स्याही (लेखन सामग्री): Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
m (Adding category Category:प्राचीन भारत लेखन सामग्री (को हटा दिया गया हैं।)) |
||
Line 21: | Line 21: | ||
[[Category:इतिहास_कोश]][[Category:भाषा_और_लिपि]] | [[Category:इतिहास_कोश]][[Category:भाषा_और_लिपि]] | ||
[[Category:नया पन्ना]] | [[Category:नया पन्ना]] | ||
[[Category:प्राचीन भारत लेखन सामग्री]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 14:12, 3 February 2011
प्राचीन भारत की लेखन सामग्री में स्याही एक लेखन सामग्री है। प्राचीन भारत में हस्तलिपियों के लिए विभिन्न प्रकार की स्याही का उपयोग होता था। मगर सबसे ज़्यादा इस्तेमाल काली स्याही का ही होता था, जिसे संस्कृत में ‘मसि’ या ‘मषी’ कहा जाता था। यह बहुत पुराना शब्द है और एक गृह्यसूत्र में देखने को मिलता है। कवि बाण (लगभग 620 ई.) और उनके पूर्ववर्ती सुबंधु की कृति वासवदत्ता में भी यह देखने को मिलता है। ‘मसी कज्जलम्’ शब्दों से सहज स्पष्ट है कि, प्रमुखत: काजल से ही स्याही तैयार की जाती थी।
काली स्याही
काली स्याही तैयार करने के कई तरीक़े थे। काग़ज़ पर लिखने के लिए स्याही बनाने का एक आम नुस्खा था। बढ़िया लाख को लेकर उसे पीसते हैं। फिर उसे हंडिया में रखे हुए पानी में डालकर आग पर चढ़ाते हैं। फिर उसमें सुहागा और लोध पीसकर डालते हैं। उस मिश्रण को तब तक उबाला जाता है, जब तक पानी मूल के एक-चौथाई नहीं रह जाता। तब उसमें तिलों के तेल के दीपक के काग़ज़ को मिलाकर उसे सूखने दिया जाता है। इस तरह पक्की काली स्याही तैयार हो जाती थी। ताड़पत्र पर शलाका से लिखने के बाद डाली जाने वाली स्याही नारियल या बादाम के छिलकों को जलाकर प्राप्त किए गए कोयलों से बनाई जाती थी।
- गेरू, सिन्दूर और हिंगुल से बनाई गई लाल स्याही का उपयोग अध्याय की समाप्ति का अंश लिखने और पन्ने के दाएँ-बाएँ के हाशिए की खड़ी लकीरें तथा ज्यामितीय आकृतियाँ बनाने में किया जाता था।
- हरिताल से बनाई गई पीली स्याही का उपयोग ताड़पत्र और काग़ज़ दोनों पर होता था। मगर इसका अधिक उपयोग काग़ज़ और कपड़े की हस्तलिपियों से अनावश्यक अक्षरों को मिटाने के लिए किया जाता था।
- सोना और चाँदी की धातुएँ काफ़ी महँगी होती थीं, इसलिए सुनहरी और रूपहरी स्याही का उपयोग अधिकतर महत्वपूर्ण धर्मग्रन्थ लिखने के लिए होता था। अजिंठा (अजन्ता) और वेरूल (एलोरा) के चित्रों में स्वर्णरंग का उपयोग हुआ है।
- नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में 1439 ई. में लिखित कल्पसूत्र[1] की सचित्र हस्तलिपि है। उसमें सोने की स्याही से किरमिजी पृष्ठभूमि में पाठ को लिखा गया है और लाल पृष्ठभूमि में चित्रों को बनाया गया है।
|
|
|
|
|