4] प्राचीन नगर की स्थिति वर्तमान खोखराकोट के पास कही जाती है।

उद्योग और व्यापार

रोहतक अनाज और कपास का प्रमुख बाज़ार है। यहाँ की औद्योगिक गतिविधियों में खाद्य उत्पाद, कपास की ओटाई, चीनी और बिजली के करघे पर बुनाई का काम उल्लेखनीय है।

शिक्षक संस्थान

रोहतक में महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय है, जिससे सम्बद्ध अनेक महाविद्यालयों में जी. बी. आयुर्वेदिक कालेज, रोहतक मेडिकल कालेज, आई. सी. कालेज और वैश कालेज आफ़ इंजीनियरिंग शामिल हैं।

जनसंख्या

2001 की गणना के अनुसार रोहतक शहर की जनसंख्या 2,86,773 है। और रोहतक ज़िले की कुल जनसंख्या 9,40,036 है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत, सभापर्व 32,4-5
  2. मयूर, कार्तिकेय का वाहन माना जाता है।
  3. महाभारत, उद्योगपर्व 19,30
  4. वनपर्व 254,20

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