मोहम्मद इक़बाल: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 1: Line 1:
*'''मोहम्मद इक़बाल''' एक आधुनिक भारतीय प्रसिद्ध [[मुसलमान]] कवि थे।
'''मोहम्मद इक़बाल''' एक आधुनिक भारतीय प्रसिद्ध [[मुसलमान]] कवि थे। इनका जन्म ब्रिटिश [[भारत]] के '[[सियालकोट]]', ([[पाकिस्तान]]) में 9 नवम्बर, 1877 को हुआ तथा इनकी मृत्यु 21 अप्रैल, 1938 ई. को हुई थी। इनके द्वारा लिखी गईं रचनाएँ मुख्य रूप से [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] में हैं। इनकी [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] में केवल एक पुस्तक है, जिसका शीर्षक है, 'सिक्स लेक्चर्स ऑन दि रिकन्सट्रक्शन ऑफ़ रिलीजस थॉट (धार्मिक चिन्तन की नवव्याख्या के सम्बन्ध में छह व्याख्यान)' है। मोहम्मद इक़बाल का मत था कि [[इस्लाम धर्म]] रूहानी आज़ादी की जद्दोजहद के जज़्बे का अलमबरदार है, और सभी प्रकार के धार्मिक अनुभवों का निचोड़ है। वह कर्मवीरता का एक जीवन्त सिद्धान्त है, जो जीवन को उद्देश्यपूर्ण बनाता है।
*इनका जन्म ब्रिटिश भारत के '[[सियालकोट]]' ([[पाकिस्तान]]) में [[9 नवम्बर]], [[1877]] को हुआ तथा इनकी मृत्यु [[21 अप्रैल]], [[1938]] को हुई थी।
==दूरदर्शी व्यक्तित्व==
*इनके द्वारा लिखी गईं रचनाएँ मुख्य रूप से [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] में हैं।
इक़बाल ब्रिटेन और जर्मनी में पढ़ने के बाद हिन्दुस्तानी सरज़मीं पर लौटे आये थे। आज के दौर में पूरे मुल्क में भ्रष्टाचार और दूसरी मुश्किलात को लेकर जो आवामी जंग छिड़ी हुई है, उसका अंदेशा इक़बाल ने पहले ही लगा लिया था और लिखा था-
*इनकी अंग्रेज़ी में केवल एक पुस्तक है, जिसका शीर्षक है, 'सिक्स लेक्चर्स ऑन दि रिकन्सट्रक्शन ऑफ़ रिलीजस थॉट (धार्मिक चिन्तन की नवव्याख्या के सम्बन्ध में छह व्याख्यान)' है।
<poem>"वतन की फ़िक्र कर नादां, मुसीबत आने वाली है
*मोहम्मद इक़बाल का मत था कि [[इस्लाम धर्म]] रूहानी आज़ादी की जद्दोजहद के जज़्बे का अलमबरदार है, और सभी प्रकार के धार्मिक अनुभवों का निचोड़ है।
तेरी बरबादियों के चर्चे हैं आसमानों में,
*वह कर्मवीरता का एक जीवन्त सिद्धान्त है, जो जीवन को उद्देश्यपूर्ण बनाता है।
ना संभलोगे तो मिट जाओगे ए हिंदोस्तां वालों
*[[यूरोप]] धन और सत्ता के लिए पागल है। इस्लाम ही एकमात्र धर्म है, जो सच्चे जीवन मूल्यों का निर्माण कर सकता है और अनवरत संघर्ष के द्वारा प्रकृति के ऊपर मनुष्य को विजयी बना सकता है।
तुम्हारी दास्तां भी न होगी दास्तानों में।"</poem>
*उनकी रचनाओं ने [[भारत]] के मुसलमान युवकों में यह भावना भर दी कि, उनकी एक पृथक भूमिका है।
==मुस्लिम राज्य का विचार==
*इक़बाल ने ही सबसे पहले 1930 ई. में भारत के [[सिंध]] के भीतर उत्तर-पश्चिम सीमाप्रान्त, [[बलूचिस्तान]], सिंध तथा [[कश्मीर]] को मिलाकर एक नया मुस्लिम राज्य बनाने का विचार रखा, जिसने [[पाकिस्तान]] को जन्म दिया।
[[यूरोप]] धन और सत्ता के लिए पागल है। इस्लाम ही एकमात्र धर्म है, जो सच्चे जीवन मूल्यों का निर्माण कर सकता है और अनवरत संघर्ष के द्वारा प्रकृति के ऊपर मनुष्य को विजयी बना सकता है। उनकी रचनाओं ने [[भारत]] के [[मुसलमान]] युवकों में यह भावना भर दी कि, उनकी एक पृथक भूमिका है। इक़बाल ने ही सबसे पहले 1930 ई. में भारत के [[सिंध]] के भीतर उत्तर-पश्चिम सीमाप्रान्त, [[बलूचिस्तान]], सिंध तथा [[कश्मीर]] को मिलाकर एक नया मुस्लिम राज्य बनाने का विचार रखा, जिसने [[पाकिस्तान]] को जन्म दिया। पाकिस्तान शब्द इक़बाल का गढ़ा हुआ नहीं है। इसे [[1933]] ई. में [[चौधरी रहमत अली]] ने गढ़ा था। इक़बाल की काव्य प्रतिभा से प्रभावित होकर ब्रिटिश सरकार ने इन्हें 'सर' की उपाधि प्रदान की।
*पाकिस्तान शब्द इक़बाल का गढ़ा हुआ नहीं है। इसे [[1933]] ई. में [[चौधरी रहमत अली]] ने गढ़ा था।
==शायरों के विचार==
*इक़बाल की काव्य प्रतिभा से प्रभावित होकर ब्रिटिश सरकार ने इन्हें 'सर' की उपाधि प्रदान की।
मशहूर शायर 'मनुव्वर राना' का कहना है कि इक़बाल के जेहन में हमेशा वह हिन्दुस्तान था, जो किसी सरहद में नहीं बँटा था। वह कहते हैं कि ‘जिस तरह [[भगत सिंह]] के हिन्दुस्तान में पूरा हिन्दुस्तान शामिल था, उसी तरह इक़बाल के हिन्दुस्तान में भी पूरा हिन्दुस्तान शामिल था।’ दूसरी ओर अन्य मशहूर शायर 'निदा फ़ाजली' कहते हैं कि इक़बाल बाद में पाकिस्तान के ही हिमायती बनकर रह गये थे। इक़बाल की क़ब्र पर अपने संस्मरण की याद करते हुए वह कहते हैं कि आज पाकिस्तान में इक़बाल को पूजा जाने लगा है और लोग उनकी क़ब्र पर आकर दुआएँ मांगने लगे हैं। वह शायर कम और पीर ज़्यादा बन गये हैं। ऐसा क्या हुआ कि जहाँ एक ओर उन्होंने लिखा ‘सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा’ तो वहीं दूसरी ओर एक अलग मुस्लिम राज्य बनाने का विचार भी उन्होंने ही रखा। वहाँ उनका लिखा ‘लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी’, कौमी तराना बन गया।
 
*[[मुरादाबाद]] के शायर मंसूर उस्मानी कहते हैं कि यह बदकिस्मती है कि इक़बाल को सिर्फ़ [[मुसलमान]] शायर की तरह देखा गया। वह कहते हैं कि इक़बाल सिर्फ़ इंसानियत के तरफदार थे ना कि किसी एक मुल्क या मजहब के। इक़बाल ने 1909 ई. में ‘शिकवा’ की रचना की, जिसमें उन्होंने मुसलमानों के ख़राब आर्थिक हालात की ख़ुदा से शिकायत की है।


{{प्रचार}}
{{प्रचार}}

Revision as of 06:02, 9 November 2011

मोहम्मद इक़बाल एक आधुनिक भारतीय प्रसिद्ध मुसलमान कवि थे। इनका जन्म ब्रिटिश भारत के 'सियालकोट', (पाकिस्तान) में 9 नवम्बर, 1877 को हुआ तथा इनकी मृत्यु 21 अप्रैल, 1938 ई. को हुई थी। इनके द्वारा लिखी गईं रचनाएँ मुख्य रूप से फ़ारसी में हैं। इनकी अंग्रेज़ी में केवल एक पुस्तक है, जिसका शीर्षक है, 'सिक्स लेक्चर्स ऑन दि रिकन्सट्रक्शन ऑफ़ रिलीजस थॉट (धार्मिक चिन्तन की नवव्याख्या के सम्बन्ध में छह व्याख्यान)' है। मोहम्मद इक़बाल का मत था कि इस्लाम धर्म रूहानी आज़ादी की जद्दोजहद के जज़्बे का अलमबरदार है, और सभी प्रकार के धार्मिक अनुभवों का निचोड़ है। वह कर्मवीरता का एक जीवन्त सिद्धान्त है, जो जीवन को उद्देश्यपूर्ण बनाता है।

दूरदर्शी व्यक्तित्व

इक़बाल ब्रिटेन और जर्मनी में पढ़ने के बाद हिन्दुस्तानी सरज़मीं पर लौटे आये थे। आज के दौर में पूरे मुल्क में भ्रष्टाचार और दूसरी मुश्किलात को लेकर जो आवामी जंग छिड़ी हुई है, उसका अंदेशा इक़बाल ने पहले ही लगा लिया था और लिखा था-

"वतन की फ़िक्र कर नादां, मुसीबत आने वाली है
तेरी बरबादियों के चर्चे हैं आसमानों में,
ना संभलोगे तो मिट जाओगे ए हिंदोस्तां वालों
तुम्हारी दास्तां भी न होगी दास्तानों में।"

मुस्लिम राज्य का विचार

यूरोप धन और सत्ता के लिए पागल है। इस्लाम ही एकमात्र धर्म है, जो सच्चे जीवन मूल्यों का निर्माण कर सकता है और अनवरत संघर्ष के द्वारा प्रकृति के ऊपर मनुष्य को विजयी बना सकता है। उनकी रचनाओं ने भारत के मुसलमान युवकों में यह भावना भर दी कि, उनकी एक पृथक भूमिका है। इक़बाल ने ही सबसे पहले 1930 ई. में भारत के सिंध के भीतर उत्तर-पश्चिम सीमाप्रान्त, बलूचिस्तान, सिंध तथा कश्मीर को मिलाकर एक नया मुस्लिम राज्य बनाने का विचार रखा, जिसने पाकिस्तान को जन्म दिया। पाकिस्तान शब्द इक़बाल का गढ़ा हुआ नहीं है। इसे 1933 ई. में चौधरी रहमत अली ने गढ़ा था। इक़बाल की काव्य प्रतिभा से प्रभावित होकर ब्रिटिश सरकार ने इन्हें 'सर' की उपाधि प्रदान की।

शायरों के विचार

मशहूर शायर 'मनुव्वर राना' का कहना है कि इक़बाल के जेहन में हमेशा वह हिन्दुस्तान था, जो किसी सरहद में नहीं बँटा था। वह कहते हैं कि ‘जिस तरह भगत सिंह के हिन्दुस्तान में पूरा हिन्दुस्तान शामिल था, उसी तरह इक़बाल के हिन्दुस्तान में भी पूरा हिन्दुस्तान शामिल था।’ दूसरी ओर अन्य मशहूर शायर 'निदा फ़ाजली' कहते हैं कि इक़बाल बाद में पाकिस्तान के ही हिमायती बनकर रह गये थे। इक़बाल की क़ब्र पर अपने संस्मरण की याद करते हुए वह कहते हैं कि आज पाकिस्तान में इक़बाल को पूजा जाने लगा है और लोग उनकी क़ब्र पर आकर दुआएँ मांगने लगे हैं। वह शायर कम और पीर ज़्यादा बन गये हैं। ऐसा क्या हुआ कि जहाँ एक ओर उन्होंने लिखा ‘सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा’ तो वहीं दूसरी ओर एक अलग मुस्लिम राज्य बनाने का विचार भी उन्होंने ही रखा। वहाँ उनका लिखा ‘लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी’, कौमी तराना बन गया।

  • मुरादाबाद के शायर मंसूर उस्मानी कहते हैं कि यह बदकिस्मती है कि इक़बाल को सिर्फ़ मुसलमान शायर की तरह देखा गया। वह कहते हैं कि इक़बाल सिर्फ़ इंसानियत के तरफदार थे ना कि किसी एक मुल्क या मजहब के। इक़बाल ने 1909 ई. में ‘शिकवा’ की रचना की, जिसमें उन्होंने मुसलमानों के ख़राब आर्थिक हालात की ख़ुदा से शिकायत की है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ