राज्यश्री: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "==टीका टिप्पणी और संदर्भ==" to "{{संदर्भ ग्रंथ}} ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==")
No edit summary
Line 1: Line 1:
*'''राज्यश्री''' [[थानेश्वर]] के शासक [[प्रभाकरवर्धन]] की पुत्री और सम्राट [[हर्षवर्धन]] की भगिनी (बहन) थी।
'''राज्यश्री''' [[थानेश्वर]] के शासक [[प्रभाकरवर्धन]] की पुत्री और सम्राट [[हर्षवर्धन]] की 'भगिनी' (बहन) थी। उसका [[विवाह]] [[कन्नौज]] के [[मौखरि वंश]] के शासक [[ग्रहवर्मा]] से हुआ था, जिसका वध [[मालवा]] के राजा देवगुप्त के हाथों हुआ।
*उसका विवाह [[कन्नौज]] के मौखरी वंशज शासक [[ग्रहवर्मा]] से हुआ था।
 
*पिता की मृत्यु के उपरान्त ही [[मालवा]] के शासक ने आक्रमण करके ग्रहवर्मा को मार डाला और राज्यश्री को बन्दी बनाकर कन्नौज के काराग़ार में डाल दिया।
*प्रभाकरवर्धन की मृत्यु के उपरान्त ही देवगुप्त का आक्रमण कन्नौज पर हुआ और एक युद्ध प्रारम्भ हो गया।
*इसकी सूचना मिलते ही उसके ज्येष्ठ अग्रज [[राज्यवर्धन]] ने उसे काराग़ार से मुक्त कराने के लिए कन्नौज की ओर प्रस्थान किया।  
*इस युद्ध में ग्रहवर्मा मारा गया और राज्यश्री को बन्दी बनाकर कन्नौज के काराग़ार में डाल दिया गया।
*राज्यवर्धन ने [[मालव]] शासक [[देवगुहा]] को पराजित करके मार डाला, पर वह स्वयं देवगुहा के सहायक और [[बंगाल]] के शासक [[शशांक]] द्वारा मारा गया।
*इसकी सूचना मिलते ही राज्यश्री के ज्येष्ठ अग्रज [[राज्यवर्धन]] ने उसे काराग़ार से मुक्त कराने के लिए कन्नौज की ओर प्रस्थान किया।
*राज्यवर्धन ने मालवा के शासक देवगुप्त को पराजित करके मार डाला, किंतु वह स्वयं देवगुप्त के सहायक और [[बंगाल]] के शासक [[शशांक]] द्वारा मारा गया।
*इसी उथल-पुथल में राज्यश्री काराग़ार से भाग निकली और [[विन्ध्यांचल]] के जंगलों में उसने शरण ली।
*इसी उथल-पुथल में राज्यश्री काराग़ार से भाग निकली और [[विन्ध्यांचल]] के जंगलों में उसने शरण ली।
*इस बीच उसका कनिष्ठ अग्रज [[हर्षवर्धन]], राज्यवर्धन का उत्तराधिकारी बन चुका था। उसने राज्यश्री को विन्ध्यांचल के जंगलों में उस समय ढूँढ निकाला, जब वह निराश होकर चिता में प्रवेश करने ही वाली थी।
*इस बीच राज्यश्री का कनिष्ठ अग्रज [[हर्षवर्धन]], राज्यवर्धन का उत्तराधिकारी बन चुका था। उसने राज्यश्री को विन्ध्यांचल के जंगलों में उस समय ढूँढ निकाला, जब वह निराश होकर चिता में प्रवेश करने ही वाली थी।
*हर्षवर्धन उसे कन्नौज वापस लौटा लाया और आजीवन उसको सम्मान दिया। उसने कन्नौज से ही अपने विशाल साम्राज्य का शासन कार्य किया।
*हर्षवर्धन उसे [[कन्नौज]] वापस लौटा लाया और आजीवन उसको सम्मान दिया। उसने कन्नौज से ही अपने विशाल साम्राज्य का शासन कार्य किया।
*चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार वह प्राय राज्यश्री से राज्यकार्य में परामर्श लेता था।  
*चीनी यात्री [[ह्वेनसांग]] के अनुसार वह प्राय राज्यश्री से राज्यकार्य में परामर्श लेता था।
 
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक=|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}


{{प्रचार}}
{{लेख प्रगति
|आधार=आधार1
|प्रारम्भिक=
|माध्यमिक=
|पूर्णता=
|शोध=
}}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
(पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-402
{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय इतिहास कोश |लेखक= सच्चिदानन्द भट्टाचार्य|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=402|url=}}
<references/>
<references/>
[[Category:नया पन्ना]]
[[Category:इतिहास कोश]][[Category:चरित कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

Revision as of 09:49, 23 April 2012

राज्यश्री थानेश्वर के शासक प्रभाकरवर्धन की पुत्री और सम्राट हर्षवर्धन की 'भगिनी' (बहन) थी। उसका विवाह कन्नौज के मौखरि वंश के शासक ग्रहवर्मा से हुआ था, जिसका वध मालवा के राजा देवगुप्त के हाथों हुआ।

  • प्रभाकरवर्धन की मृत्यु के उपरान्त ही देवगुप्त का आक्रमण कन्नौज पर हुआ और एक युद्ध प्रारम्भ हो गया।
  • इस युद्ध में ग्रहवर्मा मारा गया और राज्यश्री को बन्दी बनाकर कन्नौज के काराग़ार में डाल दिया गया।
  • इसकी सूचना मिलते ही राज्यश्री के ज्येष्ठ अग्रज राज्यवर्धन ने उसे काराग़ार से मुक्त कराने के लिए कन्नौज की ओर प्रस्थान किया।
  • राज्यवर्धन ने मालवा के शासक देवगुप्त को पराजित करके मार डाला, किंतु वह स्वयं देवगुप्त के सहायक और बंगाल के शासक शशांक द्वारा मारा गया।
  • इसी उथल-पुथल में राज्यश्री काराग़ार से भाग निकली और विन्ध्यांचल के जंगलों में उसने शरण ली।
  • इस बीच राज्यश्री का कनिष्ठ अग्रज हर्षवर्धन, राज्यवर्धन का उत्तराधिकारी बन चुका था। उसने राज्यश्री को विन्ध्यांचल के जंगलों में उस समय ढूँढ निकाला, जब वह निराश होकर चिता में प्रवेश करने ही वाली थी।
  • हर्षवर्धन उसे कन्नौज वापस लौटा लाया और आजीवन उसको सम्मान दिया। उसने कन्नौज से ही अपने विशाल साम्राज्य का शासन कार्य किया।
  • चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार वह प्राय राज्यश्री से राज्यकार्य में परामर्श लेता था।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 402 |