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*कृष्णा और तुंगभद्रा के बीच के क्षेत्रों को 'रायचूर दोआब' भी कहते हैं।
*कृष्णा और तुंगभद्रा के बीच के क्षेत्रों को 'रायचूर दोआब' भी कहते हैं।
*[[बहमनी वंश|बहमनी]] सुल्तानों और [[हिन्दू]] राजाओं के बीच इस दोआब पर क़ब्ज़े के लिए बराबर द्वन्द्व होता रहा।
*[[बहमनी वंश|बहमनी]] सुल्तानों और [[हिन्दू]] राजाओं के बीच इस दोआब पर क़ब्ज़े के लिए बराबर द्वन्द्व होता रहा।
*इस दोआब में [[रायचूर]] तथा मुदगल नाम के दो क़िले भी हैं।
*इस दोआब में [[रायचूर कर्नाटक|रायचूर]] तथा मुदगल नाम के दो क़िले भी हैं।
*1565 ई. में [[विजयनगर साम्राज्य]] के ध्वंस के पश्चात् रायचूर दोआब, [[बीजापुर]] के सुल्तानों के अधीन हो गया।
*1565 ई. में [[विजयनगर साम्राज्य]] के ध्वंस के पश्चात् रायचूर दोआब, [[बीजापुर]] के सुल्तानों के अधीन हो गया।
*बाद में क्रमश: [[मुग़ल]] सम्राटों और [[अंग्रेज़]] सरकार के अधिकार में इसका नियंत्रण रहा।
*बाद में क्रमश: [[मुग़ल]] सम्राटों और [[अंग्रेज़]] सरकार के अधिकार में इसका नियंत्रण रहा।

Revision as of 11:44, 12 June 2011

  • किसी स्थान पर परस्पर मिलने वाली दो नदियों के बीच में स्थित मैदानी भाग को दोआब कहा जाता है।
  • संसार के विभिन्न भागों में दोआब पाये जाते हैं, जो अधिकांशतः उर्वर और प्रमुख कृषि प्रदेश हैं।
  • उत्तर भारत में गंगा और यमुना के बीच का तथा दक्षिण भारत में कृष्णा और तुंगभद्रा के बीच का दोआब क्षेत्र सर्वाधिक उपजाऊ भू-भाग माना जाता है।
  • इन क्षेत्रों पर अधिकार करने के लिए आस-पास के राजा बराबर प्रयत्नशील रहते थे।
  • दिल्ली के सुल्तान गंगा और यमुना के दोआब पर अपना अधिकार स्थापित करने के लिए सदैव ही इच्छुक रहे।
  • यह दोआब क्षेत्र बहुधा दिल्ली पर शासन करने वालों के ही हाथ में रहता रहा है।
  • कुछ समय के लिए महादजी शिन्दे के नेतृत्व में मराठों का भी अधिकार इस पर रहा।
  • 1803 ई. में यह दोआब क्षेत्र ब्रिटिश सरकार के हाथ में आ गया।
  • कृष्णा और तुंगभद्रा के बीच के क्षेत्रों को 'रायचूर दोआब' भी कहते हैं।
  • बहमनी सुल्तानों और हिन्दू राजाओं के बीच इस दोआब पर क़ब्ज़े के लिए बराबर द्वन्द्व होता रहा।
  • इस दोआब में रायचूर तथा मुदगल नाम के दो क़िले भी हैं।
  • 1565 ई. में विजयनगर साम्राज्य के ध्वंस के पश्चात् रायचूर दोआब, बीजापुर के सुल्तानों के अधीन हो गया।
  • बाद में क्रमश: मुग़ल सम्राटों और अंग्रेज़ सरकार के अधिकार में इसका नियंत्रण रहा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भट्टाचार्य, सच्चिदानन्द भारतीय इतिहास कोश, द्वितीय संस्करण-1989 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 210।

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