श्रवणबेलगोला मैसूर: Difference between revisions

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श्रवणबेलगोला महल [[कर्नाटक]] के [[मैसूर]] शहर मे स्थित है। श्रवणबेलगोला मैसूर से 84 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ का मुख्य आकर्षण गोमतेश्वर/ बाहुबलि स्तंभ है। बाहुबलि मोक्ष प्राप्त करने वाले प्रथम तीर्थंकर थे। श्रवणबेलगोला नामक कुंड पहाड़ी की तराई में स्थित है। बारह वर्ष में एक बार होने वाले महामस्ताभिषेक में बड़ी संख्या में लोग भाग लेते हैं। यहाँ पहुँचने के रास्ते में छोटे जैन मंदिर भी देखे जा सकते हैं।
श्रवणबेलगोला महल [[कर्नाटक]] के [[मैसूर]] शहर में स्थित है। श्रवणबेलगोला मैसूर से 84 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ का मुख्य आकर्षण गोमतेश्वर/ बाहुबलि स्तंभ है। बाहुबलि मोक्ष प्राप्त करने वाले प्रथम तीर्थंकर थे। श्रवणबेलगोला नामक कुंड पहाड़ी की तराई में स्थित है। बारह वर्ष में एक बार होने वाले महामस्ताभिषेक में बड़ी संख्या में लोग भाग लेते हैं। यहाँ पहुँचने के रास्ते में छोटे जैन मंदिर भी देखे जा सकते हैं।


यह स्थान चन्द्रबेत और इन्द्रबेत नामक पहाड़ियों के बीच स्थित है। प्राचीनकाल में यह स्थान जैन धर्म एवं संस्कृति का महान केन्द्र था। जैन अनुश्रुति के अनुसार मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त ने अपने राज्य का परित्याग कर अंतिम दिन मैसूर के श्रवणबेलगोला में व्यतीत किये। यहाँ के गंग शासक रचमल्ल के शासनकाल में चामुण्डराय नामक मंत्री ने लगभग 983 ई. में बाहुबलि (गोमट) की विशालकाय जैन मूर्ति का निर्माण करवाया था। यह प्रतिमा विंद्यागिरी नामक पहाड़ी से भी दिखाई देती है। [[बाहुबलि]] प्रथम [[तीर्थंकर ऋषभनाथ]] के पुत्र माने जाते हैं। कहा जाता है कि बाहुबलि ने अपने बड़े भाई भरत के साथ हुए घोर संघर्ष के पश्चात् जीता हुआ राज्य उसी को लौटा दिया था। बाहुबलि को आज भी [[जैन धर्म]] में विशिष्ट स्थान प्राप्त है। श्रवणबेलगोला की एक छोटी पहाड़ी की चोटी पर स्थापित यह प्रतिमा 56 फुट से भी अधिक ऊँची है। यह कठोरतम प्रकार के एक ही पाषाण खण्ड द्वारा निर्मित है। इस मूर्ति में शाक्ति तथा साधुत्व और बल तथा औदार्य की उदात्त भावनाओं का अपूर्व प्रदर्शन हुआ है। साहसपूर्ण कल्पना तथा कार्य सम्पादन की कठिनाइयों के विचार से इसके जोड़ की दूसरी नक़्क़ाशी सम्भवतः दुनिया में दूसरी नहीं है।  
यह स्थान चन्द्रबेत और इन्द्रबेत नामक पहाड़ियों के बीच स्थित है। प्राचीनकाल में यह स्थान जैन धर्म एवं संस्कृति का महान केन्द्र था। जैन अनुश्रुति के अनुसार मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त ने अपने राज्य का परित्याग कर अंतिम दिन मैसूर के श्रवणबेलगोला में व्यतीत किये। यहाँ के गंग शासक रचमल्ल के शासनकाल में चामुण्डराय नामक मंत्री ने लगभग 983 ई. में बाहुबलि (गोमट) की विशालकाय जैन मूर्ति का निर्माण करवाया था। यह प्रतिमा विंद्यागिरी नामक पहाड़ी से भी दिखाई देती है। [[बाहुबलि]] प्रथम [[तीर्थंकर ऋषभनाथ]] के पुत्र माने जाते हैं। कहा जाता है कि बाहुबलि ने अपने बड़े भाई भरत के साथ हुए घोर संघर्ष के पश्चात् जीता हुआ राज्य उसी को लौटा दिया था। बाहुबलि को आज भी [[जैन धर्म]] में विशिष्ट स्थान प्राप्त है। श्रवणबेलगोला की एक छोटी पहाड़ी की चोटी पर स्थापित यह प्रतिमा 56 फुट से भी अधिक ऊँची है। यह कठोरतम प्रकार के एक ही पाषाण खण्ड द्वारा निर्मित है। इस मूर्ति में शाक्ति तथा साधुत्व और बल तथा औदार्य की उदात्त भावनाओं का अपूर्व प्रदर्शन हुआ है। साहसपूर्ण कल्पना तथा कार्य सम्पादन की कठिनाइयों के विचार से इसके जोड़ की दूसरी नक़्क़ाशी सम्भवतः दुनिया में दूसरी नहीं है।  

Revision as of 08:05, 20 February 2011

श्रवणबेलगोला महल कर्नाटक के मैसूर शहर में स्थित है। श्रवणबेलगोला मैसूर से 84 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ का मुख्य आकर्षण गोमतेश्वर/ बाहुबलि स्तंभ है। बाहुबलि मोक्ष प्राप्त करने वाले प्रथम तीर्थंकर थे। श्रवणबेलगोला नामक कुंड पहाड़ी की तराई में स्थित है। बारह वर्ष में एक बार होने वाले महामस्ताभिषेक में बड़ी संख्या में लोग भाग लेते हैं। यहाँ पहुँचने के रास्ते में छोटे जैन मंदिर भी देखे जा सकते हैं।

यह स्थान चन्द्रबेत और इन्द्रबेत नामक पहाड़ियों के बीच स्थित है। प्राचीनकाल में यह स्थान जैन धर्म एवं संस्कृति का महान केन्द्र था। जैन अनुश्रुति के अनुसार मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त ने अपने राज्य का परित्याग कर अंतिम दिन मैसूर के श्रवणबेलगोला में व्यतीत किये। यहाँ के गंग शासक रचमल्ल के शासनकाल में चामुण्डराय नामक मंत्री ने लगभग 983 ई. में बाहुबलि (गोमट) की विशालकाय जैन मूर्ति का निर्माण करवाया था। यह प्रतिमा विंद्यागिरी नामक पहाड़ी से भी दिखाई देती है। बाहुबलि प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ के पुत्र माने जाते हैं। कहा जाता है कि बाहुबलि ने अपने बड़े भाई भरत के साथ हुए घोर संघर्ष के पश्चात् जीता हुआ राज्य उसी को लौटा दिया था। बाहुबलि को आज भी जैन धर्म में विशिष्ट स्थान प्राप्त है। श्रवणबेलगोला की एक छोटी पहाड़ी की चोटी पर स्थापित यह प्रतिमा 56 फुट से भी अधिक ऊँची है। यह कठोरतम प्रकार के एक ही पाषाण खण्ड द्वारा निर्मित है। इस मूर्ति में शाक्ति तथा साधुत्व और बल तथा औदार्य की उदात्त भावनाओं का अपूर्व प्रदर्शन हुआ है। साहसपूर्ण कल्पना तथा कार्य सम्पादन की कठिनाइयों के विचार से इसके जोड़ की दूसरी नक़्क़ाशी सम्भवतः दुनिया में दूसरी नहीं है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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