कनेर: Difference between revisions
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Revision as of 13:30, 14 September 2010
thumb|250px|कनेर का फूल
Nerium Oleander
कनेर एक फूल है। कनेर उत्तर भारत मे लगभग हर जगह बागों मे लगा हुआ पाया जाता है। इसका हर भाग विषैला होता है अत: इसे किसी वैद्य की देखरेख मे ही प्रयोग करना चाहिए। आधुनिक द्रव्यगुण मे इस को हृदय वर्ग मे रखा गया है। कनेर के फूल पीला, सफेद, लाल आदि रंग के होते है।
पीली कनेर
पीली कनेर का दूध शरीर की जलन को नष्ट करने वाला, और विषैला होता है। इसकी छाल कड़वी भेदन व बुखार नाशक होती है। छाल की क्रिया बहुत ही तेज होती है, इसलिए इसे कम मात्रा में सेवन करते हैं। नहीं तो पानी जैसे पतले दस्त होने लगते हैं। कनेर का मुख्य विषैला परिणाम हृदय की मांसपेशियों पर होता है। इसे अधिकतर औषधि के लिये उपयोग में लाया जाता है।
सफेद और लाल कनेर
सफेद और लाल दोनों कनेरों की जड़ में नेरिओडोरीना नामक ऐसे दो तरह के पदार्थ होते हैं, जो हृदय के लिए बहुत परेशानीयुक्त होते हैं। वे उसकी गति को रोक देते हैं या कम कर देते हैं। इसके अलावा इसमें ग्लुकोसाइड रोजोगिनिन एक सुगन्धित उड़नशील तेल और डिजिटैलिस के समान एक नेरिन नामक रवेदार पदार्थ टैनिक एसिड और मोम होता है। इसमें नेरिन हृदयोत्तेजक होता है। अगर कनेर में यह तत्व ना होता तो वह उसावर्ष न होकर सद्यमारक उग्र विष हो जाता है।[1]
- हृदय रोगो मे जब कोई और उपाय नही होता है तो इसका प्रयोग किया जाता है, इसके मात्रा 125 मि. ग्रा से ज्यादा नही होनी चाहिये
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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