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नाम का संस्कृत शब्द 'नामम्' और पालि शब्द 'नामा' है। वेदों और हिंदू धर्म में लाक्षणिक चिह्न या संकेत, जिसे अक्सर व्यक्ति के नाम के अर्थ में प्रस्तुत किया जाता था और इस शब्द का यह अर्थ भी है 'जो किसी वस्तु के लिए हो'।

  • भारतीय भाषा विज्ञान में यह शब्द भाषा के अंगों के रूप में संज्ञा का द्योतक है।
  • कुछ हिंदू मतों में इस शब्द ने रूप के विपरीत किसी वस्तु के सार या द्रव्य का दार्शनिक अर्थ धारण कर लिया।
  • थेरवाद बौद्ध धर्म में नाम, जो रूप से कोई अलग वस्तु है, व्यक्तित्व के चार अभौतिक अवयवों का द्योतक है:
  1. अनुभूति (वेदना)
  2. उद्भावना (सन्ना)
  3. मानसिक रचना या प्रवृत्ति (संखारा)
  4. चेतना (विञाण)
  • बताया जाता है कि ये सूक्ष्म अवयव व्यक्ति के निर्माण के लिए विभिन्न भौतिक गुणों से संयुक्त हो जाते हैं, जैसे आकार, आकृति और भार।
  • अधिकांश बौद्ध मतों के अनुसार, एक व्यक्ति का कोई भी या सभी अभौतिक एवं भौतिक अवयव यदि किसी अन्य पर आवश्यक रूप से निर्भर हो जाएं, तो बौधित्व[1] में बाधा पड़ती है।
  • इसलिए एक बौद्ध, जो बोधित्व के मार्ग पर है, यथार्थ के नाम एवं रूप पक्षों की आधारभूत अवास्तविकता को समझने का प्रयास करता है।
  • अनिवार्यत: इसी प्रकार उपनिषदों एवं वेदांत में भी नाम – रूप समस्त रचना में व्याप्त हैं और वे मूलभूत कारक से बिल्कुल भिन्न हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ज्ञान-प्राप्ति

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