बाल गन्धर्व: Difference between revisions
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Revision as of 12:08, 8 May 2013
बाल गन्धर्व
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पूरा नाम | नारायण श्रीपाद राजहंस |
प्रसिद्ध नाम | बाल गन्धर्व |
जन्म | 26 जून, 1888 ई. |
जन्म भूमि | पुणे, महाराष्ट्र |
मृत्यु | 15 जुलाई, 1967 |
मृत्यु स्थान | पुणे |
पति/पत्नी | गौहर बाई कर्नाटकी |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | मराठी रंगमंच के कलाकार और गायक |
शिक्षा | संगीत तथा अभिनय |
पुरस्कार-उपाधि | 'संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार', 'पद्मभूषण' |
प्रसिद्धि | रंगमंच कलाकार |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | बाल गन्धर्व ने 'गन्धर्व नाट्य मंडली' नाम से अपनी एक संस्था बनाई थी। इस संस्था ने वर्ष 1944 तक अनेक नाटक प्रस्तुत किए। यह मराठी रंगमंच की सिरमौर संस्था बन गई थी। |
नारायण श्रीपाद राजहंस (प्रसिद्ध नाम 'बाल गन्धर्व'; जन्म- 26 जून, 1888 ई., पुणे, महाराष्ट्र; मृत्यु- 15 जुलाई, 1967, पुणे) मराठी रंगमंच के महान नायक और प्रसिद्ध गायक थे। उन्होंने रंगमंच पर अपने अभिनय की शुरुआत सर्वप्रथम शकुंतला का चरित्र निभाकर की थी। नारायण श्रीपाद राजहंस को 'बाल गन्धर्व' के नाम से अधिक जाना जाता है। यह नाम उन्हें भारत के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानियों में से एक बाल गंगाधर तिलक ने दिया था। बाल गन्धर्व मराठी रंगमंच पर महिला चरित्रों को निभाते थे, क्योंकि तत्कालीन समय में महिलाएँ रंगमंच पर किसी भी प्रकार की भूमिका नहीं निभाती थीं।
परिचय
रंगमंच के महान नायक नारायण श्रीपाद राजहंस का जन्म 26 जून, 1888 ई. को पुणे के एक मध्यम वर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। यद्यपि इनका वास्तविक नाम 'नारायण श्रीपाद राजहंस' था, लेकिन ये 'बाल गन्धर्व' के नाम से अधिक प्रसिद्ध हुए। रंगमंच के इनके अभिनय से प्रभावित होकर लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने वर्ष 1898 में उन्हें 'बाल गंधर्व' का नाम दिया था और यहीं से इनका ये नाम प्रसिद्ध हो गया।
विवाह
बाल गन्धर्व की प्रथम पत्नी का निधन वर्ष 1940 में हो गया था। इसके बाद उन्होंने वर्ष 1951 में अपनी सहकर्मी गौहर बाई कर्नाटकी से दूसरा विवाह कर लिया।
सफलता
नारायण श्रीपाद राजहंस ने अपने समय के प्रसिद्ध संगीतकार भास्करबुवा से संगीत की शिक्षा प्राप्त की थी। रंगमंच के प्रति आकर्षण के कारण वे 1905 में 'किर्लोस्कर नाट्य मंडली' में सम्मिलित हो गए। उन दिनों रंगमंच पर नारी पात्रों का अभिनय भी पुरुष ही किया करते थे। प्रकृति से नारायण श्रीपाद राजहंस को सुंदर स्वरूप और आकर्षक देहयष्टि मिली थी। जब उन्होंने सर्वप्रथम शकुंतला का अभिनय किया तो दर्शक मंत्रमुग्ध हो उठे। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
नाट्य मंडली
बाद में नारायण श्रीपाद राजहंस ने 'गंधर्व नाट्य मंडली' नाम से अपनी अलग संस्था बना ली। इस संस्था ने वर्ष 1944 तक अनेक नाटक प्रस्तुत किए। यह मराठी रंगमंच की सिरमौर संस्था बन गई। नारायण श्रीपाद ने इसमें अनेक महिला पात्रों का अभिनय किया, जिनमें सुभद्रा, भामिनी, देवयानी, रुक्मिणी, रेवती आदि के नाम प्रमुख रूप से लिये जा सकते हैं।
पुरस्कार व सम्मान
'संगीत नाटक अकादमी' से उन्हें सर्वोत्तम अभिनेता का पुरस्कार मिला। 1964 में राष्ट्रपति ने उन्हें 'पद्मभूषण' के अलंकरण से सम्मानित किया था।
निधन
मराठी रंगमंच को नई दिशा और और प्रसिद्धि दिलाने वाले नारायण श्रीपाद राजहंस का 15 जुलाई, सन 1967 को देहान्त हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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