जॉनी वॉकर: Difference between revisions
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Revision as of 16:27, 8 July 2011
जॉनी वॉकर
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पूरा नाम | बदरुद्दीन जमालुद्दीन क़ाज़ी |
जन्म | 15 मई 1923 |
जन्म भूमि | इन्दौर, मध्य प्रदेश |
मृत्यु | 29 जुलाई 2003 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई, महाराष्ट्र |
पति/पत्नी | नूरजहाँ |
संतान | कौसर, तसनीम, फ़िरदौस, नाज़िम, काज़िम और नासिर |
कर्म भूमि | मुम्बई |
कर्म-क्षेत्र | अभिनय |
मुख्य फ़िल्में | चौदहवीं का चाँद, नया दौर, मधुमती, प्रतिज्ञा, शिकार आदि |
पुरस्कार-उपाधि | 1959 में फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार (मधुमती) |
प्रसिद्धि | हास्य अभिनेता |
विशेष योगदान | भारतीय सिनेमा में कामदी (कॉमेडी) को नया आयाम |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | जॉनी वॉकर की जो आवाज़़ दर्शक सुनते थे वो आवाज़़ उनकी बनायी हुई थी उनकी वास्तविक आवाज़़ भारी थी। |
जॉनी वॉकर (जन्म: 15 मई, 1923, इन्दौर-मध्य प्रदेश - निधन: 29 जुलाई, 2003, मुम्बई-महाराष्ट्र) भारत के एक सुप्रसिद्ध हास्य अभिनेता का नाम है। इनका असली नाम बदरुद्दीन जमालुद्दीन क़ाज़ी था। अपना नाम उन्होंने विस्की के एक लोकप्रिय ब्रैंड से उधार लिया था; लेकिन बाद में यह तय करना मुश्किल हो गया था कि दोनों में ज़्यादा लोकप्रिय कौन है?
पारिवारिक जीवन
जॉनी वॉकर की शादी नूरजहाँ से हुई थी। इन दोनों की मुलाक़ात 1955 में गुरुदत्त की फ़िल्म मिस्टर एंड मिसेज़ 55 के सेट पर हुई। जॉनी वॉकर और नूर के तीन बेटियाँ है: कौसर, तसनीम, फ़िरदौस और तीन बेटे है: नाज़िम, काज़िम और नासिर। नासिर एक प्रसिद्ध फ़िल्म और टीवी अभिनेता है। जॉनी वॉकर एक विनम्र आदमी थे।
ज़िन्दगी की शुरूआत
ज़िन्दगी की शुरूआत उन्होंने बस कंडक्टर के रूप में की। बस में यात्रियों से मज़ाकिया बातें करना उनका शगल था, जिसने बलराज साहनी को आकर्षित किया। बलराज साहनी ने इन्हें गुरु दत्त से मिलवाया और संवेदना और हास्य के दो शिखर एक हो गए, जिसने हिन्दी सिनेमा के लिए नई परिभाषाएं गढ़ीं।
सफलता
'बाजी', 'आर-पार' ', मिस्टर एंड मिसेज 55', 'सीआईडी', 'काग़ज़ के फूल', 'प्यासा' जैसी गुरु दत्त की फ़िल्मों की एक समानांतर पहचान बने जॉनी वॉकर। 'चोरी-चोरी', 'नया दौर', 'मधुमती', 'मेरे महबूब', 'आनंद' आदि फ़िल्मों में जॉनी वॉकर मीठी फुहार की तरह राहत देने आते थे, जब दर्शकों को फ़िल्म की गंभीरता से उबरना मुश्किल लगने लगता था। जॉनी वॉकर के अभिनय में इतनी ऊंचाई थी कि आमतौर पर हल्की-फुल्की मनोरंजक फ़िल्मों की जगह गंभीर फ़िल्मों की गंभीरता के बर्फ को तोड़ने की जवाबदेही मिली। हैरानी नहीं कि बरसों बाद भी कमल हासन के साथ जब वह 'चाची 420' में दिखे तो उतने ही जीवंत, उतने ही ताजा दम थे।[1]
पुरस्कार
- 1959 फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार - मधुमती
- फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता पुरस्कार - शिकार
प्रमुख फ़िल्में
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ