राज्यश्री: Difference between revisions
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Revision as of 11:40, 18 May 2012
राज्यश्री थानेश्वर के शासक प्रभाकरवर्धन की पुत्री और सम्राट हर्षवर्धन की 'भगिनी' (बहन) थी। उसका विवाह कन्नौज के मौखरि वंश के शासक ग्रहवर्मा से हुआ था, जिसका वध मालवा के राजा देवगुप्त के हाथों हुआ।
- प्रभाकरवर्धन की मृत्यु के उपरान्त ही देवगुप्त का आक्रमण कन्नौज पर हुआ और एक युद्ध प्रारम्भ हो गया।
- इस युद्ध में ग्रहवर्मा मारा गया और राज्यश्री को बन्दी बनाकर कन्नौज के काराग़ार में डाल दिया गया।
- इसकी सूचना मिलते ही राज्यश्री के ज्येष्ठ अग्रज राज्यवर्धन ने उसे काराग़ार से मुक्त कराने के लिए कन्नौज की ओर प्रस्थान किया।
- राज्यवर्धन ने मालवा के शासक देवगुप्त को पराजित करके मार डाला, किंतु वह स्वयं देवगुप्त के सहायक और बंगाल के शासक शशांक द्वारा मारा गया।
- इसी उथल-पुथल में राज्यश्री काराग़ार से भाग निकली और विन्ध्यांचल के जंगलों में उसने शरण ली।
- इस बीच राज्यश्री का कनिष्ठ अग्रज हर्षवर्धन, राज्यवर्धन का उत्तराधिकारी बन चुका था। उसने राज्यश्री को विन्ध्यांचल के जंगलों में उस समय ढूँढ निकाला, जब वह निराश होकर चिता में प्रवेश करने ही वाली थी।
- हर्षवर्धन उसे कन्नौज वापस लौटा लाया और आजीवन उसको सम्मान दिया। उसने कन्नौज से ही अपने विशाल साम्राज्य का शासन कार्य किया।
- चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार वह प्राय राज्यश्री से राज्यकार्य में परामर्श लेता था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 402 |