सारस

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search

thumb|सारस सारस (अंग्रेजी: Crane) विश्व में सबसे लंबा उड़ने वाला पक्षी, दक्षिण एशिया का निवासी है। सारस का जंतु वैज्ञानिका नाम 'ग्रस एंटिगोन एंटिगोन' (Grus antigone antigone) है जो अब भारत में ही सीमित है, जबकि अन्य प्रजाति ग्रस एंटिगोन शार्पीयाइ भारत में असम से वियतनाम और यहाँ तक कि ऑस्ट्रेलिया में भी पाई जाती है, जहाँ ये 1960 के दशक के दौरान प्रवास कर गई थी। दूसरी प्रजाति का रंग इस्पाती-स्लेटी होता है, जबकि पहली प्रजाति की गर्दन पर सफ़ेद पंख होते हैं।

भारत में सारस

भारतीय उपमहाद्वीप में नामित सारस प्रजाति पश्चिम में सिंध से पूर्व में असम तक उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में गोदावरी की द्रोणी तक पाई जाती थी। वर्तमान में यह उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तरी महाराष्ट्र राज्यों में बहुतायत में पाई जाती है। किछ जोड़े हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में भी देखे जा सकते हैं। भारत में ग्रस एंटिगोन शार्पीयाइ असम और मेघालय तक ही सीमित है।

निवास स्थान

सारस जलासिक्त क्षेत्र, दलदल, नदी थाले, तालाब, जलाशय, नहर रिसाव क्षेत्र और द्रोणियों में पाया जाने वाला पक्षी है। यह कृषि योग्य भूमि, बंजर खेत, ख़राब होती ज़मीन (खारी और जलक्रांत) तथा परती भूमि में भी निवास करता है। बच्चों की ज़िम्मेदारी से मुक्त जोड़ों को स्वयं को पानी वाले इलाकों तह सीमित नहीं रखना पड़ता।

विशेषकर बंजर और ऊसर भूमि जैसी खुली जगहें अल्पवयस्क सारसों का मिलन स्थल होती हैं। वे दोपाहर बाद और शाम को इन स्थानों पर जमा होते हैं और उस समय उनकी नाचने, गोल-गोल घूमने, पंख फैलाकर दौड़ने, चुनौती देने, झगड़ने, झुकने और पंजे के बल कूदने जैसी गतिविधियाँ देखी जा सकती हैं। ऐसी खुली जगहों में ही सारस की विख्यात जोड़ी बनती है। thumb|300px|left|सारस नर और मादा किसी एक के मरने तक एक-दूसरे के प्रति वफ़ादार रहते हैं। वे हमेशा एक-दूसरे के साथ-साथ पाए जाते हैं और उनका बंधन उनकी पीढ़ी को एक साथ फैलाता है, अपनी चोंच को आसमान की तरफ़ उठाता है और एक लंबी, गूंजती आवाज़ निकालता है। जवाब में मादा आसमान की तरफ़ चोंच करके नर की लंबी पुकार का दो बार छोटे स्वर में जवाब देती है। बिगुल जैसी यह पुकार सभी सारसों की विशेषता है और इसे काफ़ी दूर तक सुना जा सकता है।

घोंसला

सारस अपना घोंसला घनी वनस्पतियों से भरे उथले तालाबों के पास बनाते हैं, इनका घोंसला आसपास के दलदल से लाए जलीय पौधों का ढेर होता है। घोंसला बनाने में मादा अहम भूमिका निभाती है। घोंसला टाइफ़ा अंगूस्टेटा की घनी पैदावार या दलदल के उभरे टीले या जलकुंभी से भरे तालाब में भी हो सकता है। पानी भरे धान के खेत घोंसले बनाने की एक अन्य जगह है, हालांकि किसान ऐसे घोंसलों को सहन नहीं करते हैं। घोंसले बनाने की समयावधि जलक्षेत्र में पानी के अनुसार जुलाई से अगस्त और दिसंबर से जनवरी तक होती है। अप्रैल में भी सारसों को घोंसले बनाते देखा गया है। जिस इलाक़े में घोंसले बनाए जाते हैं, उसका क्षेत्रफल 0.07 से 1 वर्ग किमी होता है।

सारस के चूज़े

सामान्यतः मादा सारस एक बार में दो अंडे देती है, जिन्हें मादा और नर बारी-बारी से सेते हैं। अंडे से चूज़े 28 से 31 दिन में निकलते है। सारस के चूज़े बहुत तेज़ी से बड़े होते हैं। अंड़े से बाहर आने के कुछ ही घंटों में घोंसले में और आसपास गतिविधि प्रारंभ कर देते हैं। जब भी उनके माता-पिता उन्हें सचेत करते हैं। वे दलदल में छिप जाते हैं। वे सात से नौ महीने बाद अपने माता-पिता पर निर्भर नहीं रहते। उनका पालन-पोषण दलदल में उपलब्ध प्रोटीनयुक्त आहार (कीड़े, मोलस्क, कभी-कभी मछली) से किया जाता है। वतस्त सारस का भोजन जलासिक्त क्षेत्रों के पौधों के प्रकंद, घास एवं प्रतृण के बीज, कीड़े, मोलस्क और सांप होते हैं। रात को उनका परिवार दलदल के टीले पर या पेड़ के नीचे रहता हैं।

आवास को ख़तरा

thumb|250px|सारस 1988-1989 में दक्षिण एशिया में सारस की कुल संख्या 12 हज़ार आकी गई थी। आशंका है कि यह संख्या घट रही है। इनकी जन्मदर केवल 13 प्रतिशत है, जबकि यूरेशियाई (ग्रस ग्रस) और सैंडहिल (ग्रस केनेडेंसिस) सारस की जन्मदर 20 से 60 प्रतिशत है। सारस के चूज़े लबी घास से गुज़रते वक़्त वन एवं यूरेशियाई बिल्ली, नेवले और सियार का शिकार बन जाते हैं। जलासिक्त क्षेत्रों में भूमि के उपयोग के तरीक़े में परिवर्तन से प्रजनन और भरण-पोषण के लिए आवास की उपलब्धता में कमी आई है। फसल उत्पादन के तरीक़े में हुए बदलाव, यानी परंपरागत अनाज के बदले नकदी फसल उगाने के कारण सारस के भरण-पोषण पर भी असर पड़ा है। सारसों की मृत्यु के अन्य कारण विषैले कीटनाशक, गैर क़ानूनी शिकार तथा ऊपर लगे तारों से टकराना भी है। किसान भी अपने खेतों में घोंसलों को नष्ट कर देते हैं और यहां तक कि इस पक्षी को विष भी दे देते हैं।

हाल के अध्ययनों से सारस की संख्या आमतौर पर राजस्थान में स्थिर लगती है और यह उत्तर प्रदेश और गुजरात में घट रही है। हाल ही में जून में पूरे भारत में की गई सारस की गणना के अनुसार, एक दिन में क़रीब 2,000 सारस गिने गए। सारस की संख्या भारत के कथित पिछड़े इलाक़ों में स्थिर रही है, जहां भूमि के उपयोग का परंपरागत तरीक़ा बरक़रार हों, वहां अकार्बनिक खाद और कीटनाशकों पर ज़ोर दिया जाता है। औद्योगिकीकरण और आधुनिक कृषि से सारस के आवास को ख़तरा है। सारसों के जोड़े इधर-उधर बिखरकर प्रजनन करते हैं और जलासिक्त भूमि की अवस्था व भोजन की उपलब्धता के अनुसार के क्षेत्र में चले जाते हैं, इसलिए अभयारण्य बनाकर इनकी रक्षा करना कठिन है। सारस की सुरक्षा का सर्वोत्तम तरीक़ा स्थानीय लोगों को संरक्षण पहल में शामिल करना और उन्हें पक्षी के आवास को साफ़-सुथरा रखने तथा अतिक्रमण और अत्यधिक दोहन से बचाने के लिए प्रेरित करना है।

दांपत्य प्रेम का प्रतीक

सारस के जोड़े को दांपत्य प्रेम का प्रतीक माना जाता है और महाकाव्य रामायण से इसका संबंध होने के कारण भारत में आमतौर पर इसका शिकार या उत्पीड़न नहीं किया जाता। इसलिए यह गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फल-फूल रहा है, लेकिन बिहार और पूर्वी इलाकों में यह लुप्त होने के स्थिति में आ गया है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः