मेहदी हसन: Difference between revisions
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* न किसी की आंख का नूर | * न किसी की आंख का नूर | ||
* शिकवा ना कर, गिला ना कर | * शिकवा ना कर, गिला ना कर | ||
* गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौबहार चले | |||
==पुरस्कार== | ==पुरस्कार== | ||
मेहदी हसन को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। जनरल अयूब ख़ाँ ने उन्हें तमगा-ए-इम्तियाज़, जनरल ज़िया उल हक़ ने प्राइड ऑफ़ परफ़ॉर्मेंस और जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ ने हिलाल-ए-इम्तियाज़ पुरस्कार से सम्मानित किया था। इसके अलावा भारत ने 1979 में सहगल अवॉर्ड से सम्मनित किया। | मेहदी हसन को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। जनरल अयूब ख़ाँ ने उन्हें तमगा-ए-इम्तियाज़, जनरल ज़िया उल हक़ ने प्राइड ऑफ़ परफ़ॉर्मेंस और जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ ने हिलाल-ए-इम्तियाज़ पुरस्कार से सम्मानित किया था। इसके अलावा भारत ने 1979 में सहगल अवॉर्ड से सम्मनित किया। |
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मेहदी हसन (जन्म: 18 जुलाई 1927; मृत्यु: 13 जून 2012) एक प्रसिद्ध ग़ज़ल गायक थे। इन्हें 'ग़ज़ल का गायक' भी कहा जाता है। इन्हें ख़ाँ साहब के नाम से भी जाना जाता है।
जीवन परिचय
ग़ज़ल सम्राट मेहदी हसन का जन्म 18 जुलाई 1927 को राजस्थान के झुंझुनू के लूणा गाँव में हुआ था। मेहदी हसन को संगीत विरासत में मिला है। हसन मशहूर कलावंत संगीत घराने के थे। इन्हें संगीत की तालीम अपने वालिद उस्ताद अज़ीम ख़ाँ और चाचा उस्ताद इस्माइल ख़ाँ से मिली। भारत-पाक के बँटवारे के बाद मेहदी हसन का परिवार पाकिस्तान चला गया था।
परिवार
मेहदी हसन के दो विवाह हुए थे। इनके नौ बेटे और पाँच बेटियाँ हैं। उनके छह बेटे ग़ज़ल गायिकी और संगीत क्षेत्र से जुड़े हैं।
पहला अवसर
ख़ाँ साहब को सन 1935 में जब उनकी उम्र मात्र 8 वर्ष थी फ़ज़िल्का के एक समारोह में पहली बार गाने का अवसर मिला था। इस समारोह में इन्होंने ध्रुपद और ख़याल की गायकी की।
कार्यक्षेत्र
जीवन चलाने के लिए उन्होंने पहले एक साइकिल की दुकान में काम किया और बाद में बतौर कार मैकेनिक का काम किया। परंतु इन दिक्कतों के बावजूद ख़ाँ साहब का ग़ज़ल गायिकी के प्रति लगाव कम नहीं हुआ। ख़ाँ साहब दिनभर की मेहनत के बाद रोजाना ग़ज़ल का अभ्यास करते थे। मेहदी हसन को 1957 में एक गायक के रूप में पहली बार रेडियो पाकिस्तान में बतौर ठुमरी गायक की पहचान मिली। यहीं से उनकी क़ामयाबी का सफ़र शुरू हुआ। उनके ग़ज़ल कार्यक्रम दुनियाभर में आयोजित होने लगे। सन 1980 के बाद उनके बीमार होने से उनका गायन कम हो गया। मेहदी हसन ने क़रीब 54,000 ग़ज़लें, गीत और ठुमरी गाईं। इन्होंने ग़ालिब, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, अहमद फ़राज़, मीर तक़ी मीर और बहादुर शाह ज़फ़र जैसे शायरों की ग़ज़लों को अपनी आवाज़ दी।
मशहूर ग़ज़लें
- जिंदगी में तो सभी प्यार करते हैं...
- अब के हम बिछड़ के
- बात करनी मुझे
- रंजिश ही सही..
- यूं जिंदगी की राह में..
- मोहब्बत करने वाले
- हमें कोई गम नहीं था
- रफ्ता रफ्ता वो मेरी
- न किसी की आंख का नूर
- शिकवा ना कर, गिला ना कर
- गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौबहार चले
पुरस्कार
मेहदी हसन को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। जनरल अयूब ख़ाँ ने उन्हें तमगा-ए-इम्तियाज़, जनरल ज़िया उल हक़ ने प्राइड ऑफ़ परफ़ॉर्मेंस और जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ ने हिलाल-ए-इम्तियाज़ पुरस्कार से सम्मानित किया था। इसके अलावा भारत ने 1979 में सहगल अवॉर्ड से सम्मनित किया।
निधन
मेहदी हसन का निधन कंराची में सन 13 जून 2012 को फेंफड़ों का संक्रमण नामक बीमारी के कारण हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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