विलियम पिट (कनिष्ठ): Difference between revisions
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'''1773 ई. का''' [[रेग्युलेटिंग एक्ट]] पास होने के बाद जो एक दशक बीता था, उसमें भारत में ब्रिटिश प्रशासन के अनेक दोष उजागर हुए थे और उनको दूर करना आवश्यक समझा जा रहा था। अतएव प्रधानमंत्री नियुक्त होने के बाद पिट ने जो पहला | '''1773 ई. का''' [[रेग्युलेटिंग एक्ट]] पास होने के बाद जो एक दशक बीता था, उसमें भारत में ब्रिटिश प्रशासन के अनेक दोष उजागर हुए थे और उनको दूर करना आवश्यक समझा जा रहा था। अतएव प्रधानमंत्री नियुक्त होने के बाद पिट ने जो पहला महत्त्वपूर्ण क़दम उठाया, वह इंडिया एक्ट ([[पिट एक्ट]]) पास करना था। इस एक्ट के द्वारा भारत के प्रशासन पर ब्रिटिश पार्लियामेंट का नियंत्रण अधिक दृढ़ बना दिया गया, एक [[बोर्ड ऑफ़ कन्ट्रोल]] की स्थापना की गई तथा [[बंगाल]] के [[गवर्नर-जनरल]] तथा उसकी कौंसिल [[बम्बई]] तथा [[मद्रास]] प्रेसीडेंसी के आंतरिक तथा बाह्य प्रशासन पर नियंत्रण करने के अधिक अधिकार प्रदान किये गये। | ||
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'''पिट का इंडिया एक्ट पास होने पर''' [[वारेन हेस्टिंग्स]] ने, जो कि उस समय बंगाल का गवर्नर-जनरल था, इस्तीफ़ा दे दिया। इसके बाद ही ब्रिटिश पार्लियामेंट में भारतीय प्रशासन का सर्वेक्षण आरम्भ किया गया। पिट ने [[नंद कुमार]] की फ़ाँसी तथा रुहेला युद्ध के प्रश्न पर वारेन हेस्टिंग्स के पक्ष में वोट दिया, किन्तु [[चेतसिंह]] तथा [[अवध की बेगमें|अवध की बेगमों]] के प्रश्न पर उसके विरुद्ध वोट दिया। अतएव 1788 ई. में हेस्टिंग्स पर महाभियोग चलाया गया, यद्यपि सात साल के मुक़दमें के बाद उसे बरी कर दिया गया। किन्तु पिट ने वारेन हेस्टिंग्स को 'पिअर' की पदवी से सम्मानित करना स्वीकार नहीं किया। इससे प्रकट होता है कि उसके बारे में उसका क्या मूल्यांकन था। | '''पिट का इंडिया एक्ट पास होने पर''' [[वारेन हेस्टिंग्स]] ने, जो कि उस समय बंगाल का गवर्नर-जनरल था, इस्तीफ़ा दे दिया। इसके बाद ही ब्रिटिश पार्लियामेंट में भारतीय प्रशासन का सर्वेक्षण आरम्भ किया गया। पिट ने [[नंद कुमार]] की फ़ाँसी तथा रुहेला युद्ध के प्रश्न पर वारेन हेस्टिंग्स के पक्ष में वोट दिया, किन्तु [[चेतसिंह]] तथा [[अवध की बेगमें|अवध की बेगमों]] के प्रश्न पर उसके विरुद्ध वोट दिया। अतएव 1788 ई. में हेस्टिंग्स पर महाभियोग चलाया गया, यद्यपि सात साल के मुक़दमें के बाद उसे बरी कर दिया गया। किन्तु पिट ने वारेन हेस्टिंग्स को 'पिअर' की पदवी से सम्मानित करना स्वीकार नहीं किया। इससे प्रकट होता है कि उसके बारे में उसका क्या मूल्यांकन था। |
Revision as of 10:45, 13 March 2011
विलियम पिट (कनिष्ठ) ब्रिटेन का 1783 ई. से 1801 ई. तक प्रधानमंत्री रहा। उसने मुख्य रूप से भारत में ब्रिटिश प्रशासन के प्रश्न पर चुनाव जीता था।
पिट एक्ट
1773 ई. का रेग्युलेटिंग एक्ट पास होने के बाद जो एक दशक बीता था, उसमें भारत में ब्रिटिश प्रशासन के अनेक दोष उजागर हुए थे और उनको दूर करना आवश्यक समझा जा रहा था। अतएव प्रधानमंत्री नियुक्त होने के बाद पिट ने जो पहला महत्त्वपूर्ण क़दम उठाया, वह इंडिया एक्ट (पिट एक्ट) पास करना था। इस एक्ट के द्वारा भारत के प्रशासन पर ब्रिटिश पार्लियामेंट का नियंत्रण अधिक दृढ़ बना दिया गया, एक बोर्ड ऑफ़ कन्ट्रोल की स्थापना की गई तथा बंगाल के गवर्नर-जनरल तथा उसकी कौंसिल बम्बई तथा मद्रास प्रेसीडेंसी के आंतरिक तथा बाह्य प्रशासन पर नियंत्रण करने के अधिक अधिकार प्रदान किये गये।
भारतीय प्रशासन सर्वेक्षण
पिट का इंडिया एक्ट पास होने पर वारेन हेस्टिंग्स ने, जो कि उस समय बंगाल का गवर्नर-जनरल था, इस्तीफ़ा दे दिया। इसके बाद ही ब्रिटिश पार्लियामेंट में भारतीय प्रशासन का सर्वेक्षण आरम्भ किया गया। पिट ने नंद कुमार की फ़ाँसी तथा रुहेला युद्ध के प्रश्न पर वारेन हेस्टिंग्स के पक्ष में वोट दिया, किन्तु चेतसिंह तथा अवध की बेगमों के प्रश्न पर उसके विरुद्ध वोट दिया। अतएव 1788 ई. में हेस्टिंग्स पर महाभियोग चलाया गया, यद्यपि सात साल के मुक़दमें के बाद उसे बरी कर दिया गया। किन्तु पिट ने वारेन हेस्टिंग्स को 'पिअर' की पदवी से सम्मानित करना स्वीकार नहीं किया। इससे प्रकट होता है कि उसके बारे में उसका क्या मूल्यांकन था।
प्रस्ताव समर्थक
पिट के प्रधान मंत्रित्वकाल में लॉर्ड कार्नवालिस (1786-93 ई.), सर जॉन शोर (1793-98 ई.) तथा लॉर्ड वेलेजली (1798-1805 ई.) गवर्नर-जनरल रहे। लॉर्ड कार्नवालिस से पिट के सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण थे और उसने उसके बंगाल में स्थाई बन्दोबस्त करने का प्रस्ताव का समर्थन किया। उसने लॉर्ड वेलेजली का भी उसके प्रशासनकाल के प्रारम्भिक वर्षों में समर्थन किया। परन्तु जब लॉर्ड वेलेजली ने युद्धों का एक अंतहीन सिलसिला जारी कर दिया तो पिट ने उसका समर्थन करना बंद कर दिया।
मृत्यु
1805 ई. में लॉर्ड वेलेजली को वापस बुला कर उसके स्थान पर लॉर्ड कार्नवालिस को भेजा गया। 1806 ई. में पिट की मृत्यु हो गई।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
(पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-241