भारतीय महाकाव्य -नगेन्द्र: Difference between revisions
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राष्ट्रीय एकता का केवल भारत के लिए ही नहीं वरन् प्रत्येक देश के लिए अनिवार्य महत्व है। राष्ट्रीयता एकता की आधारशिला है सांस्कृतिक एकता और सांस्कृतिक एकता का सबसे प्रबल माध्यम है साहित्य की एकता। साहित्य की परिधि के अंतर्गत भी विशेष महत्त्व है महाकाव्यों का जिनके वृहत् कलेवर में राष्ट्रीय एकता को प्रभावी रीति से प्रतिफलित करने का पूर्ण अवसर रहता है। | राष्ट्रीय एकता का केवल भारत के लिए ही नहीं वरन् प्रत्येक देश के लिए अनिवार्य महत्व है। राष्ट्रीयता एकता की आधारशिला है सांस्कृतिक एकता और सांस्कृतिक एकता का सबसे प्रबल माध्यम है साहित्य की एकता। साहित्य की परिधि के अंतर्गत भी विशेष महत्त्व है महाकाव्यों का जिनके वृहत् कलेवर में राष्ट्रीय एकता को प्रभावी रीति से प्रतिफलित करने का पूर्ण अवसर रहता है। |
Latest revision as of 06:23, 17 May 2016
भारतीय महाकाव्य -नगेन्द्र
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लेखक | डॉ. नगेन्द्र |
मूल शीर्षक | भारतीय महाकाव्य |
प्रकाशक | प्रभात प्रकाशन |
प्रकाशन तिथि | 1992 |
ISBN | 00000 |
देश | भारत |
पृष्ठ: | 417 |
भाषा | हिंदी |
मुखपृष्ठ रचना | सजिल्द |
राष्ट्रीय एकता प्रत्येक देश के लिए महत्वपूर्ण है। राष्ट्रीय एकता की आधारशिला है सांस्कृतिक एकता और सांस्कृतिक एकता का सबसे प्रबल माध्यम साहित्य की परिधि के अन्तर्गत महाकाव्यों का विशेष महत्व है, जिनके वृहत कलेवर में राष्ट्रीय एकता को प्रभावी रीति से प्रतिफल करने का पूर्ण अवसर रहता है।
भूमिका
भारतीय महाकाव्य का आयोजन इसी से प्रेरित होकर किया गया है। इसमें तीन प्राचीन भाषाओं- संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और अंग्रेजी को मिलाकर तेरह आधुनिक भाषाओं के 26 प्रमुख महाकाव्यों का विवेचनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। काव्य-वस्तु की दृष्टि से महाकाव्य पाँच प्रकार के है-
- रामायण महाकाव्य
- भारत महाकाव्य
- चरितकाव्य
- रम्याख्यान और
- दार्शनिक या प्रतीकात्मक महाकाव्य।
यह कार्य विभिन्न भाषाओं के अधिकारी विद्वानों द्वारा संपन्न हुआ है।
राष्ट्रीय एकता का केवल भारत के लिए ही नहीं वरन् प्रत्येक देश के लिए अनिवार्य महत्व है। राष्ट्रीयता एकता की आधारशिला है सांस्कृतिक एकता और सांस्कृतिक एकता का सबसे प्रबल माध्यम है साहित्य की एकता। साहित्य की परिधि के अंतर्गत भी विशेष महत्त्व है महाकाव्यों का जिनके वृहत् कलेवर में राष्ट्रीय एकता को प्रभावी रीति से प्रतिफलित करने का पूर्ण अवसर रहता है।
लेखक का निवेदन
‘भारतीय महाकाव्य’ का आयोजन इसी विचार से प्रेरित होकर किया गया है। इसमें तीन प्राचीन भाषाओं-सांस्कृत प्राकृत, अपभ्रंश-और अंग्रेजी को मिलाकर तेरह आधुनिक भाषाओं के 26 प्रमुख महाकाव्यों का विवेचनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। काव्यवस्तु की दृष्टि से ये महाकाव्य, रम्याख्यान और दार्शनिक या प्रतीकात्मक महाकाव्य। यह कार्य विभिन्न भाषाओं के अधिकारी विद्वानों द्वारा संपन्न हुआ है। ग्रंथ के आरंभ में संपादक की विस्तृत भूमिका है जिसमें विवेच्य महाकाव्यों में अंतर्व्याप्त भारतीय एकता के मौलिक सूत्रों का संधान एवं समन्वय किया गया है।
भारतीय साहित्य की मूलभूत एकता में हमारी दृढ़ आस्था है। इसके आधार पर हम ‘भारतीय साहित्य कोश’ ‘भारतीय साहित्य’, ‘भारतीय साहित्य का समेकित इतिहास’ , भारतीय समीक्षा’ आदि कई ग्रंथों का संपादन कर चुके हैं। ‘भारतीय महाकाव्य’ इसी श्रृंखला की एक कड़ी है। इस ग्रंथ के लेखन में हमें विश्वविद्यालय अनुदान से आर्थिक सहायता प्राप्त हुई है। अतः उसके अधिकारियों के प्रति आभार व्यक्त करना हमारा कर्त्तव्य है।भारत की संस्कृति, आरम्भ से ही, सामासिक रही है। उत्तर-दक्षिण पूर्व पश्चिम देश में जहां भी जो हिन्दू बसते है। उनकी संस्कृति एक है एवं भारत की प्रत्येक क्षेत्रीय विशेषता हमारी इसी सामासिक संस्कृति की विशेषता है। तब हिन्दू एवं मुसलमान हैं, जो देखने में अब भी दो लगते हैं। किन्तु उनके बीच भी सांस्कृतिक एकता विद्यमान है जो उनकी भिन्नता को कम करती है। दुर्भाग्य की बात है कि हम इस एकता को पूर्ण रूप से समझने में समर्थ रहे है। यह कार्य राजनीति नहीं, शिक्षा और साहित्य के द्वारा सम्पन्न किया जाना चाहिए। इस दिशा में साहित्य के भीतर कितने ही छोटे-बड़े प्रयत्न हो चुके है। वर्तमान पुस्तक भी उसी दिशा में एक विनम्र प्रयास है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ नगेन्द्र, डॉ.। भारतीय महाकाव्य (हिंदी) भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 15 मई, 2016।
बाहरी कड़ियाँ
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