सातकर्णि: Difference between revisions

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Revision as of 11:59, 19 February 2011

  • कृष्ण के बाद उसका भतीजा (सिमुक का पुत्र) प्रतिष्ठान के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ।
  • उसने सातवाहन राज्य का बहुत विस्तार किया।
  • उसका विवाह नायनिका या नागरिका नाम की कुमारी के साथ हुआ था, जो एक बड़े महारथी सरदार की दुहिता थी।
  • इस विवाह के कारण सातकर्णि की शक्ति बहुत बढ़ गई, क्योंकि एक शक्तिशाली महारथी सरदार की सहायता उसे प्राप्त हो गई।
  • सातकर्णि के सिक्कों पर उसके श्वसुर अंगीयकुलीन महारथी त्रणकयिरो का नाम भी अंकित है।
  • शिलालेखों में उसे 'दक्षिणापथ' और 'अप्रतिहतचक्र' विशेषणों से विभूषित किया गया है।
  • अपने राज्य का विस्तार कर इस प्रतापी राजा ने राजसूय यज्ञ किया, और दो बार अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान किया था, क्योंकि सातकर्णी का शासनकाल मौर्य वंश के ह्रास काल में था, अतः स्वाभाविक रूप से उसने अनेक ऐसे प्रदेशों को जीत कर अपने अधीन किया होगा, जो कि पहले मौर्य साम्राज्य के अधीन थे। अश्वमेध यज्ञों का अनुष्ठान इन विजयों के उपलक्ष्य में ही किया गया होगा।
  • सातकर्णी के राज्य में भी प्राचीन वैदिक धर्म का पुनरुत्थान हो रहा था।
  • शिलालेखों में इस राजा के द्वारा किए गए अन्य भी अनेक यज्ञों का उल्लेख है। इनमें जो दक्षिणा सातकर्णि ने ब्राह्मण पुरोहितों में प्रदान की, उसमें अन्य वस्तुओं के साथ 47,200 गौओं, 10 हाथियों, 1000 घोड़ों, 1 रथ और 68,000 कार्षापणों का भी दान किया गया था।
  • इसमें सन्देह नहीं कि सातकर्णी एक प्रबल और शक्ति सम्पन्न राजा था।
  • कलिंगराज खारवेल ने विजय यात्रा करते हुए उसके विरुद्ध शस्त्र नहीं उठाया था, यद्यपि हाथीगुम्फ़ा शिलालेख के अनुसार वह सातकर्णी की उपेक्षा दूर-दूर तक आक्रमण कर सकने में समर्थ हो गया था।
  • सातकर्णी देर तक सातवाहन राज्य का संचालन नहीं कर सका। सम्भवतः एक युद्ध में उसकी मृत्यु हो गई थी, और उसका शासन काल केवल दस वर्ष (172 से 162 ई. पू. के लगभग) तक रहा था।
  • अभी उसके पुत्र वयस्क नहीं हुए थे। अतः उसकी मृत्यु के अनन्तर रानी नायनिका ने शासन-सूत्र का संचालन किया।
  • पुराणों में सातवाहन राजाओं को आन्ध्र और आन्ध्रभृत्य भी कहा गया है। इसका कारण इन राजाओं का या तो आन्ध्र की जाति का होना है, और या यह भी सम्भव है कि इनके पूर्वज पहले किसी आन्ध्र राजा की सेवा में रहे हों।
  • इनकी शक्ति का केन्द्र आन्ध्र में न होकर महाराष्ट्र के प्रदेश में था।
  • पुराणों में सिमुक या सिन्धुक को आन्ध्रजातीय कहा गया है। इसीलिए इस वंश को आन्ध्र-सातवाहन की संज्ञा दी जाती है।

 



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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