बखिरा पक्षी अभयारण्य: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - " जमीन" to " ज़मीन") |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
{{पुनरीक्षण}} | {{पुनरीक्षण}} | ||
[[चित्र:Sarus-Crane-Bakhira-Bird-Sanctuary.jpg|thumb|300px|सारस क्रेन, बखिरा पक्षी अभयारण्य]] | [[चित्र:Sarus-Crane-Bakhira-Bird-Sanctuary.jpg|thumb|300px|सारस क्रेन, बखिरा पक्षी अभयारण्य]] | ||
'''बखिरा पक्षी अभयारण्य''', संतकबीर नगर जनपद के मुख्यालय खलीलाबाद से लगभग बीस किमी की दूरी पर स्थित 28.94 किमी क्षेत्रफल में फैला हुआ है। इतिहास के पन्नों में मोतीझील के नाम से अंकित बखिरा झील को [[14 मई]] [[1990]] को उप्र सरकार ने अधिसूचना जारी करते हुए बखिरा पक्षी विहार का दर्जा प्रदान किया था। तभी से झील में पक्षियों का शिकार प्रतिबंधित कर दिया गया है। शासन की मंशा थी दूर देश से आए सैलानियों के प्राणों की रक्षा व पर्यटकीय दृष्टि से इस स्थान को राष्ट्रीय फलक पर स्थापित करवाना। इस झील को महाराजगंज के साहगी बरवां क्षेत्र से जोड़ते हुए वर्ष [[1997]] मे यहां रेंज कार्यालय की स्थापना की गई। | '''बखिरा पक्षी अभयारण्य''', संतकबीर नगर जनपद के मुख्यालय [[खलीलाबाद]] से लगभग बीस किमी की दूरी पर स्थित 28.94 किमी क्षेत्रफल में फैला हुआ है। इतिहास के पन्नों में मोतीझील के नाम से अंकित बखिरा झील को [[14 मई]] [[1990]] को उप्र सरकार ने अधिसूचना जारी करते हुए बखिरा पक्षी विहार का दर्जा प्रदान किया था। तभी से झील में पक्षियों का शिकार प्रतिबंधित कर दिया गया है। शासन की मंशा थी दूर देश से आए सैलानियों के प्राणों की रक्षा व पर्यटकीय दृष्टि से इस स्थान को राष्ट्रीय फलक पर स्थापित करवाना। इस झील को महाराजगंज के साहगी बरवां क्षेत्र से जोड़ते हुए वर्ष [[1997]] मे यहां रेंज कार्यालय की स्थापना की गई। | ||
जानकारों का कहना है कि 2894.24 हेक्टेयर क्षेत्रफल (परिधि) में फैले बखिरा झील में 1819.91 हेक्टेयर भूमि ग्राम समाज की, 1059.14 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि किसानों की (1024 एकड़ भूमि स्थानीय कास्तकारों) तथा 15.16 हेक्टेयर भूमि वन विभाग यानि आरक्षति भूमि शामिल है। | जानकारों का कहना है कि 2894.24 हेक्टेयर क्षेत्रफल (परिधि) में फैले बखिरा झील में 1819.91 हेक्टेयर भूमि ग्राम समाज की, 1059.14 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि किसानों की (1024 एकड़ भूमि स्थानीय कास्तकारों) तथा 15.16 हेक्टेयर भूमि वन विभाग यानि आरक्षति भूमि शामिल है। |
Revision as of 12:57, 23 October 2012
चित्र:Icon-edit.gif | इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव" |
thumb|300px|सारस क्रेन, बखिरा पक्षी अभयारण्य बखिरा पक्षी अभयारण्य, संतकबीर नगर जनपद के मुख्यालय खलीलाबाद से लगभग बीस किमी की दूरी पर स्थित 28.94 किमी क्षेत्रफल में फैला हुआ है। इतिहास के पन्नों में मोतीझील के नाम से अंकित बखिरा झील को 14 मई 1990 को उप्र सरकार ने अधिसूचना जारी करते हुए बखिरा पक्षी विहार का दर्जा प्रदान किया था। तभी से झील में पक्षियों का शिकार प्रतिबंधित कर दिया गया है। शासन की मंशा थी दूर देश से आए सैलानियों के प्राणों की रक्षा व पर्यटकीय दृष्टि से इस स्थान को राष्ट्रीय फलक पर स्थापित करवाना। इस झील को महाराजगंज के साहगी बरवां क्षेत्र से जोड़ते हुए वर्ष 1997 मे यहां रेंज कार्यालय की स्थापना की गई।
जानकारों का कहना है कि 2894.24 हेक्टेयर क्षेत्रफल (परिधि) में फैले बखिरा झील में 1819.91 हेक्टेयर भूमि ग्राम समाज की, 1059.14 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि किसानों की (1024 एकड़ भूमि स्थानीय कास्तकारों) तथा 15.16 हेक्टेयर भूमि वन विभाग यानि आरक्षति भूमि शामिल है।
संतकबीर नगर जनपद मुख्यालय खलीलाबाद से 16-20 किमी दूर उत्तरी हिस्से में स्थित, मेहदावल मार्ग पर बसे बखिरा कसबे के पूर्वी भाग में स्थित इस पक्षी बिहार के विस्तृत भूभाग में विचरते पक्षियों को देखने के लिए सैलानी यहां आ सकें, इसके लिए पर बखिरा से 3 किमी दूर बखिरा सहजनवां मार्ग पर जसवल के पास उत्तर की ओर 1/2 किमी सड़क बनी है। जहां वाच टावर के अलवा वन विभाग के अधिकारियों कर्मचारियों के लिए आवास बने हुए हैं।
- बखिरा झील से जुड़ी कहानी
ऐतिहासिक बखिरा झील गर्मी की छुट्टी में सैलानियो के लिये आकर्षण का केन्द्र बना रहता है। यहां आने वाले बच्चों में विशेषकर झील की उत्पत्ति को लेकर अच्छी-ख़ासी जिज्ञासा बनी रहती है। किवदंती के अनुसार किसी वक्त बखिरा झील एक ख़ूबसूरत नगर हुआ करता था, लेकिन प्राकृतिक व भौगोलिक कारणों से झील में परिवर्तित हो गया। बखिरा झील की ऐतिहासिक महत्ता इन दिनों मासूमों के लिए पिकनिक स्पाट बनी हुई है।
- पक्षियों की सुरक्षा के प्रयास
बखिरा पक्षी बिहार की देख रेख कर रहे रजर आर एन चौधरी ने बताया कि पक्षियों के सुरक्षा के लिए निगरानी के लिए वाचटावर, कर्मचारियों के लिए आवासीय भवन, हाल एवं गेट बना है। सीमित संसाधनों और सीमित स्टाफ के सहारे सुरक्षा कार्य किया जा रहा है। अवैध रूप से पक्षियों का शिकार करने वाले 11 लोगों को पकड़कर उनसे बीस हज़ार रुपया जुर्माना वसूला गया है।
- बखिरा पक्षी विहार के पक्षी
thumb|250px|बखिरा पक्षी विहार यहां पर पूरे वर्ष पानी भरा रहता है जिसके चलते जलीय वनस्पतियां, छोटे-छोटे कीड़े, घोंघे व सीप आदि के चलते यूरोप, साइबेरिया, तिब्बत, चीन देशों से पक्षियां आती हैं। बखिरा पक्षी विहार में दीवाली से होली तक प्रवासी और अप्रवासी पक्षियों की किलकारियां पर्यटकों को खूब लुभाती हैं। सर्दी का मौसम बिताने के बाद प्रवासी पक्षी अपने वतन को लौट जाते हैं। वन विभाग की मानें तो यहां 113 प्रजाति के पक्षी आते रहे हैं। ख़ास बात यह है कि इन प्रवासी पक्षियों में अधिकांश शाकाहारी हैं। ये पक्षी रोज भोर से स्वतंत्र विचरण करते हुए जल के किनारे उगे झाड़-झुरमुटों से अपना भोजन तलाशते हैं। इनके साथ ही वर्ष भर इस झील में विहार करने वाले स्थानीय पक्षी भी हैं, जो इनके साथ मिलकर समाजिक समरसता का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
- देशी-विदेशी पक्षी
- विदेशी पक्षियां : लालसर, हिवीसिल, कोचार्ड, सूरखाल, गोजू, सवल, पिण्टेल आदि।’
- स्थायी प्रवासी पक्षियां: कैमा, वाटरहेन, राईटर, कारमोरेन्ट, विभिन्न प्रजाति के बगूले, सारस, आदि।
- पर्यावरण की राय
स्थानीय लोगों मे रिटायर्ड भूगोल प्रवक्ता जसवल के निवासी रामशंकर त्रिपाठी ने बताया कि बाटनिकल दृष्टि से भी अतिमहत्त्वपूर्ण यह झील जलीय बनस्पतियों मे भी काफ़ी समृद्ध है। गोन, पटेरा, पोंटे, मोगटान, जेनीचेला, कटिया, लियोफाइटान, काईशैवाल, फीताधारी, कुमुदनी, कमलिनी, सफेद कमल आदि तथा जलचरों मे विभिन्न प्रकार की मछलियां, कछुए, केकड़े, भांकुर, पतासी, टेंगन, सर्प आदि की विविध प्रजातियां यहां पाई जाती हैं। झील का पानी ज़मीन की आर्द्रता बनाए रखने में फायदे मंद है।
|
|
|
|
|