जातकर्म संस्कार: Difference between revisions
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*गर्भस्थ बालक के जन्म होने पर यह संस्कार किया जाता है-'जाते जातक्रिया भवेत्।' | *गर्भस्थ बालक के जन्म होने पर यह संस्कार किया जाता है-'जाते जातक्रिया भवेत्।' | ||
*इसमें सोने की शलाका से विषम मात्रा में घृत और मधु घिस करके बालक को चटाया जाता है। इससे माता के गर्भ में जो रस पीने का दोष है, वह दूर हो जाता है और बालक की आयु तथा मेधाशक्ति को बढ़ाने वाली औषधि बन जाती है। सुवर्ण वातदोष को दूर करता है। मूत्र को भी स्वच्छ बना देता है और रक्त के ऊर्ध्वगामी दोष को भी दूर कर देता है। मधु लाला (लार)-का संचार करता है और रक्त का शोधक होने के साथ-साथ बलपुष्टिकारक भी है। | *इसमें सोने की शलाका से विषम मात्रा में घृत और मधु घिस करके बालक को चटाया जाता है। | ||
*इससे माता के गर्भ में जो रस पीने का दोष है, वह दूर हो जाता है और बालक की आयु तथा मेधाशक्ति को बढ़ाने वाली औषधि बन जाती है। | |||
*सुवर्ण वातदोष को दूर करता है। मूत्र को भी स्वच्छ बना देता है और रक्त के ऊर्ध्वगामी दोष को भी दूर कर देता है। | |||
*मधु लाला (लार)-का संचार करता है और रक्त का शोधक होने के साथ-साथ बलपुष्टिकारक भी है। | |||
==सम्बंधित लिंक== | |||
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[[Category:हिन्दू_धर्म_कोश]] |
Revision as of 12:26, 29 May 2010
- हिन्दू धर्म संस्कारों में जातकर्म संस्कार चतुर्थ संस्कार है।
- गर्भस्थ बालक के जन्म होने पर यह संस्कार किया जाता है-'जाते जातक्रिया भवेत्।'
- इसमें सोने की शलाका से विषम मात्रा में घृत और मधु घिस करके बालक को चटाया जाता है।
- इससे माता के गर्भ में जो रस पीने का दोष है, वह दूर हो जाता है और बालक की आयु तथा मेधाशक्ति को बढ़ाने वाली औषधि बन जाती है।
- सुवर्ण वातदोष को दूर करता है। मूत्र को भी स्वच्छ बना देता है और रक्त के ऊर्ध्वगामी दोष को भी दूर कर देता है।
- मधु लाला (लार)-का संचार करता है और रक्त का शोधक होने के साथ-साथ बलपुष्टिकारक भी है।