भोपाल गैस त्रासदी: Difference between revisions

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#सबसे पहले वहाँ कार्यरत कर्मचारियों ने रासायनिक वेंट स्क्रबर का इस्तेमाल किया, जिसका काम असुरक्षित [[गैस]] को क्षारीय जल में घोलकर वायुमंडल में जाने से रोकना है; पर मिथायल आइसो सायनाइड के अनियंत्रित गैस रिसाव के विशाल बादल इससे अप्रभावित रहे।
#सबसे पहले वहाँ कार्यरत कर्मचारियों ने रासायनिक वेंट स्क्रबर का इस्तेमाल किया, जिसका काम असुरक्षित [[गैस]] को क्षारीय जल में घोलकर वायुमंडल में जाने से रोकना है; पर मिथायल आइसो सायनाइड के अनियंत्रित गैस रिसाव के विशाल बादल इससे अप्रभावित रहे।
#यूनियन कार्बाइड ने ऐसी व्यवस्था की थी कि यदि किसी कारणवश वेंट स्क्रबर असफल होता है तो तत्पश्चात ‘प्रज्ज्वलन कालम’ में प्रवेश कर रही इस भयानक गैस को ईधन के रूप में जलाकर वायुमंडल में जाने से रोका जा सके। पर यह प्रयास भी विफल रहा।<ref name="aa"/>
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#तीसरा तथा अंतिम प्रयास जल अग्निशमन के सिमित लघु संसाधनों के [[जल]] छिड़काव के रूप में रहा और यह प्रयास भी विफल रहा।
#तीसरा तथा अंतिम प्रयास जल अग्निशमन के सिमित लघु संसाधनों के [[जल]] छिड़काव के रूप में रहा और यह प्रयास भी विफल रहा।
==मृतक आँकड़ा==
==मृतक आँकड़ा==

Revision as of 07:43, 23 June 2017

भोपाल गैस त्रासदी
विवरण 'भोपाल गैस त्रासदी' भारत में घटित सबसे बड़ी गैसीय दुर्घटना थी। इस दुर्घटना में भोपाल के हज़ारों निर्दोष लोग मारे गए और काफ़ी संख्या में लोग अपंगता और अंधेपन के शिकार हुए।
दुर्घटना तिथि 02 और 03 दिसम्बर सन 1984
राज्य मध्य प्रदेश
शहर भोपाल
कारक मिथाइल आइसो साइनाइट
मृतक संख्या जिस रात दुर्घटना घटी, तीन हज़ार व्यक्ति उसी रात मर गए और इस घटना के बाद गुज़रे तीन हफ़्तों में और 07 से 10 हज़ार व्यक्तियों की मृत्यु हो गई। दुर्घटना के बाद मरे कुल मृतकों की संख्या कम से कम 18 हज़ार बताई जाती है।[1]
अन्य जानकारी इस गैसीय दुर्घटना से हज़ारों लोग बुरी तरह प्रभावित हुए। वे न सिर्फ़ ज़हरीली गैस से ही पीड़ित हुए, बल्कि उन्हें कारख़ाने के पास बसे इलाकों से अपने घरबार छोड़ने पड़े। बहुत-से लोग स्थाई तौर पर बीमारियों से ग्रस्त हो गए।

भोपाल गैस त्रासदी (अंग्रेज़ी: Bhopal disaster) भारत में मध्य प्रदेश राज्य के भोपाल शहर में घटित वह बड़ी दुर्घटना थी, जिसमें हज़ारों लोगों ने अपनी जान गंवा दी। 02 और 03 दिसम्बर सन 1984 को भोपाल में एक भयानक औद्योगिक दुर्घटना हुई। इसे ही "भोपाल गैस कांड" या "भोपाल गैस त्रासदी" के नाम से जाना गया। भोपाल स्थित 'यूनियन कार्बाइड' नामक कंपनी के कारखाने से 'मिथाइल आइसो साइनाइट' (मिक) नामक एक ज़हरीली गैस का रिसाव हुआ, जिससे कीटनाशक बनाया जाता है। इस गैस के रिसाव से लगभग 15000 से अधिक लोगों की जान गई तथा बहुत सारे लोग अनेक तरह की शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के शिकार हुए।

'यूनियन कार्बाइड' की स्थापना

बहुराष्ट्रीय कम्पनी 'यूनियन कार्बाइड' के मुख्य कार्यकारी अधिकारी वारेन एंडरसन ने विश्व के अन्य देश, प्रान्तों, प्रदेशों की तरह भोपाल में भी एक अत्यंत आधुनिक, सुरक्षा और उत्पादन के शीर्ष मायनों पर खरा उतरते रासायनिक कीटनाशक उत्पादन की महत्वकांक्षा वाला कारखाना स्थापित किया था। यूनियन कार्बाइड की बेहतरीन कीटनाशक उत्पादन प्रणाली बाज़ार के साथ सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाई और इसके कारखाने को अनुमानित अर्थलाभ की अपेक्षा आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा, जिसका कंपनी की उत्पादन प्राणाली, सुरक्षा मानकदंड और उपकरणों के अनुरक्षण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।[2]

मिथायल आइसो सायनाइड का रिसाव

03, 1984 की रात्रि को यूनियन कार्बाइड के उत्पादन नियंत्रण कक्ष में बैठे स्थाई कर्मचारियों को कुछ रासायनिक रिसाव की शंका हुई। उपस्थित कर्मचारी ने तत्काल ही भूमिगत रसायन भंडारण टैंक का निरीक्षण किया तो उन्हें वहाँ रसायन 'मिथायल आइसो सायनाइड' का मामूली-सा रिसाव मिला, जिसे उन्होंने दैनिक सुरक्षित रसायन रिसाव के छिटपुट रूप में लिया। पर देखते ही देखते इस रासायनिक रिसाव ने विकराल रूप ले लिया। कुछ ही देर में मिथायल आइसो सायनाइड के घातक वाष्पों ने भोपाल शहर के वायुमंडल में प्रवेश ले लिया। आपातकालीन समय की गंभीरता ने कर्मचारियों को मजबूर किया कि शीघ्र ही आपातकालीन सुरक्षा प्राणाली का उपयोग कर समस्या का निदान किया जाए।

रिसाव रोकने के प्रयास
  1. सबसे पहले वहाँ कार्यरत कर्मचारियों ने रासायनिक वेंट स्क्रबर का इस्तेमाल किया, जिसका काम असुरक्षित गैस को क्षारीय जल में घोलकर वायुमंडल में जाने से रोकना है; पर मिथायल आइसो सायनाइड के अनियंत्रित गैस रिसाव के विशाल बादल इससे अप्रभावित रहे।
  2. यूनियन कार्बाइड ने ऐसी व्यवस्था की थी कि यदि किसी कारणवश वेंट स्क्रबर असफल होता है तो तत्पश्चात् ‘प्रज्ज्वलन कालम’ में प्रवेश कर रही इस भयानक गैस को ईधन के रूप में जलाकर वायुमंडल में जाने से रोका जा सके। पर यह प्रयास भी विफल रहा।[2]
  3. तीसरा तथा अंतिम प्रयास जल अग्निशमन के सिमित लघु संसाधनों के जल छिड़काव के रूप में रहा और यह प्रयास भी विफल रहा।

मृतक आँकड़ा

[[चित्र:Union-Carbide-Pesticide-Factory-Bhopal.jpg|thumb|left|250px|यूनियन कार्बाइड कम्पनी, भोपाल]] देखते ही देखते मिथायल आइसो सायनाइड के घातक वाष्पों ने रियायशी क्षेत्रों में अपना प्रकोप दिखाना शुरू कर दिया। लोगों के फेफड़ों, आँतों, आँखों में यह जहरीला रसायन समा गया। मासूम बच्चे, बूढ़े, जवान सभी उल्टी, आँखों में जलन, सांस लेने में दिक्कत की घातक समस्या से जूझने लगे। निर्दोष जनता ने अकारण तड़प-तड़प कर प्राण त्यागना शुरू कर दिया। उपचार करने वाले चिकित्सक को कभी अमोनिया गैस, कभी फोस्जिन गैस के रिसाव की ग़लत और अति क्रूर सुचना दी गई, जिसने उपचाराधीन लोगों और चिकित्सक दोनों को गुमराह किया।

'यूनियन कार्बाइड कम्पनी' के कारख़ाने से रिसी गैस की वजह से मारे गए लोगों की ठीक-ठीक संख्या आज भी विभिन्न स्रोतों के अनुसार भिन्न-भिन्न बताई जाती है। बस, इतना ही मालूम है कि जिस रात दुर्घटना घटी, तीन हज़ार व्यक्ति उसी रात मर गए और इस घटना के बाद गुज़रे तीन हफ़्तों में और 07 से 10 हज़ार व्यक्तियों की मृत्यु हो गई। दुर्घटना के बाद मरे कुल मृतकों की संख्या कम से कम 18 हज़ार बताई जाती है। कुछ अन्य स्रोतों के अनुसार, दुर्घटना के बाद कम से कम तीस हज़ार व्यक्ति मौत की गोद में चले गए। इसके अलावा लाख़ों लोग इस दुर्घटना से बुरी तरह प्रभावित हुए। वे न सिर्फ़ ज़हरीली गैस से ही पीड़ित हुए, बल्कि उन्हें कारख़ाने के पास बसे इलाकों में अपने घरबार छोड़ने पड़े। बहुत-से लोग स्थाई तौर पर बीमारियों से ग्रस्त हो गए। इसके अलावा इस विषय में तो कोई अध्ययन ही नहीं किया गया है कि आने वाली पीढ़ियों पर इस दुर्घटना का क्या अनुवांशिक असर पड़ रहा है। लेकिन दुर्घटना के बाद भोपाल के इलाके में मानसिक तौर पर और शारीरिक तौर पर विकलांग पैदा होने वाले बच्चों की संख्या में भारी वृद्धि हो गई। रेडियो स्पूतनिक के विशेषज्ञ बरीस वलख़ोन्स्की के अनुसार- "पिछली सदी के नौवें दशक के अन्त में यूनियन कारबाइड ने अदालत के बाहर समझौता करके इस दुर्घटना के पीड़ितों को 47 करोड़ डॉलर का मुआवजा दिया, जो उसके विरुद्ध किए गए दावों का सिर्फ़ 14 प्रतिशत रक़म के बराबर है। हर पीड़ित व्यक्ति में इस धनराशि को बराबर-बराबर बाँटा जाए तो एक व्यक्ति को एक हज़ार से भी कम डॉलर मिलते हैं। यह मुआवजा बेहद कम है। उस दुर्घटना के कुपरिणामों को आज तक दूर नहीं किया गया है और उनका आज तक स्थानीय जनता के स्वास्थ्य और जीवन पर नकारात्मक असर पड़ रहा है।"[1]

दुर्घटना के कारक

thumb|250px|कम्पनी स्थित टैंक नं. 610 दूसरी ओर राजनीतिक गलियारों में हलचल चालु हो गई, जो बस दिखावे मात्र की थी। वारेन एंडरसन को भारत आते ही गिरफ्तार कर लिया गया और अपने ही गेस्ट हाउस में उसे किसी शाही मेहमान की तरह रखा गया। कुछ ही दिनों में जमानत लेकर वह अपने स्वदेश लौट गया। यहाँ यह जानना हर भारतीय के लिए आवश्यक हो जाता है कि आखिर इस दुर्घटना ने इतना विकराल रूप कैसे ले लिया। एक विदेशी संस्था ने लाख प्रतिबन्ध के बाद भी गुप्त रूप से जो जांच की, उसमे निम्नलिखित कारक सामने आये-

  1. 'मिथायल आइसो सायनाइड' का भण्डारण तरल रूप में प्रशीतन (ठन्डे) माध्यम में किया जाता है, पर आर्थिक नुकसान के चलते इसे अनदेखा कर दिया गया था।
  2. क्षमता से अधिक 'मिथायल आइसो सायनाइड' का भण्डारण। जिस समय दुर्घटना हुई, तब कम्पनी के पास 42 टन मिथायल आइसो सायनाइड का भंडार था, जबकि सुरक्षा मानकों के अनुसार 30 टन मिथायल आइसो सायनाइड का भण्डारण ही होना चाहिय था।
  3. मिथायल आइसो सायनाइड की प्रकति के अनुसार यदि इसमें कोई अशुद्धता मिश्रित हो जाए तो यह खतरनाक एक्ज़ोथिर्मिक प्रतिक्रिया का रूप ले लेता है। यही हुआ भी, क्योंकि आर्थिक बजट के नियंत्रण के चलते प्रबंधन ने मेंटेनैंस सुपरवाईजर को निकाल दिया था और एक ही उपकरण कई प्रक्रियाओं में इस्तेमाल होने लगा, जिसने किसी तरह पानी और आयरन जंग को मिथायल आइसो सायनाइड टैंक के भीतर पहुंचा दिया।[2]
  4. उपकरण नियंत्रक नाइट्रोजन वाल्व का ख़राब होना।
  5. रासायनिक वेंट स्क्रबर, प्रज्ज्वलन कालम, जल अग्निशमन यंत्रों की क्षमता का कमजोर और ख़राब होना।

डॉक्टर डेथ

यूं तो सरकारी आंकड़ा साढ़े तीन हज़ार लाशों तक पहुंचा, लेकिन गैरसरकारी आंकड़ा कहता है कि मरने वाले दस हज़ार से ज्यादा थे। जहर के असर से लोग आज तक मर रहे हैं और आगे भी मरेंगे, लेकिन यूनियन कार्बाइड का शैतान टैंक नंबर 610 आज भी वहीं खड़ा है। इस टैंक का ढक्कन 'बी.एच.ई.एल.' (BHEL) के इंजीनियरों ने बंद तो कर दिया, लेकिन मिथायल आईसो सायनाइड का शैतान अब भी आज़ाद है और भोपाल की रगों में दौड़ रहा है। कहते हैं इसने अब तक 40 हज़ार जानें ली हैं। आगे और कितनी जानें लेगा कोई नहीं जानता। जो बेमौत मारे गए, जिनके अपने उनसे जुदा हो गए, उन्हें आखिरी इंसाफ कभी मिलेगा भी या नहीं, कोई नहीं जानता। लेकिन तारीख के काले पन्नों में भोपाल की वह जहरीली रात हमेशा के लिए दर्ज रहेगी। 4000 से अधिक लाशें शहर की सरजमीं पर बिछी थीं। उन खौफनाक पलों के सबसे बड़े गवाह हैं- डॉक्टर डेथ। भोपाल के लोग उनको इसी नाम से जानते हैं।[3]

डॉक्टर डेथ के लिए भी उन दर्द के लम्हों को दोबारा जीना आसान नहीं कि कैसे पहले मानवता पर गैस का कहर पर टूटा था। उस रोज एक ही दिन में उन्होंने 780 लाशों का पोस्टमॉर्टम किया। एक हफ्ते में 3 हज़ार लाशों के साथ चीरफाड़ करने के बाद मौत उनकी आँखों के सामने नाचती थी। विभाग में तीन-चार लोग थे। सरकार से परमीशन ली कि सबका पोस्टमॉर्टम नहीं करेंगे। वे ही ऐसे शख्स हैं, जिन्होंने पहली बार दुनिया को यूनियन कार्बाइड के किलर टैंक नंबर 610 का सच बताया था; क्योंकि किलर टैंक नंबर 610 से निकली गैस का विश्लेषण किया गया तो उसमें से वे पदार्थ मिले जो लाशों पर भी पाये गये थे। मतलब गैस कहीं और से नहीं, उसी टैंक से आई थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 भोपाल गैस त्रासदी की तीसवीं वर्षी (हिन्दी) रेडियो स्पूतनिक। अभिगमन तिथि: 28 जनवरी, 2016।
  2. 2.0 2.1 2.2 भोपाल गैस त्रासदी-शर्मनाक राष्ट्रीय दुर्घटना (हिन्दी) जागरण जंक्शन। अभिगमन तिथि: 28 जनवरी, 2016।
  3. जब हिल उठा देशः भोपाल गैस कांड (हिन्दी) आईबीएन भास्कर। अभिगमन तिथि: 28 जनवरी, 2016।

बाहरी कड़ियाँ

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