उद्धवशतक: Difference between revisions
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कथानक [[गोपी|गोपियों]] के विप्रलम्भ, [[कृष्ण]] सन्देश और [[उद्धव]] गोपी-संवाद के प्रसंगों से गुम्फित है। गोपियों अनन्य प्रेमिकाएँ और उद्धव परम ज्ञानी हैं। विप्रलम्भ शृंगार और [[शांत रस|शांत]] प्रधान [[रस]] हैं। विरह-निवेदन, गम्भीर उक्तियों, चमत्कारपूर्ण संवाद, नाटकीय और दार्शनिक प्रतिपादन स्पष्ट है। रसायन, वेदांत, तर्क, योग और विज्ञानसम्बन्धी कथन कवि की बहुज्ञता के परिचायक हैं। | कथानक [[गोपी|गोपियों]] के विप्रलम्भ, [[कृष्ण]] सन्देश और [[उद्धव]] गोपी-संवाद के प्रसंगों से गुम्फित है। गोपियों अनन्य प्रेमिकाएँ और उद्धव परम ज्ञानी हैं। विप्रलम्भ शृंगार और [[शांत रस|शांत]] प्रधान [[रस]] हैं। विरह-निवेदन, गम्भीर उक्तियों, चमत्कारपूर्ण संवाद, नाटकीय और दार्शनिक प्रतिपादन स्पष्ट है। रसायन, वेदांत, तर्क, योग और विज्ञानसम्बन्धी कथन कवि की बहुज्ञता के परिचायक हैं। | ||
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जगन्नाथदास रत्नाकर का 'उद्धव-शतक' दूतकाव्य की भ्रमरगीत परम्परा में है। इसका प्रकाशन 1931 ई. में हुआ।
भाषा
भाषा अलंकृत ब्रजभाषा और छन्द घनाक्षरी हैं। छन्द मुक्तक-काव्य की विशिष्टताओं से संयुक्त होते हुए भी प्रसंगानुकूल संगृहीत होने के कारण इसे प्रबन्धात्मक रूप प्रदान करते हैं।
कथानक
कथानक गोपियों के विप्रलम्भ, कृष्ण सन्देश और उद्धव गोपी-संवाद के प्रसंगों से गुम्फित है। गोपियों अनन्य प्रेमिकाएँ और उद्धव परम ज्ञानी हैं। विप्रलम्भ शृंगार और शांत प्रधान रस हैं। विरह-निवेदन, गम्भीर उक्तियों, चमत्कारपूर्ण संवाद, नाटकीय और दार्शनिक प्रतिपादन स्पष्ट है। रसायन, वेदांत, तर्क, योग और विज्ञानसम्बन्धी कथन कवि की बहुज्ञता के परिचायक हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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