मद्रास: Difference between revisions

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Revision as of 09:37, 8 November 2014

[[चित्र:University-of-Madras.jpg|thumb|250px|मद्रास विश्वविद्यालय]] मद्रास का वर्तमान नाम चेन्नई है। सन् 1639 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारी फ़्रांसिस डे ने विजयनगर के राजा से कुछ भूमि लेकर इस नगर की स्थापना की थी। उस समय का बना हुआ क़िला अभी तक विद्यमान है। मद्रास के उपनगर मायलापुर में कपालीश्वर शिव का प्राचीन मंदिर है। मायलापुर का शाब्दिक अर्थ मयूरनगर है। पौराणिक जनश्रुति के अनुसार पार्वती ने मयूर का रूप धारण करके शिव जी की इस स्थान पर पूजा की थी। इसी कथा का अंकन इस मंदिर की मूर्तिकारी में है। मंदिर के पीछे एक पवित्र ताल है। ट्रिप्लीकेन में पार्थसारथी का मंदिर भी उल्लेखनीय है। मद्रास के स्थान पर प्राचीन समय में चेन्नापटम नामक ग्राम बसा हुआ था।

इतिहास

1683 और 1686 के चार्टर

9 अगस्त, 1683 को इंग्लैंड के सम्राट चार्ल्स द्वितीय ने न्याय प्रशासन को सक्षम बनाने के लिए एक चार्टर जारी किया। इससे भारत में अंग्रेजों और अन्य यूरोपीय व्यक्तियों द्वारा किए जाने वाले अनधिकृत व्यापार को नियंत्रित करने के लिए कुछ प्रतिबंध लगाए गए थे। इस के द्वारा कंपनी को जहाँ आवश्यक हो वहां नौकाधिकरण स्थापित करने का अधिकार दिया गया था। अधिकरण में एक सिविल विधि के विशेषज्ञ सहित दो सहायकों की नियुक्ति की जा सकती थी। इस न्यायालय को जलयानों की जब्ती, जलदस्युता, अतिचार, क्षति, सदोष कार्यों आदि के व्यापारिक और सामुद्रिक कार्यों की शक्ति दी गई। इस के उपरांत 12 अप्रॅल 1686 को सम्राट जेम्स द्वितीय द्वारा जारी चार्टर के द्वारा कंपनी को जलयान के लिए नौसेनाध्यक्ष, उप-नौसेनाध्यक्ष, सह-नौसेनाध्यक्ष, कप्तान और अन्य अधिकारियों को नियुक्त करने और सेना विधि को प्रवर्तित करने के अधिकार भी दे दिए गए। मद्रास में 10 जुलाई 1686 को पहला नौकाधिकरण स्थापित किया और सेण्टजॉन को इस का प्रमुख नियुक्त किया। इस न्यायालय को सामुद्रिक विवादों के साथ दीवानी और अपराधिक मामलों के निपटारे का अधिकार भी दिया गया था। इन अधिकारों के मिल जाने से यह न्यायालय एक कोर्ट ऑफ जुडिकेचर के रूप में काम करने लगा।

1687 का चार्टर मद्रास का पहला नगर निगम

मद्रास की जनसंख्या में लगातार वृद्धि हो रही थी। एक निश्चित न्याय पद्धति और युक्तिसंगत प्रशासनिक व्यवस्था के न होने से यहाँ के निवासी और विभिन्न समुदाय प्रशासन और न्याय से वंचित रहे थे और असंतोष बढ़ रहा था। कंपनी द्वारा गृहकर लगाने पर उसे जनता के तीव्र जनविरोध का सामना करना पड़ा। कंपनी अपने प्रभुत्व को स्थायित्व प्रदान करने में असफल हो रही थी। इस कारण से कंपनी ने 1600 के चार्टर के अधीन प्राप्त अधिकारों के अंतर्गत 30 दिसंबर 1687 को एक चार्टर जारी किया जिस में जन प्रतिनिधि शासन की स्थापना, सुचारू न्यायिक पद्धति का विकास और करारोपण अधिकारों का उल्लेख किया गया। इस चार्टर के उपबंधों के अनुसार 29 सितबंर 1688 को मद्रास के पहले नगर निगम की स्थापना की गई। नगर निगम में एक मेयर (केवल अंग्रेज़), तीन वरिष्ठ अंग्रेज़, एक फ्रांसिसी, दो पुर्तग़ाली, तीन हिन्दू तीन आर्मेनियन तथा यहूदी व्यापारियों सहित बारह एल्डरमेन तथा 8 से 120 तक नागरिक प्रतिनिधियों के लिए प्रावधान किया गया था। नागरिक प्रतिनिधियों में 30 जातीय प्रतिनिधि सम्मिलित थे। नागरिक प्रतिनिधियों की नियुक्ति मेयर और ऐल्डरमेन द्वारा चुनाव के जरिए तथा कुछ की मनोनयन के जरिए की जाती थी। प्रारंभिक नियुक्तियाँ कंपनी द्वारा की गई थीं। मेयर का कार्यकाल एक वर्ष का होने के कारण ऐल्डरमेनों द्वारा प्रतिवर्ष किसी को मेयर चुनने का प्रावधान बाद में कर दिया गया। एक व्यक्ति एकाधिक बार मेयर रह सकता था। ऐल्डरमेन आजीवन या मद्रास में निवास करने तक अपने पदों पर बने रहते थे। ऐल्डर मेन का पद रिक्त होने पर नागरिक प्रतिनिधियों में से चुनाव के आधार पर उस की पूर्ति कर ली जाती थी। मेयर और ऐल्डरमेनों को भवन निर्माण का कर लगाने और कर्मचारियों के वेतन का भुगतान करने का अधिकार दिया गया था।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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