काली मिट्टी: Difference between revisions
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Revision as of 08:41, 26 May 2012
काली मिट्टी को 'रेगड़ मिट्टी' या 'काली कपास मिट्टी' के नाम से भी जाना जाता है। काली मिट्टी एक परिपक्व मिट्टी है जो मुख्यतः दक्षिणी प्रायद्वीपीय पठार के लावा क्षेत्र में पायी जाती है। इसका निर्माण चट्टानों के दो वर्ग दक्कन ट्रैप एवं लौहमय नीस और शिस्ट से हुआ है। ये मिट्टी भारत के कछारी भागों में मुख्य रूप से पाई जाती है।
प्राप्ति स्थान
5 लाख वर्ग किमी क्षेत्र मे फैली यह मिट्टी 100 से 250 उत्तरी अक्षांश 730 से 800 पूर्वी देशान्तर के बीच पाई जाती है। यह मिट्टी गुजरात एवं महाराष्ट्र राज्यों के अधिकांश क्षेत्र, मध्य प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र, उड़ीसा के दक्षिणी क्षेत्र, कर्नाटक राज्य के उत्तरी ज़िलों, आंध्र प्रदेश के दक्षिणी क्षेत्र, कर्नाटक राज्य के उत्तरी ज़िलों, आंध्र प्रदेश के दक्षिणी एवं समुद्रतटीय क्षेत्र, तमिलनाडु के सलेम, रामनाथपुरम, कोयम्बटूर तथा तिरनलवैली, राजस्थान के बूंदी तथा टोंक आदि ज़िलों में 5.5 लाख वर्ग किमी क्षेत्र पर विस्तृत है।
निर्माण
यह मिट्टी डकन ट्रेप शैलों के विखण्डन से निर्मित है। साधारणतः यह मिट्टी मृत्तिकामय, लसलसी तथा अपरागम्य होती है। इसका रंग काला तथा कणों की बनावट घनी होती है। इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं जीवांशों की कम मात्रा पायी जाती है, जबकि चूना, पोटाश, मैग्नीशियम, एल्यूमिना एवं लोहा पर्याप्त मात्रा में मिले रहते हैं।
कृषि के लिए अनुकूल
उच्च स्थलों पर मिलने वाली काली मिट्टी निचले भागों की काली मिट्टी की अपेक्षा कम उपजाऊ होती है। निम्न भाग वाली गहरी काली मिट्टी में गेहूँ, कपास, ज्वार, बाजरा आदि की कृषि की जाती है। कपास की खेती के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होने के कारण इसे 'कपास की काली मिट्टी' अथवा कपासी मृदा भी कहा जाता हे।
इस मिट्टी की जलधारण क्षमता अधिक है। यही कारण है कि यह मिट्टी शुष्क कृषि के लिए अनुकूल है।