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भागीरथी [[भारत]] की एक नदी है जो [[उत्तरांचल]] में से बहती है। [[पुराण|पौराणिक]] गाथाओं के अनुसार भागीरथी गंगा की उस शाखा को कहते हैं जो [[गढ़वाल]] ([[उत्तर प्रदेश]]) में [[गंगोत्री]] से निकलकर [[देवप्रयाग]] में [[अलकनंदा]] में मिल जाती है व [[गंगा नदी|गंगा]] का नाम प्राप्त करती है।  
==परिचय==
 
ॠषिकेश को पवित्र तीर्थ माना जाता है। [[गढ़वाल]], [[उत्तरांचल]] में [[हिमालय]] पर्वतों के तल में बसा ॠषिकेश धार्मिक दृष्टि के अतिरिक्त अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए भी प्रसिद्ध है। हिमालय की निचली पहाड़ियों और प्राकृतिक सुन्दरता से घिरे इस धार्मिक स्थान से बहती गंगा नदी इसे अतुल्य बनाती है। ऋषिकेश को [[केदारनाथ]], [[बद्रीनाथ]], [[गंगोत्री]] और [[यमुनोत्री]] का प्रवेशद्वार माना जाता है। कहा जाता है कि इस स्थान पर ध्यान लगाने से मोक्ष प्राप्त होता है। हर साल यहाँ के आश्रमों के बड़ी संख्या में तीर्थयात्री ध्यान लगाने और मन की शान्ति के लिए आते हैं। विदेशी पर्यटक भी यहाँ आध्यात्मिक सुख की चाह में नियमित रूप से आते रहते हैं।
गंगा का एक नाम जिसका संबंध महाराज भागीरथ से है। महाभारत में भी भागीरथी गंगा का वर्णन [[पांडव|पांडवों]] की तीर्थयात्रा के प्रसंग में हैं और [[बदरीनाथ]] का वर्णन भी है।
<blockquote>तत्रापश्यत् धर्मात्मा देव देवर्षिपूजितम्, नरनारायण-स्थानं भागीरथ्योपशोभितम्'</blockquote>
==स्थिति==
==स्थिति==
भागीरथी [[गोमुख]] स्थान से 25 कि.मी. लम्बे गंगोत्री हिमनद से निकलती है। यह समुद्रतल से 618 मीटर की ऊँचाई पर, [[ॠषिकेश]] से 70 किमी दूरी पर स्थित हैं।
भारत के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में एक ऋषिकेश है जो [[उत्तराखण्ड]] में समुद्र तल से 1360 फीट की ऊँचाई पर स्थित है।  हिमालय का प्रवेश द्वार ऋषिकेश [[हरिद्वार]] से लगभग 20-25 किमी की दूरी पर स्थित है यहाँ से पर्वतों के राजा हिमालय का साम्राज्य शुरू हो जाता है। 
 
==कथा==               
==देवप्रयाग में भागीरथी व अलकनंदा का संगम==
ऋषिकेश से संबंधित अनेक धार्मिक  कथाएँ प्रचलित हैं। कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान निकला विष [[शिव]] ने इसी स्थान पर पिया था। विष पीने के बाद उनका गला नीला पड़ गया और उन्हें [[नीलकंठ]] के नाम से जाना गया। एक अन्य अनुश्रूति के अनुसार भगवान [[राम]] ने वनवास के दौरान यहाँ के जंगलों में अपना समय व्यतीत किया था। रस्सी से बना [[लक्ष्मण]] झूला इसका प्रमाण माना जाता है। 1939 ई. में लक्ष्मण झूले का पुनर्निर्माण किया गया। यह भी कहा जाता है कि ऋषि राभ्या ने यहां ईश्वर के दर्शन के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ऋषिकेश के अवतार में प्रकट हुए। तब से इस स्थान को ऋषिकेश नाम से जाना जाता है।
====<u>भागीरथी का देवप्रयाग पहुँचना</u>====
==यातायात व परिवहन==
गंगोत्री से निकली भागीरथी मार्ग में अनेक छोटी-बड़ी नदियों को अपने में समेटती हुई जब देवप्रयाग पहुँचती है तो बहुत तेज गति से बहती है। लहरें उफन-उफन कर एक दूसरे से टकराती हैं। तूफानी शोर के साथ भागीरथी का शुद्ध जल यहाँ बड़ी वेग से बहता हुआ श्वेत झाग सा बनाता है। भागीरथी यहाँ वास्तव में भागती हुई प्रतीत होती है। तेजी से दौड़ती-भागती, कूदती उफनती नदी, बहुत वेग, बहुत तेजी से अठखेलियाँ करती भागीरथी बहुत शानदार भव्य दृश्य प्रस्तुत करती है।
====वायुमार्ग====
 
ऋषिकेश से 18 किमी. की दूरी पर देहरादून के निकट जौली ग्रान्ट एयरपोर्ट नजदीकी एयरपोर्ट है। इंडियन एयरलाइन्स की फ्लाइटें इस एयरपोर्ट को दिल्ली से जोड़ती है।
====<u>अलकनंदा</u>====
====रेलमार्ग====
पहाड़ों के एक ओर तेज वेग से भागती दौड़ती भागीरथी चली आ रही है तो दूसरी ओर शांत अलकनंदा चली आ रही है जो कि शांत, शीतल, मंद-मंद गति और निरंतर गतिशील होकर बहती हुई भागीरथी में मिल जाती है।
ऋषिकेश का नजदीकी रलवे स्टेशन हरिद्वार है जो 25 किमी. दूर है। हरिद्वार देश के प्रमुख रलवे स्टेशनों से जुड़ा हुआ है।  
 
====सड़क मार्ग====
====<u>संगम</u>====
[[दिल्ली]] के कश्मीरी गेट से ऋषिकेश के लिए डीलक्स और निजी बसों की व्यवस्था है। राज्य परिवहन निगम की बसें नियमित रूप से दिल्ली और उत्तराखंड के अनेक शहरों से ऋषिकेश के लिए चलती हैं।
देवप्रयाग में परस्पर मिलने से ठीक पहले भागीरथी अपनी तेज गति व तूफानी अंदाज में अलकनंदा की ओर लपकती हैं। अलकनंदा भी भागीरथी की ओर मुड़ने से पहले रुक जाती है। आगे चलकर अलकनंदा भागीरथी में मिल जाती है। बड़ी सहजता व सरलता से दोनों नदियाँ आपस में मिल जाती है। ऊपरी तौर पर ऐसा लगता है कि दोनों ओर से आती नदियाँ मिलकर एक नदी बनती प्रतीत होती है। इस संगम से ही भागीरथी अपना नाम यहाँ खो देती है और यहाँ पर यह गंगा नदी बन जाती है।


==कथा==
==पर्यटन स्थल==
भागीरथी नदी के सम्बन्ध में एक कथा विश्वविख्यात है। भागीरथ की तपस्या के फलस्वरुप गंगा के अवतरण की कथा <ref>वाल्मीकि बाल॰ 38 से 44 अध्याय तक</ref> है। कथा के अंत में गंगा के भागीरथी नाम का उल्लेख है-<ref>बाल॰44,6</ref>
गढ़वाल, उत्तरांचल में हिमालय पर्वतों के तल में बसा ॠषिकेश धार्मिक दृष्टि के अतिरिक्त अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए भी प्रसिद्ध है। सुबह सवेरे पहाड़ियों के पीछे से निकलता हुआ [[सूर्य देवता|सूर्य]], [[गंगा नदी|गंगा]] के बहते पानी की कलकल, कोहरे से ढकी पहाड़ी चोटियाँ, यह एक ऐसा अनुभव होता है जिसको महसूस किया जा सकता है। यहाँ पर बहती गंगा की खूबसूरती तो देखती ही बनती है। यहाँ के प्रमुख पर्यटन स्थल इस प्रकार हैं।
<blockquote>गंगा त्रिपथगा नाम दिव्या भागीरथीति च त्रीन्पथो भावयन्तीति तस्मान् त्रिपथगा स्मृता</blockquote>
 
====लक्ष्मण झूला====
रोहित के कुल में बाहुक का जन्म हुआ। शत्रुओं ने उसका राज्य छीन लिया। वह अपनी पत्नी सहित वन चला गया। वन में बुढ़ापे के कारण उसकी मृत्यु हो गयी। उसके गुरु ओर्व ने उसकी पत्नी को सती नहीं होने दिया क्योंकि वह जानता था कि वह गर्भवती है। उसकी सौतों को ज्ञात हुआ तो उन्होंने उसे विष दे दिया। विष का गर्भ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। बालक विष (गर) के साथ ही उत्पन्न हुआ, इसलिए 'स+गर= [[सगर]] कहलाया। बड़ा होने पर उसका विवाह दो रानियों से हुआ-
{{main|लक्ष्मण झूला}}
*सुमति- सुमति के गर्भ से एक तूंबा निकला जिसके फटने पर साठ हज़ार पुत्रों का जन्म हुआ।
गंगा नदी के एक किनारे को दूसरे किनारे से जोड़ता यह झूला शहर की खास पहचान है। इसे 1939 में बनवाया गया था। कहा जाता है कि गंगा नदी को पार करने के लिए लक्ष्मण ने इस स्थान पर जूट का झूला बनवाया था।
*केशिनी- जिसके [[असमंजस]] नामक पुत्र हुआ।
====त्रिवेणी घाट====
{{main|त्रिवेणी घाट}}
ऋषिकेश में स्नान करने का यह प्रमुख घाट है जहाँ प्रात: काल में अनेक श्रद्धालु पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाते हैं। कहा जाता है कि इस स्थान पर हिन्दु धर्म की तीन प्रमुख नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम होता है।
====स्वर्ग आश्रम====
स्वामी विशुद्धानन्द द्वारा स्थापित यह आश्रम ऋषिकेश का सबसे प्राचीन आश्रम है। स्वामी जी को काली कमली वाले नाम से भी जाना जाता था। इस स्थान पर बहुत से सुन्दर  मंदिर बने हुए हैं। यहाँ खाने पीने के अनेक रेस्तराँ हैं जहाँ सिर्फ शाकाहारी भोजन ही परोसा जाता है। आश्रम की आसपास हस्तशिल्प के सामान की बहुत सी दुकानें हैं।
====वशिष्ठ गुफा====
ऋषिकेश से 22 किमी. की दूरी पर 3000 साल पुरानी वशिष्ठ गुफा बद्रीनाथ-केदारनाथ मार्ग पर स्थित है। इस स्थान पर बहुत से साधुओं को विश्राम और ध्यान लगाए देखा जा सकता है। कहा जाता है यह स्थान भगवान राम और बहुत से राजाओं के पुरोहित वशिष्ठ का निवास स्थल था। वशिष्ठ गुफा में साधुओं को ध्यानमग्न मुद्रा में देखा जा सकता है। गुफा के भीतर एक शिवलिंग भी स्थापित है।
====गीता भवन====
लक्ष्मण झूला पार करते ही गीता आश्रम है जिसे 1950 ई. में बनवाया गया था। यह अपनी दर्शनीय दीवारों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ रामायण और महाभारत के चित्रों से सजी दीवारें इस स्थान को आकर्षण बनाती हैं। यहाँ एक आयुर्वेदिक डिस्पेन्सरी और गीताप्रेस गोरखपुर की एक शाखा भी है। प्रवचन और कीर्तन मंदिर की नियमित क्रियाएं हैं। शाम को यहाँ भक्ति संगीत का आनंद लिया जा सकता है। तीर्थयात्रियों के ठहरने के लिए यहाँ सैकड़ों कमरे  हैं। 
====योग केन्द्र====
यह विश्वप्रसिद्द योग केन्द्र है एवं कई विख्यात आश्रमों का घर है। यहाँ पहुँचने पर मंदिरों के लंबी कतारें दिखाई देना प्रारंभ हो जाता है। लक्ष्मण झूला, रामझूला, गीता भवन ये स्थान ऋषिकेश से थोडी दूर जिसका नाम "मुनि की रेती" है स्थित हैं।  यहीं से कुछ मिनट की दूरी पर पतित पावन गंगा के दर्शन होते हैं। एक पक्के बँधे हुए विशाल घाट पर सीढियाँ चढ़कर जब ऊपर आते है तब गंगामैया के दर्शन होते हैं।
==मंदिर व मठ==
ऋषिकेश में अनेक मंदिर व मठ हैं। सबका वर्णन किया जाना यहा संभव नहीं है। मगर उक्त स्थानों के अलावा सत्यनारायण मंदिर, स्वर्गाश्रम, शिवानन्द आश्रम, काली कमलीवाला पंचायती क्षेत्र देखने योग्य है, जिनकी जीवन पद्धति, सिद्धांत, जनकल्याण का भाव, भक्ति प्रवाह अतुलनीय है। ऋषिकेश कुल मिलाकर आत्म चेतना का केन्द्र है, जो न केवल ज्ञान और भक्ति का अलख जगाता है बल्कि भविष्य का पथ प्रदर्शक भी है।
यहाँ माया कुंद नामक जगह है जहाँ पर हनुमानजी का मन्दिर है तथा यहाँ मन्दिर की नीति नियमों के साथ रहना पड़ता है एवं यहाँ शाम को सुंदर आरती होती है।


सगर ने [[अश्वमेध यज्ञ]] किया। [[इन्द्र]] ने उसके यज्ञ का घोड़ा चुरा लिया तथा तपस्वी [[कपिल]] के पास ले जाकर खड़ा किया। उधर सगर ने सुमति के पुत्रों को घोड़ा ढूंढ़ने के लिए भेजा। साठ हज़ार राजकुमारों को कहीं घोड़ा नहीं मिला तो उन्होंने सब ओर से पृथ्वी खोद डाली। पूर्व-उत्तर दिशा में [[कपिल]] मुनि के पास घोड़ा देखकर उन्होंने शस्त्र उठाये और मुनि को बुरा-भला कहते हुए उधर बढ़े। फलस्वरूप उनके अपने ही शरीरों से आग निकली जिसने उन्हें भस्म कर दिया। केशिनी के पुत्र का नाम असमंजस तथा असमंजस के पुत्र का नाम [[अंशुमान]] था। असमंजस पूर्वजन्म में योगभ्रष्ट हो गया था, उसकी स्मृति खोयी नहीं थी, अत: वह सबसे विरक्त रह विचित्र कार्य करता रहा था। एक बार उसने बच्चों को [[सरयू नदी|सरयू]] में डाल दिया। पिता ने रुष्ट होकर उसे त्याग दिया। उसने अपने योगबल से बच्चों को जीवित कर दिया तथा स्वयं वन चला गया। यह देखकर सबको बहुत पश्चात्ताप हुआ। राजा सगर ने अपने पौत्र अंशुमान को घोड़ा खोजने भेजा। वह ढूंढ़ता-ढूंढ़ता कपिल मुनि के पास पहुंचा। उनके चरणों में प्रणाम कर उसने विनयपूर्वक स्तुति की। कपिल से प्रसन्न होकर उसे घोड़ा दे दिया तथा कहा कि भस्म हुए चाचाओं का उद्धार गंगाजल से होगा। अंशुमान ने जीवनपर्यंत तपस्या की किंतु वह गंगा को पृथ्वी पर नहीं ला पाया। तदनंतर उसके पुत्र [[दिलीप]] ने भी असफल तपस्या की। दिलीप के पुत्र [[भगीरथ]] के तप से प्रसन्न होकर गंगा ने पृथ्वी पर आना स्वीकार किया। गंगा के वेग को [[शिव]] ने अपनी जटाओं में संभाला। भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर गंगा समुद्र तक पहुंची। भागीरथ के द्वारा गंगा को पृथ्वी पर लाने के कारण यह भागीरथी कहलाई। समुद्र-संगम पर पहुंचकर उसने सगर के पुत्रों का उद्धार किया।<ref>श्रीमद् भागवत, नवम स्कंध, अध्याय 8,9।1-15/ शिव पुराण, 4।3।</ref>
====नीलकंठ महादेव मंदिर====
==टीका टिप्पणी==
लगभग 5500 फीट की ऊँचाई पर स्वर्ग आश्रम की पहाड़ी की चोटी पर नीलकंठ महादेव मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने इसी स्थान पर समुद्र मंथन से निकला विष ग्रहण किया गया था। विषपान के बाद विष के प्रभाव से उनका गला नीला पड़ गया था और उन्हें नीलकंठ नाम से जाना गया था। मंदिर परिसर में पानी का एक झरना है जहाँ भक्तगण मंदिर के दर्शन करने से पहले स्थान करते हैं।
<references/>
====भरत मंदिर====
यह ऋषिकेश का सबसे प्राचीन मंदिर है जिसे 12 शताब्दी में आदि गुरू शंकराचार्य ने बनवाया था। यह मन्दिर बहुत ही सुंदर है।  भगवान राम के छोटे भाई भरत को समर्पित यह मंदिर त्रिवेणी घाट के निकट ओल्ड टाउन में स्थित है। मंदिर का मूल रूप 1398 में तैमूर आक्रमण के दौरान क्षतिग्रस्त कर दिया गया था। हालांकि मंदिर की बहुत सी महत्वपूर्ण चीजों को उस हमले के बाद आज तक संरक्षित रखा गया है। मंदिर के अंदरूनी गर्भगृह में भगवान विष्णु की प्रतिमा एकल शालीग्राम पत्थर पर उकेरी गई है। आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा रखा गया श्रीयंत्र भी यहाँ देखा जा सकता है।
====अय्यपा मन्दिर====
ऋषिकेश में इसी तरह अय्यपा मन्दिर जो कि बहुत दर्शनीय है। यह दिल्ली से महज 225 किमी की दूरी पर है। यहीं से 25 किमी की दूरी पर हरिद्वार है जहाँ रेल एवं बस सेवा प्रचुर मात्रा में हैं यहाँ पर पर्यटक वर्षभर आते रहते हैं और यहाँ ठहरने के लिए होटल, आश्रम, एवं धर्मशाला हैं
==== कैलाश निकेतन मंदिर====
लक्ष्मण झूले को पार करते ही कैलाश निकेतन मंदिर है। 12 खंड़ों में बना यह विशाल मंदिर ऋषिकेश के अन्य मंदिरों से भिन्न है। इस मंदिर में सभी देवी देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित हैं।
 
==प्रसिद्ध==
ऋषिकेश में हस्तशिल्प का सामान अनेक छोटी दुकानों से खरीदा जा सकता है। यहाँ अनेक दुकानें हैं जहाँ से साड़ियों, बेड कवर, हैन्डलूम फेबरिक, कॉटन फेबरिक आदि की खरीददारी की जा सकती है। ऋषिकेश में सरकारी मान्यता प्राप्त हैन्डलूम शॉप, खादी भंडार, गढ़वाल वूल और क्राफ्ट की बहुत सी दुकानें हैं जहाँ से उच्चकोटि का सामान खरीदा जा सकता है।

Revision as of 06:01, 17 June 2010

परिचय

ॠषिकेश को पवित्र तीर्थ माना जाता है। गढ़वाल, उत्तरांचल में हिमालय पर्वतों के तल में बसा ॠषिकेश धार्मिक दृष्टि के अतिरिक्त अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए भी प्रसिद्ध है। हिमालय की निचली पहाड़ियों और प्राकृतिक सुन्दरता से घिरे इस धार्मिक स्थान से बहती गंगा नदी इसे अतुल्य बनाती है। ऋषिकेश को केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री का प्रवेशद्वार माना जाता है। कहा जाता है कि इस स्थान पर ध्यान लगाने से मोक्ष प्राप्त होता है। हर साल यहाँ के आश्रमों के बड़ी संख्या में तीर्थयात्री ध्यान लगाने और मन की शान्ति के लिए आते हैं। विदेशी पर्यटक भी यहाँ आध्यात्मिक सुख की चाह में नियमित रूप से आते रहते हैं।

स्थिति

भारत के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में एक ऋषिकेश है जो उत्तराखण्ड में समुद्र तल से 1360 फीट की ऊँचाई पर स्थित है।  हिमालय का प्रवेश द्वार ऋषिकेश हरिद्वार से लगभग 20-25 किमी की दूरी पर स्थित है यहाँ से पर्वतों के राजा हिमालय का साम्राज्य शुरू हो जाता है।  ==कथा==                ऋषिकेश से संबंधित अनेक धार्मिक  कथाएँ प्रचलित हैं। कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान निकला विष शिव ने इसी स्थान पर पिया था। विष पीने के बाद उनका गला नीला पड़ गया और उन्हें नीलकंठ के नाम से जाना गया। एक अन्य अनुश्रूति के अनुसार भगवान राम ने वनवास के दौरान यहाँ के जंगलों में अपना समय व्यतीत किया था। रस्सी से बना लक्ष्मण झूला इसका प्रमाण माना जाता है। 1939 ई. में लक्ष्मण झूले का पुनर्निर्माण किया गया। यह भी कहा जाता है कि ऋषि राभ्या ने यहां ईश्वर के दर्शन के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ऋषिकेश के अवतार में प्रकट हुए। तब से इस स्थान को ऋषिकेश नाम से जाना जाता है।

यातायात व परिवहन

वायुमार्ग

ऋषिकेश से 18 किमी. की दूरी पर देहरादून के निकट जौली ग्रान्ट एयरपोर्ट नजदीकी एयरपोर्ट है। इंडियन एयरलाइन्स की फ्लाइटें इस एयरपोर्ट को दिल्ली से जोड़ती है।

रेलमार्ग

ऋषिकेश का नजदीकी रलवे स्टेशन हरिद्वार है जो 25 किमी. दूर है। हरिद्वार देश के प्रमुख रलवे स्टेशनों से जुड़ा हुआ है।

सड़क मार्ग

दिल्ली के कश्मीरी गेट से ऋषिकेश के लिए डीलक्स और निजी बसों की व्यवस्था है। राज्य परिवहन निगम की बसें नियमित रूप से दिल्ली और उत्तराखंड के अनेक शहरों से ऋषिकेश के लिए चलती हैं।

पर्यटन स्थल

गढ़वाल, उत्तरांचल में हिमालय पर्वतों के तल में बसा ॠषिकेश धार्मिक दृष्टि के अतिरिक्त अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए भी प्रसिद्ध है। सुबह सवेरे पहाड़ियों के पीछे से निकलता हुआ सूर्य, गंगा के बहते पानी की कलकल, कोहरे से ढकी पहाड़ी चोटियाँ, यह एक ऐसा अनुभव होता है जिसको महसूस किया जा सकता है। यहाँ पर बहती गंगा की खूबसूरती तो देखती ही बनती है। यहाँ के प्रमुख पर्यटन स्थल इस प्रकार हैं।  

लक्ष्मण झूला

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

गंगा नदी के एक किनारे को दूसरे किनारे से जोड़ता यह झूला शहर की खास पहचान है। इसे 1939 में बनवाया गया था। कहा जाता है कि गंगा नदी को पार करने के लिए लक्ष्मण ने इस स्थान पर जूट का झूला बनवाया था।

त्रिवेणी घाट

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

ऋषिकेश में स्नान करने का यह प्रमुख घाट है जहाँ प्रात: काल में अनेक श्रद्धालु पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाते हैं। कहा जाता है कि इस स्थान पर हिन्दु धर्म की तीन प्रमुख नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम होता है।

स्वर्ग आश्रम

स्वामी विशुद्धानन्द द्वारा स्थापित यह आश्रम ऋषिकेश का सबसे प्राचीन आश्रम है। स्वामी जी को काली कमली वाले नाम से भी जाना जाता था। इस स्थान पर बहुत से सुन्दर  मंदिर बने हुए हैं। यहाँ खाने पीने के अनेक रेस्तराँ हैं जहाँ सिर्फ शाकाहारी भोजन ही परोसा जाता है। आश्रम की आसपास हस्तशिल्प के सामान की बहुत सी दुकानें हैं।

वशिष्ठ गुफा

ऋषिकेश से 22 किमी. की दूरी पर 3000 साल पुरानी वशिष्ठ गुफा बद्रीनाथ-केदारनाथ मार्ग पर स्थित है। इस स्थान पर बहुत से साधुओं को विश्राम और ध्यान लगाए देखा जा सकता है। कहा जाता है यह स्थान भगवान राम और बहुत से राजाओं के पुरोहित वशिष्ठ का निवास स्थल था। वशिष्ठ गुफा में साधुओं को ध्यानमग्न मुद्रा में देखा जा सकता है। गुफा के भीतर एक शिवलिंग भी स्थापित है।

गीता भवन

लक्ष्मण झूला पार करते ही गीता आश्रम है जिसे 1950 ई. में बनवाया गया था। यह अपनी दर्शनीय दीवारों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ रामायण और महाभारत के चित्रों से सजी दीवारें इस स्थान को आकर्षण बनाती हैं। यहाँ एक आयुर्वेदिक डिस्पेन्सरी और गीताप्रेस गोरखपुर की एक शाखा भी है। प्रवचन और कीर्तन मंदिर की नियमित क्रियाएं हैं। शाम को यहाँ भक्ति संगीत का आनंद लिया जा सकता है। तीर्थयात्रियों के ठहरने के लिए यहाँ सैकड़ों कमरे  हैं। 

योग केन्द्र

यह विश्वप्रसिद्द योग केन्द्र है एवं कई विख्यात आश्रमों का घर है। यहाँ पहुँचने पर मंदिरों के लंबी कतारें दिखाई देना प्रारंभ हो जाता है। लक्ष्मण झूला, रामझूला, गीता भवन ये स्थान ऋषिकेश से थोडी दूर जिसका नाम "मुनि की रेती" है स्थित हैं। यहीं से कुछ मिनट की दूरी पर पतित पावन गंगा के दर्शन होते हैं। एक पक्के बँधे हुए विशाल घाट पर सीढियाँ चढ़कर जब ऊपर आते है तब गंगामैया के दर्शन होते हैं।

मंदिर व मठ

ऋषिकेश में अनेक मंदिर व मठ हैं। सबका वर्णन किया जाना यहा संभव नहीं है। मगर उक्त स्थानों के अलावा सत्यनारायण मंदिर, स्वर्गाश्रम, शिवानन्द आश्रम, काली कमलीवाला पंचायती क्षेत्र देखने योग्य है, जिनकी जीवन पद्धति, सिद्धांत, जनकल्याण का भाव, भक्ति प्रवाह अतुलनीय है। ऋषिकेश कुल मिलाकर आत्म चेतना का केन्द्र है, जो न केवल ज्ञान और भक्ति का अलख जगाता है बल्कि भविष्य का पथ प्रदर्शक भी है। यहाँ माया कुंद नामक जगह है जहाँ पर हनुमानजी का मन्दिर है तथा यहाँ मन्दिर की नीति नियमों के साथ रहना पड़ता है एवं यहाँ शाम को सुंदर आरती होती है।

नीलकंठ महादेव मंदिर

लगभग 5500 फीट की ऊँचाई पर स्वर्ग आश्रम की पहाड़ी की चोटी पर नीलकंठ महादेव मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने इसी स्थान पर समुद्र मंथन से निकला विष ग्रहण किया गया था। विषपान के बाद विष के प्रभाव से उनका गला नीला पड़ गया था और उन्हें नीलकंठ नाम से जाना गया था। मंदिर परिसर में पानी का एक झरना है जहाँ भक्तगण मंदिर के दर्शन करने से पहले स्थान करते हैं।

भरत मंदिर

यह ऋषिकेश का सबसे प्राचीन मंदिर है जिसे 12 शताब्दी में आदि गुरू शंकराचार्य ने बनवाया था। यह मन्दिर बहुत ही सुंदर है। भगवान राम के छोटे भाई भरत को समर्पित यह मंदिर त्रिवेणी घाट के निकट ओल्ड टाउन में स्थित है। मंदिर का मूल रूप 1398 में तैमूर आक्रमण के दौरान क्षतिग्रस्त कर दिया गया था। हालांकि मंदिर की बहुत सी महत्वपूर्ण चीजों को उस हमले के बाद आज तक संरक्षित रखा गया है। मंदिर के अंदरूनी गर्भगृह में भगवान विष्णु की प्रतिमा एकल शालीग्राम पत्थर पर उकेरी गई है। आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा रखा गया श्रीयंत्र भी यहाँ देखा जा सकता है।

अय्यपा मन्दिर

ऋषिकेश में इसी तरह अय्यपा मन्दिर जो कि बहुत दर्शनीय है। यह दिल्ली से महज 225 किमी की दूरी पर है। यहीं से 25 किमी की दूरी पर हरिद्वार है जहाँ रेल एवं बस सेवा प्रचुर मात्रा में हैं यहाँ पर पर्यटक वर्षभर आते रहते हैं और यहाँ ठहरने के लिए होटल, आश्रम, एवं धर्मशाला हैं

कैलाश निकेतन मंदिर

लक्ष्मण झूले को पार करते ही कैलाश निकेतन मंदिर है। 12 खंड़ों में बना यह विशाल मंदिर ऋषिकेश के अन्य मंदिरों से भिन्न है। इस मंदिर में सभी देवी देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित हैं।  

प्रसिद्ध

ऋषिकेश में हस्तशिल्प का सामान अनेक छोटी दुकानों से खरीदा जा सकता है। यहाँ अनेक दुकानें हैं जहाँ से साड़ियों, बेड कवर, हैन्डलूम फेबरिक, कॉटन फेबरिक आदि की खरीददारी की जा सकती है। ऋषिकेश में सरकारी मान्यता प्राप्त हैन्डलूम शॉप, खादी भंडार, गढ़वाल वूल और क्राफ्ट की बहुत सी दुकानें हैं जहाँ से उच्चकोटि का सामान खरीदा जा सकता है।