पृथ्वी का चक्कर -राजेश जोशी: Difference between revisions

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बचपन से सुनता आया हूँ
बचपन से सुनता आया हूँ
उन किस्साबाजों की कहानियों को जो कहते थे
उन क़िस्सा बाजों की कहानियों को जो कहते थे
कि पृथ्वी एक कछुए की पीठ पर रखी है
कि पृथ्वी एक कछुए की पीठ पर रखी है
कि बैलों के सींगों पर या शेषनाग के थूथन पर,
कि बैलों के सींगों पर या शेषनाग के थूथन पर,

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पृथ्वी का चक्कर -राजेश जोशी
कवि राजेश जोशी
जन्म 18 जुलाई, 1946
जन्म स्थान नरसिंहगढ़, मध्य प्रदेश
मुख्य रचनाएँ 'समरगाथा- एक लम्बी कविता', एक दिन बोलेंगे पेड़, मिट्टी का चेहरा, दो पंक्तियों के बीच, पतलून पहना आदमी धरती का कल्पतरु
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
राजेश जोशी की रचनाएँ

यह पृथ्वी सुबह के उजाले पर टिकी है
और रात के अंधेरे पर

यह चिड़ियो के चहचहाने की नोक पर टिकी है
और तारों की झिलमिल लोरी पर

तितलियाँ इसे छूकर घुमाती रहती हैं
एक चाक की तरह

बचपन से सुनता आया हूँ
उन क़िस्सा बाजों की कहानियों को जो कहते थे
कि पृथ्वी एक कछुए की पीठ पर रखी है
कि बैलों के सींगों पर या शेषनाग के थूथन पर,
रखी है यह पृथ्वी

ऐसी तमाम कहानियाँ और गीत मुझे पसन्द हैं
जो पृथ्वी को प्यार करने से पैदा हुए हैं!

मैं एक आवारा की तरह घूमता रहा
लगातार चक्कर खाती इस पृथ्वी के
पहाड़ों, जंगलों और मैदानों में
मेरे भीतर और बाहर गुज़रता रहा
पृथ्वी का घूमना
मेरे चेहरे पर उकेरते हुए
उम्र की एक एक लकीर

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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