पृथ्वी का चक्कर -राजेश जोशी: Difference between revisions
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बचपन से सुनता आया हूँ | बचपन से सुनता आया हूँ | ||
उन | उन क़िस्सा बाजों की कहानियों को जो कहते थे | ||
कि पृथ्वी एक कछुए की पीठ पर रखी है | कि पृथ्वी एक कछुए की पीठ पर रखी है | ||
कि बैलों के सींगों पर या शेषनाग के थूथन पर, | कि बैलों के सींगों पर या शेषनाग के थूथन पर, |
Latest revision as of 13:53, 9 May 2021
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यह पृथ्वी सुबह के उजाले पर टिकी है |
टीका टिप्पणी और संदर्भबाहरी कड़ियाँसंबंधित लेख
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