शिशिर ऋतु: Difference between revisions

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'''शिशिर ऋतु''' [[भारत]] की 6 [[ऋतुएँ|ऋतुओं]] में से एक ऋतु है। [[अंग्रेज़ी]] कलेंडर के अनुसार [[फ़रवरी]] से [[मार्च]] माह में शिशिर ऋतु रहती है। [[विक्रमी संवत]] के अनुसार [[माघ]] और [[फाल्गुन]] 'शिशिर' अर्थात पतझड़ के [[मास]] हैं। इसका आरम्भ [[मकर संक्रांति]] से भी माना जाता है। इस ऋतु में प्रकृति पर बुढ़ापा छा जाता है। वृक्षों के पत्ते झड़ने लगते हैं। चारों ओर कुहरा छाया रहता है। इस प्रकार ये ऋतुएं जीवन रूपी फलक के भिन्न- भिन्न दृश्य हैं, जो जीवन में रोचकता, सरसता और पूर्णता लाती हैं। शिशिर ऋतु में फूलों के पौधे फूलों से लद जाते हैं। बाज़ार में नर्सरी से बिकने वाले पुष्पयुक्त पौधों की भरमार दिखाई देने लगती है। सब्जियों के पौधे तथा लताएँ अपने उत्पादन की चरम स्थिति में पहुँच जाती है। बाज़ार सब्जियों से पट-सा जाता है। भोजन अत्यन्त सुस्वादु लगने लगता है और रसना उसका रस लेते हुए अघाती तक नहीं है। जठराग्नि इतनी तेज हो जाती है कि कुछ भी और कितना भी खाओ, सब पच जाता है।
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*इस ऋतु में प्रकृति पर बुढ़ापा छा जाता है। वृक्षों के पत्ते झड़ने लगते हैं। चारों ओर कुहरा छाया रहता है। इस प्रकार ये ऋतुएं जीवन रूपी फलक के भिन्न-भिन्न दृश्य हैं, जो जीवन में रोचकता, सरसता और पूर्णता लाती हैं।
*शिशिर ऋतु में फूलों के पौधे फूलों से लद जाते हैं। बाज़ार में नर्सरी से बिकने वाले पुष्पयुक्त पौधों की भरमार दिखाई देने लगती है।
*सब्जियों के पौधे तथा लताएँ अपने उत्पादन की चरम स्थिति में इस ऋतु में ही पहुँच जाती है। बाज़ार सब्जियों से पट-सा जाता है। भोजन अत्यन्त सुस्वादु लगने लगता है और रसना उसका रस लेते हुए अघाती तक नहीं है। जठराग्नि इतनी तेज हो जाती है कि कुछ भी और कितना भी खाओ, सब पच जाता है।




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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==बाहरी कड़ियाँ==
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*[http://hindikaraslo.blogspot.in/2012/03/blog-post_1891.html शिशिर ऋतु]
*[http://hindikaraslo.blogspot.in/2012/03/blog-post_1891.html शिशिर ऋतु]

Revision as of 10:02, 23 August 2014

चित्र:Disamb2.jpg शिशिर एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- शिशिर (बहुविकल्पी)

शिशिर ऋतु भारत की छ: ऋतुओं में से एक ऋतु है। अंग्रेज़ी कलेंडर के अनुसार फ़रवरी से मार्च माह में शिशिर ऋतु रहती है। विक्रमी संवत के अनुसार माघ और फाल्गुन 'शिशिर' अर्थात पतझड़ के मास हैं। इसका आरम्भ मकर संक्रांति से भी माना जाता है।

  • इस ऋतु में प्रकृति पर बुढ़ापा छा जाता है। वृक्षों के पत्ते झड़ने लगते हैं। चारों ओर कुहरा छाया रहता है। इस प्रकार ये ऋतुएं जीवन रूपी फलक के भिन्न-भिन्न दृश्य हैं, जो जीवन में रोचकता, सरसता और पूर्णता लाती हैं।
  • शिशिर ऋतु में फूलों के पौधे फूलों से लद जाते हैं। बाज़ार में नर्सरी से बिकने वाले पुष्पयुक्त पौधों की भरमार दिखाई देने लगती है।
  • सब्जियों के पौधे तथा लताएँ अपने उत्पादन की चरम स्थिति में इस ऋतु में ही पहुँच जाती है। बाज़ार सब्जियों से पट-सा जाता है। भोजन अत्यन्त सुस्वादु लगने लगता है और रसना उसका रस लेते हुए अघाती तक नहीं है। जठराग्नि इतनी तेज हो जाती है कि कुछ भी और कितना भी खाओ, सब पच जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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