छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-5 खण्ड-2: Difference between revisions

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यह ज्ञान [[जाबाल|सत्यकाम जाबाल]] ने अपने शिष्य व्याघ्नपद के पुत्र गोश्रुति नामक व्याघ्नपद को सुनाया था। तदुपरान्त यदि कोई महत्त्व प्राप्त करने का अभिलाषी हो, तो उसे [[अमावस्या]] की दीक्षा प्राप्त करके [[पूर्णिमा]] की रात्रि को सभी औषधियों, [[दही]] और [[शहद]] सम्बन्धी 'मन्थ' (मथकर तैयार किया हुआ हव्य) का मन्थन करके जेष्ठाय श्रेष्ठाय स्वाहा के [[मन्त्र]] द्वारा [[अग्नि]] में [[घृत]] की आहुति देकर 'मन्थ' में उसका अवशेष डालना चाहिए।
यह ज्ञान [[जाबाल|सत्यकाम जाबाल]] ने अपने शिष्य व्याघ्नपद के पुत्र गोश्रुति नामक व्याघ्नपद को सुनाया था। तदुपरान्त यदि कोई महत्त्व प्राप्त करने का अभिलाषी हो, तो उसे [[अमावस्या]] की दीक्षा प्राप्त करके [[पूर्णिमा]] की रात्रि को सभी औषधियों, [[दही]] और [[शहद]] सम्बन्धी 'मन्थ' (मथकर तैयार किया हुआ हव्य) का मन्थन करके जेष्ठाय श्रेष्ठाय स्वाहा के [[मन्त्र]] द्वारा [[अग्नि]] में [[घृत]] की आहुति देकर 'मन्थ' में उसका अवशेष डालना चाहिए।


इसी प्रकार वसिष्ठाय स्वाहा, प्रतिष्ठायै स्वाहा, सम्पदे स्वाहा और आयतनाम स्वाहा मन्त्रों से अग्नि में घी की आहुति देकर शेष घी को 'मन्थ' में छोड़े। तत्पश्चात अग्नि से कुछ दूर हटकर अंजलि में 'मन्थ' को लेकर 'अमो नामसि' (हे मन्थ! तू अम, अर्थात प्राण है, सम्पूर्ण जगत तेरे साथ है, तू ही ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, प्रकाशमान और सबका अधिपति है।) मन्त्र पढ़कर आचमन करें। उसके बाद भोजन की प्रार्थना करें।
इसी प्रकार वसिष्ठाय स्वाहा, प्रतिष्ठायै स्वाहा, सम्पदे स्वाहा और आयतनाम स्वाहा मन्त्रों से अग्नि में घी की आहुति देकर शेष घी को 'मन्थ' में छोड़े। तत्पश्चात् अग्नि से कुछ दूर हटकर अंजलि में 'मन्थ' को लेकर 'अमो नामसि' (हे मन्थ! तू अम, अर्थात प्राण है, सम्पूर्ण जगत तेरे साथ है, तू ही ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, प्रकाशमान और सबका अधिपति है।) मन्त्र पढ़कर आचमन करें। उसके बाद भोजन की प्रार्थना करें।


फिर 'तत्त्सवितुर्वृणीमहे, वयं देवस्य भोजनम्, श्रेष्ठं सर्वधातमम् और तुंरभगस्य धीमहि' मन्त्रों को कहते हुए मन्थ का एक-एक ग्रास भक्षण करे और अन्त में बरतन को धोकर सम्पूर्ण 'मन्थ' को पी जाये।
फिर 'तत्त्सवितुर्वृणीमहे, वयं देवस्य भोजनम्, श्रेष्ठं सर्वधातमम् और तुंरभगस्य धीमहि' मन्त्रों को कहते हुए मन्थ का एक-एक ग्रास भक्षण करे और अन्त में बरतन को धोकर सम्पूर्ण 'मन्थ' को पी जाये।

Revision as of 07:50, 23 June 2017

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-5 खण्ड-2
विवरण 'छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार छन्द है।
अध्याय पाँचवाँ
कुल खण्ड 24 (चौबीस)
सम्बंधित वेद सामवेद
संबंधित लेख उपनिषद, वेद, वेदांग, वैदिक काल, संस्कृत साहित्य
अन्य जानकारी सामवेद की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं।

छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय पांचवें का यह दूसरा खण्ड है।

महानता के लिए 'मन्थ' अनुष्ठान

इस खण्ड में 'मन्थ' अनुष्ठान का वर्णन है। प्राण ने अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के उपरान्त पूछा- 'मेरा भोजन क्या होगा?' अन्य इन्द्रियों ने उत्तर दिया- 'अन्न' तुम्हारा भोजन होगा।'

प्राण ने फिर पूछा- 'मेरा वस्त्र क्या होगा?' इन्द्रियों ने उत्तर दिया- 'जल तुम्हारा वस्त्र होगा।'

यह ज्ञान सत्यकाम जाबाल ने अपने शिष्य व्याघ्नपद के पुत्र गोश्रुति नामक व्याघ्नपद को सुनाया था। तदुपरान्त यदि कोई महत्त्व प्राप्त करने का अभिलाषी हो, तो उसे अमावस्या की दीक्षा प्राप्त करके पूर्णिमा की रात्रि को सभी औषधियों, दही और शहद सम्बन्धी 'मन्थ' (मथकर तैयार किया हुआ हव्य) का मन्थन करके जेष्ठाय श्रेष्ठाय स्वाहा के मन्त्र द्वारा अग्नि में घृत की आहुति देकर 'मन्थ' में उसका अवशेष डालना चाहिए।

इसी प्रकार वसिष्ठाय स्वाहा, प्रतिष्ठायै स्वाहा, सम्पदे स्वाहा और आयतनाम स्वाहा मन्त्रों से अग्नि में घी की आहुति देकर शेष घी को 'मन्थ' में छोड़े। तत्पश्चात् अग्नि से कुछ दूर हटकर अंजलि में 'मन्थ' को लेकर 'अमो नामसि' (हे मन्थ! तू अम, अर्थात प्राण है, सम्पूर्ण जगत तेरे साथ है, तू ही ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, प्रकाशमान और सबका अधिपति है।) मन्त्र पढ़कर आचमन करें। उसके बाद भोजन की प्रार्थना करें।

फिर 'तत्त्सवितुर्वृणीमहे, वयं देवस्य भोजनम्, श्रेष्ठं सर्वधातमम् और तुंरभगस्य धीमहि' मन्त्रों को कहते हुए मन्थ का एक-एक ग्रास भक्षण करे और अन्त में बरतन को धोकर सम्पूर्ण 'मन्थ' को पी जाये।

इसके बाद अग्नि के उत्तर में पवित्र मृगचर्म बिछाकर शयन करे। यदि उस रात स्वप्न में किसी स्त्री का दर्शन हो, तो समझे कि अनुष्ठान पूरा और सफल हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-8

खण्ड-1 से 6 | खण्ड-7 से 15