प्रयोग:गोविन्द 3: Difference between revisions
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भाषा | भाषा लिपि का मामला आ गया, इसमें आप हिन्दी को देखें। [[हिन्दी]] के बारे में आपको इस पर अच्छी जानकारी मिलेगी, कहाँ-कहाँ इसका विकास हुआ। कैसे-कैसे इसकी [[वर्तनी (हिन्दी)|वर्तनी]] बदली, कैसे- कैसे [[देवनागरी लिपि|देवनागरी]] का विकास हुआ, आप देख सकते है इसमें। हिन्दी भाषा के सम्बन्ध में यह कहना चाहता हूँ [[हिन्दी संस्थान]] के साथ भारत कोश का एक भाई चारे का पुल जैसा बन जाये, एक औपचारिक जैसा कोई ऐसा हो जाये जिससे कि काम वो भी वही कर रहें हैं। हम भी वही कर रहें हैं। ऐसी बहुत सी चीजें हो सकती जिससे हमें लाभ हो जाये। इसमें विचार करियेगा। दूसरा '''यहाँ बात हो रही थीं हिन्दी के शब्दों कि जैसे कि विजय जी ने कहा था।''' बहुत से शब्द ऐसे है जिनके बारे में विचार करना है। उन्हें ऐसे का ऐसे ही ले लिया जाये या उनका क्या किया जाये उसके लिये मेरा कहना यही हैं कि [[अंग्रेज़ी]] की जो वर्तनी है, उसका जो शब्द कोश है वो विश्व का सबसे बड़ा शब्दकोश है, जहाँ तक मैं जानता हूँ। उसका कारण ये है कि वो सारी भाषाओं के शब्दों को अपनी डिक्शनरी (कोश) में जोड़ देते हैं, अभी जैसे पहले से बहुत से शब्द जुड़े हुए हैं '''मंत्र, गुरु, अवतार''' अवतार तो फ़िल्म भी आ गई, अवतार हमारे फ़िल्म वो बना रहे है तो अभी पिछले क़रीब 40 – 45 शब्द पिछ्ले साल और जोड़ दिये उन्होंने। जिनमें एक शब्द जोड़ा उन्होंने ‘जय हो’ (उपस्थित श्रोतागण में से- धोती जोड़ा है, हर प्रांत में धोती का प्रयोग हो रहा है इसलिए उन्होंने जोड लिया है ... जी) आप भारतकोश पर संपादन का कार्य शुरू करिये (श्रोता- बहुत सही) तो इसलिए बहुत से शब्द वो जोड़ लिए गये हैं। हम इसमें कभी कभी संकोच कर रहे है। अब कुछ समस्या मेरे सामने आ जाती हैं इसमें भारतकोश से संबंधित उसके लिए तमाम डिक्शनरी कंसर्ल्ट करनी पड़ती है और समांतर कोश ([[अरविन्द कुमार|अरविन्द जी]] का) वो भी देखना पड़ता है लेकिन कुछ ऐसी दिक्कत हैं जिनके लिए मैं क्या करूँ। जैसे- एक शब्द है अंग्रेज़ी में '''déjà vu''' जैसे मैं इस हॉल में आया मुझे ऐसा लगा कि पहले भी मैं कभी यहाँ आया हूँ। किसी को मैंने देखा लगा कि मैंने पहले भी कहीं देखा है ये शायद पहले भी कहीं देखा है। ये परिस्थिति ये सिचुएशन जो है ये '''déjà vu''' है इसके लिए अंग्रेज़ी में कोई शब्द ही नहीं था तो ये फ़्रेंच वर्ड जो है फ़्रांसीसी भाषा का शब्द déjà vu इन्होंने अंग्रेज़ी में ले लिया। इसका उल्टा है''' jamais vu''' jamais vu वो कि ये मैंने कभी नहीं देखा। एक वैज्ञानिक तथ्य ये है कि अगर किसी शब्द को हम 32 बार लिखें तो 33 वीं बार लिखने पर ग़लती होने की संभावना हो जाएगी। आप 32 बार तक उसे लिखते रहें तब तक ये चलता रहता है। कारण ये है कि जैसे आप कार चलाते तो कहते हैं ना कि जब कार चलाना सीख जाते हैं उससे एक्सीडेंट होने की संभावना ज़्यादा होती है ऐसे ही हमारे जो बहुत ज़्यादा देखे हुए चेहरे हैं उन्हें हम भूल जाते हैं। जैसे अपनी माँ का चेहरा कोई भी दुनिया में ऐसा पेंटर नहीं हैं, ये मैं कोई अपनी कहीं बात नहीं कह रहा हूँ, मैं आपको एक वैज्ञानिक तथ्य बता रहा हूँ। कोई ऐसा पेंटर नहीं हैं दुनिया में जो बिना फोटो देखें अपनी माँ का चित्र बना दे, क्योंकि माँ हमारे लिए चेहरा है ही नहीं वो उतना ज़्यादा अपना है। यह शब्द है jamais vu इसकी हिन्दी क्या लिखें? क्या हमें '''déjà vu और jamais vu''' जैसे बहुत से शब्द लेने ही चाहिए, इसमें दिक्कत क्या हैं पर ये अंग्रेज़ी तो नहीं, ये फ़्रासीसी है अगर ये अंग्रेज़ी भी हो तब भी क्या है, तो यह बात मेरी है। अभी तक ऐसे अंग्रेज़ी के प्रयोग भारत कोश पर अभी तक नहीं कर रहे है क्योंकि हमारी कोई बातचीत नहीं हुई, और मैं आपको मजेदार बात यह बताऊ कि हमारे भारत कोश में कोई हिन्दी विद्वान नहीं हैं। | ||
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यह [[भूगोल]], [[विज्ञान]], [[खेल]] और प्रौद्योगिकी इसके सम्बन्ध में कुछ दर्शन, [[संस्कृति]] और [[कला]] इसके पन्ने हैं, धर्म, सम्बन्ध में आप देख सकते है। आपको दर्शन तो शायद भारत कोश के अलावा और कहीं किसी वेबसाइट पर नहीं मिलेगें। [[सांख्य दर्शन]], वैशेषिक दर्शन इनको कौन पढ़ता, कौन देखता हैं [[चार्वाक दर्शन|चार्वाक]] को कौन देख रहा है। आप देखें, यह आपको भारत कोश पर मिलेगें। और-और जोड़े जा रहे हैं, उसमें आप अपने सुझाव दे सकते है, यें जोड़ो - वो जोड़ो, हम कर सकते हैं। इसका 3500 नये पन्नों का लक्ष्य है। | |||
==संपादन सुविधा== | |||
भारत कोश पर संपादन की सुविधा उपलब्ध है। भारत कोश पर कुछ विशेष क्षेत्रों पर संपादन कर पाए और उनके संपादन को कोई और दूसरा छेड़े नहीं। यह व्यवस्था हम कर सकते है, अगर हमारा सामंजस्य इस तरीक़े का [[हिन्दी संस्थान]] के साथ बन जाता है। शिक्षा के सम्बन्ध में, बहुत शुभ समाचार मैं आपको देना चाहता हूँ। अभी यहाँ कई बार जिक्र चला था कि हिन्दी को हमें बचाना हैं, हिन्दी ख़त्म हो रही है, यह ग़लत बात है, इस तरह की बातें हैं ऐसा कुछ भी नहीं। हिन्दी रोजाना बढ़ रही उसका सबूत मैं आपको दे सकता हूँ। यहाँ आई.आई टी. के बैठे हुए है आप, अभी जो 2009 में हिन्दी भाषी क्षेत्रों से लगभग 4,800 छात्रों ने आई.आई टी. पास किया हैं। परीक्षा उत्तीर्ण की। उनमें 184 छात्रों ने हिन्दी माध्यम चुना। लेकिन अगले साल कमाल हो गया, अगले साल कमाल यह हुआ यह संख्या 3 गुनी बढ़ गई, 554 हो गई। 4 प्रतिशत से 11 प्रतिशत पर पहुँच गई। एक साल में 3-3 गुने बढ़ रहे है। अरे 200 साल अंग्रेज़ी थोपी गई हैं हमारे ऊपर 200 साल। तो कुछ समझ होनी चाहिए दुबारा से हिन्दी को आने दो, हिन्दी आएगी,आ गई है। और छा जाएगी। लेकिन,कुछ छोटी-छोटी हमें शायद सरकार की भी तरफ से करनी पढ़े। मेरा यह सुझाव है। जैसे मान लिजिए, यह बोतल इसमें अंग्रेज़ी में लिखा हुआ है, हमें चीज़े ऐसी चुननी पड़ेगी जिनका सीधा सम्बन्ध है हमसें, जैसे यह बोतल है जिस पर अंग्रेज़ी में लिखा हुआ है। यह सब कुछ हिन्दी में होना चाहिए। ऊपर या गोगनी में हो, यहाँ की भाषा में, या बंगाली में हो मद्रासी में हो, कही की भाषा में हो लेकिन, नीचे वो हो अंग्रेज़ी फिर सब जब इसी नाम से मागेगें। उन्हें वॉशिंग मशीन हिन्दी नाम से मिलेगी। उन्हें टी.वी. हिन्दी के नाम से मिलेगा, उन्हें ये सब हिन्दी के नाम से मिलेगा। तो जल्दी फैलाओ यह सब। भारत कोश पर हमने सामान्य ज्ञान की भी सुविधा शुरू कर दी है, सामान्य ज्ञान में जो वस्तुनिष्ठ प्रश्न होते है उनकी प्रश्नावलियाँ बना दी जिससे की जो छात्र हैं,उनको सुविधा मिले। जो कॉम्पटीश्न में जाते हैं, जो आई. एस का एग्जाम, जो बैकों में एग्जाम देने जाते हैं। वो इस तरह की परीक्षा देने जाते हैं। उन्हें तमाम किताबें मोटी-मोटी जो तीन-तीन चार-चार हज़ार के जो हिन्दी कोचिंग होती उससे हम रिजात लेना चाहते हैं। जल्दी ऐसी कोशिश हमारी होगी। हमें अगर कहीं से प्रोत्साहन मिलता है तो हमारी तेजी बढ़ जायेगी काम करने की। |
Revision as of 09:48, 15 February 2011
भारतकोश: गोवा प्रस्तुतिकरण
मैं यहाँ बैठा पीछे सुन रहा था। बातें हो रही थीं, डॉ. साहब यहाँ बोल रहे थे वो बता रहे थे, कि हिन्दी के सम्बन्ध में कुछ नहीं हो पा रहा है। सरकार की कुछ आलोचना हो रही थी और सरकारी अधिकारियों की भी आलोचना हो रही थी। इस संबंध में मेरे विचार थोड़े से अलग है। वो क्यों हैं कैसे हैं वो मैं आपको बताता हूँ। हमने एक वेबसाइट बना दी है भारत कोश इसमें स्थिति अब यह है कि 20 हज़ार से ज़्यादा पन्ने हैं, आठ हजार से अधिक लेख हैं इसमें और ये हिन्दी में हैं। ये अव्यावसायिक मिशन है, शैक्षिक मिशन है, इसमें किसी प्रकार का कोई शुल्क आपको नहीं देना होता और संपादन सुविधा भी उपलब्ध है। इससे पहले मैं आपको कुछ तस्वीर दिखाना चाहता हूँ। ये एक चेहरा है, एक तस्वीर है।
कुछ दिन पहले 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' में एक समाचार आया था। यह मिश्री देवी है हरियाणा की। इन्होंने एक करिश्मा किया है, कमाल किया है। इन्होंने कमाल ये किया है कि ये अपाहिज है और इनके दस बच्चे हैं, जिनमें पाँच लड़कियाँ और पाँच लड़के। इन्होंने उनको पाला और पढ़ाया और यहाँ तक पढ़ाया कि एक बेटे को हरियाणा में आई.ए.एस. ऑफ़िसर बना दिया और तरीक़ा क्या था इनका पालने का, कि खेतों में जब कटाई होती और अनाज रह जाता है खेत में पीछे, उसका एक-एक दाना चुन के गेहूँ का-सरसों का। उन दानों को इकठ्ठा करके यह बाज़ार ले जाती थीं। और अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवाती थीं। इन्हें सर्वोत्तम माँ का पुरस्कार मिला है, भारत सरकार की ओर से। आपको शायद जानकारी हो, मैं तो ख़ैर व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता, जो मैं कह रहा हूँ वो सही है?
तो इनसे और इस तरह कि चीजें हैं उनसे हमको प्रेरणा मिलती है। इन्होंने किसी सरकारी अधिकारी से कोई शिक़ायत नहीं की। इन्होंने जाकर किसी सरकारी योजना, किसी मंत्री से किसी की आलोचना नहीं की; कि हमारी कोई मदद नहीं कर रहा, हमारे लिए कोई कुछ नहीं कर रहा। इन्होंने जो करना था सो कर ही डाला। इन्हें अपने बेटे को आई.ए.एस. बनाना था सो बना ही डाला। ऐसा ही कुछ, ऐसा ही भारत कोश के साथ हम लोग कर रहें हैं। हमारी छोटी सी टीम है उस टीम में अधिकतर छात्र हैं 18-18, 20-20 साल के जो धुंआ-धार लगे हुए हैं। एक बार इस वेबसाइट को देखियेगा तसल्ली होगी। आपको ये छोटे-छोटे छात्र जो पीछे बैठे हुए है, ऐसे ही छात्र उस पर काम रहें हैं, और उससे लाभ भी उठा रहें हैं।
भारत कोश क्यों
भारत कोश बनाने की ज़रूरत क्यों पैदा हुई, तमाम इतनी वेबसाइट हैं इंटरनेट पर लेकिन भारत कोश बनाने की क्या आवश्यकता ऐसी हालत में यह सारी आवश्यकता थी। कि या तो अंग्रेज़ी भाषा में हैं ज़्यादातर वेबसाइट या अलग-अलग ब्लॉग हैं जिनमें थोड़ी-थोड़ी अलग-अलग विषयों की जानकारियाँ हैं। वो भले हिन्दी में हैं लेकिन अलग-अलग है, इकठ्ठा एक जगह नहीं हैं या फिर विदेशी वेबसाइटों पर, विदेशी वेबसाइटों के बारे में आपका अनुभव कैसा है मुझे नहीं पता लेकिन मेरा जो अनुभव है वो अच्छा नहीं है। यह भारत के मानचित्र को भी पूरा नहीं दिखातें कभी कश्मीर को कटा दिखा देते है तो कभी अरूणाचल प्रदेश को गायब कर देते है। इससे हमको सन्तोष नही होता, अच्छा नहीं लगता और क्यों लगे। इसलिए भारत कोश की तैयारी की। और इसे हमने आगे बढ़ाया दूसरा यह कि आप बहुत सी वेबसाइट देखें उनमें इतिहास के मामले में बड़े गड़बड़ कर दिये जाते हैं जिनसे हमें एतराज़ होता हैं। 1857 का जो प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था उसको विद्रोह कहते हैं। हमारे घर में कोई घुस रहा है, हम उसे घर में से निकालने की कोशिश कर रहें हैं और हमें अपराधी दिखाया जा रहा हैं, जो गेजेटियर हैं अंग्रेज़ों के जो उनके इतिहास हैं, उनमें हमारे स्वतंत्रता सेनानियों का नाम अपराधियों की तरह दर्ज़ हैं। और वो आज भी वेबसाइटों पर उपलब्ध हैं। मैं किसी वेबसाइट का नाम नहीं ले रहा आपने कभी न कभी कोई न कोई ऐसी वेबसाइट जरूर देखी होगी। 1857 का ज़िक्र मैंने इसलिए दिया, कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में मेरे ग्रेट ग्रांड फादर (परपितामह) को अंग्रेज़ों ने फाँसी दी थी। उनका नाम भी एक अपराधी की तरह दर्ज़ हैं गेजेटियर में लेकिन उन्हें जब स्वतंत्रता मिली इसके बाद अब वो स्वतंत्रता सेनानियों की तरह इतिहास में पढ़ाये जाते हैं बाबा देवकरण, चौधरी देवकरण सिंह। तो यह बातें ऐसी थी कि जिन्होंने हमें मज़बूर किया कि हम अपनी यह वेबसाइट बनाए। सारे विषयों को अपने तरीक़े से अपनी भाषा में उपलब्ध करायें। उसका कारण जब आज़ादी की बात आ गयी तो मैं आपको बताऊँ माउण्ट बेंटन जब भारत को आज़ादी देने आये थे तो गांधीजी से उनके बार-बार एक ही सवाल होता था क्या आप चला पायेगें इस देश को जिस देश को दो सौ साल में अंग्रेज़ों ने तैयार किया हैं। ये सारी रेल की पटरियाँ, ये सारा विकास, ये सारा सिस्टम, हमारा दिया हुआ हैं। हम सारी दुनिया पर शासन करना जानते हैं, इसलिए भारत पर भी शासन कर रहे है आपको कोई अनुभव नहीं है। आप विद्रोह तो कर सकते है, आप क्रांति कर सकते है, आन्दोलन चला सकते है, लेकिन भारत को चला सकते हैं? तो गांधीजी ने कहा था जैसा भी होगा ज़्यादा से ज़्यादा यह होगा कि हम अपने देश को बर्बाद कर देगें। हम इसे नहीं चला पायेगें हमारे सिस्टम फेल हो जायेगें, लेकिन चलाना हमें ही हैं। हम ही चलायेगें जैसा भी चलायेगें आप जाइये। तो इसलिए मेरा कहना आप से यही है कि हम उतने प्रोफेशनल न सही उतनी बड़ी हमें जानकारी न सही जैसे भी कर रहें हैं बहुत सीमित साधनों में कर रहे हैं, तो अपनी वेबसाइट तो हम ही चलायेगें। हम ही बनायेगें। हम यह नहीं कह सकते, यह छूट नहीं दे सकते कि दूसरे हमें पढ़ाये कि हमारे भारत की संस्कृति क्या है। दूसरे हमें पढ़ाये कि हमारा इतिहास क्या है। इसलिए हमने यह वेबसाइट बनाई है।
भारतकोश का आरम्भ
2006 में काम शुरू कर दिया था। ये पुस्तकालय है, हमारे घर में ही कार्यालय बना रखा है। 2006 में ये टंकण, टाइपिंग वगैरह ये सब शुरू हो गया था, अनुवाद का कार्य शुरू हो गया था और उसके बाद क्योंकि यह भारत का मामला था बहुत विशाल बहुत व्यापक तो इसलिए डर लगता था कि इतनी बड़ी वेबसाइट बना पायेगे कि नहीं बना पाएगें तो अपने क्षेत्र (मैं मथुरा का रहने वाला हूँ) ब्रज का तो ब्रजडिस्कवरी एक वेबसाइट बना ली वो बड़ी सफल रही। उसके बाद फिर हिम्मत आ गयी। फिर ये काम भारतकोश का शुरू कर दिया। यह भारतकोश के आँकड़े हैं- 20 हज़ार से ज़्यादा पृष्ठ है, आठ हज़ार से ज़्यादा लेख है, 3 हज़ार से ज़्यादा चित्र है और आप वेबसाइट को देखेंगें तभी होगा ये मेरे प्रस्तुतीकरण से कोई नतीजा निकलने वाला नहीं है मैं उल्टा सीधा जो कुछ भी कह रहा हूँ मुझे तो पता नहीं। असल में सब सिस्टमेटिक तरीके से अपना यहाँ प्रस्तुती कर रहे थे मैं तो ऐसे कर रहा हूँ जैसे एक किसान का बेटा कर सकता हैं।
भारत कोश पर प्रांगण (पोर्टल)
भारत कोश पर हमने छोटे सब-पोर्टल भी बना दिये इन्हें हमने प्रांगण नाम भी दिया है। हिन्दी के विद्वान बतायेगें कि इसका सही अनुवाद क्या है? इसमें हम तमाम इतिहास के, भूगोल के तथा 12, 13 वेबसाइट और जोड़ दी हैं। इन्हें आप देख सकते और इनके लक्ष्य भी हैं। इसमें चार सौ पन्ने इसी वर्ष मुझे और जोड़ देने है। हमारी टीम इसमें और जोड़ देगी।
- भारत गणराज्य प्रांगण
ये भारत गणराज्य का पोर्टल या प्रांगण है। इसमें भारत के राज्यों के बारे में उनके राष्ट्रीय चिन्ह, उनकी राजनीति और इन सब चीजों के बारे में हमने दिया है। विस्तार में आप देख सकते हैं, पढ़ सकते हैं। और पांच सौ नये पन्ने का हमारा लक्ष्य इसी वर्ष में है।
- पर्यटन प्रांगण
यह पर्यटन है, पर्यटन में आप चाहे तो आप गोवा में नहीं घूमें हो अभी तक तो आप भारत कोश पर घुम सकते हैं गोवा को। आराम से बहुत अच्छी जानकारी आपको गोवा के बारे में मिल जायेगी। मैं निश्चित रूप से कह सकता हूँ आपसे, इसमें मुझे तीन हज़ार पन्नों का लक्ष्य हैं इस वर्ष।
- भाषा प्रांगण
भाषा लिपि का मामला आ गया, इसमें आप हिन्दी को देखें। हिन्दी के बारे में आपको इस पर अच्छी जानकारी मिलेगी, कहाँ-कहाँ इसका विकास हुआ। कैसे-कैसे इसकी वर्तनी बदली, कैसे- कैसे देवनागरी का विकास हुआ, आप देख सकते है इसमें। हिन्दी भाषा के सम्बन्ध में यह कहना चाहता हूँ हिन्दी संस्थान के साथ भारत कोश का एक भाई चारे का पुल जैसा बन जाये, एक औपचारिक जैसा कोई ऐसा हो जाये जिससे कि काम वो भी वही कर रहें हैं। हम भी वही कर रहें हैं। ऐसी बहुत सी चीजें हो सकती जिससे हमें लाभ हो जाये। इसमें विचार करियेगा। दूसरा यहाँ बात हो रही थीं हिन्दी के शब्दों कि जैसे कि विजय जी ने कहा था। बहुत से शब्द ऐसे है जिनके बारे में विचार करना है। उन्हें ऐसे का ऐसे ही ले लिया जाये या उनका क्या किया जाये उसके लिये मेरा कहना यही हैं कि अंग्रेज़ी की जो वर्तनी है, उसका जो शब्द कोश है वो विश्व का सबसे बड़ा शब्दकोश है, जहाँ तक मैं जानता हूँ। उसका कारण ये है कि वो सारी भाषाओं के शब्दों को अपनी डिक्शनरी (कोश) में जोड़ देते हैं, अभी जैसे पहले से बहुत से शब्द जुड़े हुए हैं मंत्र, गुरु, अवतार अवतार तो फ़िल्म भी आ गई, अवतार हमारे फ़िल्म वो बना रहे है तो अभी पिछले क़रीब 40 – 45 शब्द पिछ्ले साल और जोड़ दिये उन्होंने। जिनमें एक शब्द जोड़ा उन्होंने ‘जय हो’ (उपस्थित श्रोतागण में से- धोती जोड़ा है, हर प्रांत में धोती का प्रयोग हो रहा है इसलिए उन्होंने जोड लिया है ... जी) आप भारतकोश पर संपादन का कार्य शुरू करिये (श्रोता- बहुत सही) तो इसलिए बहुत से शब्द वो जोड़ लिए गये हैं। हम इसमें कभी कभी संकोच कर रहे है। अब कुछ समस्या मेरे सामने आ जाती हैं इसमें भारतकोश से संबंधित उसके लिए तमाम डिक्शनरी कंसर्ल्ट करनी पड़ती है और समांतर कोश (अरविन्द जी का) वो भी देखना पड़ता है लेकिन कुछ ऐसी दिक्कत हैं जिनके लिए मैं क्या करूँ। जैसे- एक शब्द है अंग्रेज़ी में déjà vu जैसे मैं इस हॉल में आया मुझे ऐसा लगा कि पहले भी मैं कभी यहाँ आया हूँ। किसी को मैंने देखा लगा कि मैंने पहले भी कहीं देखा है ये शायद पहले भी कहीं देखा है। ये परिस्थिति ये सिचुएशन जो है ये déjà vu है इसके लिए अंग्रेज़ी में कोई शब्द ही नहीं था तो ये फ़्रेंच वर्ड जो है फ़्रांसीसी भाषा का शब्द déjà vu इन्होंने अंग्रेज़ी में ले लिया। इसका उल्टा है jamais vu jamais vu वो कि ये मैंने कभी नहीं देखा। एक वैज्ञानिक तथ्य ये है कि अगर किसी शब्द को हम 32 बार लिखें तो 33 वीं बार लिखने पर ग़लती होने की संभावना हो जाएगी। आप 32 बार तक उसे लिखते रहें तब तक ये चलता रहता है। कारण ये है कि जैसे आप कार चलाते तो कहते हैं ना कि जब कार चलाना सीख जाते हैं उससे एक्सीडेंट होने की संभावना ज़्यादा होती है ऐसे ही हमारे जो बहुत ज़्यादा देखे हुए चेहरे हैं उन्हें हम भूल जाते हैं। जैसे अपनी माँ का चेहरा कोई भी दुनिया में ऐसा पेंटर नहीं हैं, ये मैं कोई अपनी कहीं बात नहीं कह रहा हूँ, मैं आपको एक वैज्ञानिक तथ्य बता रहा हूँ। कोई ऐसा पेंटर नहीं हैं दुनिया में जो बिना फोटो देखें अपनी माँ का चित्र बना दे, क्योंकि माँ हमारे लिए चेहरा है ही नहीं वो उतना ज़्यादा अपना है। यह शब्द है jamais vu इसकी हिन्दी क्या लिखें? क्या हमें déjà vu और jamais vu जैसे बहुत से शब्द लेने ही चाहिए, इसमें दिक्कत क्या हैं पर ये अंग्रेज़ी तो नहीं, ये फ़्रासीसी है अगर ये अंग्रेज़ी भी हो तब भी क्या है, तो यह बात मेरी है। अभी तक ऐसे अंग्रेज़ी के प्रयोग भारत कोश पर अभी तक नहीं कर रहे है क्योंकि हमारी कोई बातचीत नहीं हुई, और मैं आपको मजेदार बात यह बताऊ कि हमारे भारत कोश में कोई हिन्दी विद्वान नहीं हैं।
- अन्य प्रांगण
यह भूगोल, विज्ञान, खेल और प्रौद्योगिकी इसके सम्बन्ध में कुछ दर्शन, संस्कृति और कला इसके पन्ने हैं, धर्म, सम्बन्ध में आप देख सकते है। आपको दर्शन तो शायद भारत कोश के अलावा और कहीं किसी वेबसाइट पर नहीं मिलेगें। सांख्य दर्शन, वैशेषिक दर्शन इनको कौन पढ़ता, कौन देखता हैं चार्वाक को कौन देख रहा है। आप देखें, यह आपको भारत कोश पर मिलेगें। और-और जोड़े जा रहे हैं, उसमें आप अपने सुझाव दे सकते है, यें जोड़ो - वो जोड़ो, हम कर सकते हैं। इसका 3500 नये पन्नों का लक्ष्य है।
संपादन सुविधा
भारत कोश पर संपादन की सुविधा उपलब्ध है। भारत कोश पर कुछ विशेष क्षेत्रों पर संपादन कर पाए और उनके संपादन को कोई और दूसरा छेड़े नहीं। यह व्यवस्था हम कर सकते है, अगर हमारा सामंजस्य इस तरीक़े का हिन्दी संस्थान के साथ बन जाता है। शिक्षा के सम्बन्ध में, बहुत शुभ समाचार मैं आपको देना चाहता हूँ। अभी यहाँ कई बार जिक्र चला था कि हिन्दी को हमें बचाना हैं, हिन्दी ख़त्म हो रही है, यह ग़लत बात है, इस तरह की बातें हैं ऐसा कुछ भी नहीं। हिन्दी रोजाना बढ़ रही उसका सबूत मैं आपको दे सकता हूँ। यहाँ आई.आई टी. के बैठे हुए है आप, अभी जो 2009 में हिन्दी भाषी क्षेत्रों से लगभग 4,800 छात्रों ने आई.आई टी. पास किया हैं। परीक्षा उत्तीर्ण की। उनमें 184 छात्रों ने हिन्दी माध्यम चुना। लेकिन अगले साल कमाल हो गया, अगले साल कमाल यह हुआ यह संख्या 3 गुनी बढ़ गई, 554 हो गई। 4 प्रतिशत से 11 प्रतिशत पर पहुँच गई। एक साल में 3-3 गुने बढ़ रहे है। अरे 200 साल अंग्रेज़ी थोपी गई हैं हमारे ऊपर 200 साल। तो कुछ समझ होनी चाहिए दुबारा से हिन्दी को आने दो, हिन्दी आएगी,आ गई है। और छा जाएगी। लेकिन,कुछ छोटी-छोटी हमें शायद सरकार की भी तरफ से करनी पढ़े। मेरा यह सुझाव है। जैसे मान लिजिए, यह बोतल इसमें अंग्रेज़ी में लिखा हुआ है, हमें चीज़े ऐसी चुननी पड़ेगी जिनका सीधा सम्बन्ध है हमसें, जैसे यह बोतल है जिस पर अंग्रेज़ी में लिखा हुआ है। यह सब कुछ हिन्दी में होना चाहिए। ऊपर या गोगनी में हो, यहाँ की भाषा में, या बंगाली में हो मद्रासी में हो, कही की भाषा में हो लेकिन, नीचे वो हो अंग्रेज़ी फिर सब जब इसी नाम से मागेगें। उन्हें वॉशिंग मशीन हिन्दी नाम से मिलेगी। उन्हें टी.वी. हिन्दी के नाम से मिलेगा, उन्हें ये सब हिन्दी के नाम से मिलेगा। तो जल्दी फैलाओ यह सब। भारत कोश पर हमने सामान्य ज्ञान की भी सुविधा शुरू कर दी है, सामान्य ज्ञान में जो वस्तुनिष्ठ प्रश्न होते है उनकी प्रश्नावलियाँ बना दी जिससे की जो छात्र हैं,उनको सुविधा मिले। जो कॉम्पटीश्न में जाते हैं, जो आई. एस का एग्जाम, जो बैकों में एग्जाम देने जाते हैं। वो इस तरह की परीक्षा देने जाते हैं। उन्हें तमाम किताबें मोटी-मोटी जो तीन-तीन चार-चार हज़ार के जो हिन्दी कोचिंग होती उससे हम रिजात लेना चाहते हैं। जल्दी ऐसी कोशिश हमारी होगी। हमें अगर कहीं से प्रोत्साहन मिलता है तो हमारी तेजी बढ़ जायेगी काम करने की।