विक्रमशिला विश्‍वविद्यालय: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
Line 14: Line 14:
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
{{cite web|url=http://www.asi.nic.in/asi_museums_vikramshila_hn.asp|title=संग्रहालय-विक्रमशिला |accessmonthday=[[14 अगस्त]]|accessyear=[[2010]]|last=|first=|authorlink=|format=एच टी एम एल|publisher=|language=हिंदी}}
*[http://www.asi.nic.in/asi_museums_vikramshila_hn.asp संग्रहालय-विक्रमशिला]  
{{cite web|url=http://www.bharat-swabhiman.com/forum/viewtopic.php?f=5&t=1124|title=भारत के प्राचीन शिक्षा केन्द्र|accessmonthday=[[14 अगस्त]]|accessyear=[[2010]]|last=|first=|authorlink=|format=एच टी एम एल|publisher=|language=हिंदी}}
*[http://www.bharat-swabhiman.com/forum/viewtopic.php?f=5&t=1124 भारत के प्राचीन शिक्षा केन्द्र]
{{cite web |url=http://www.kaverinews.com/article.php?id=371|accessmonthday=[[14 अगस्त]]|accessyear=[[2010]] |last=|first= |authorlink=|title= बिहार : प्रमुख ऎतिहासिक स्थल|format=एच टी एम एल |publisher=kaverinews.com|language=हिंदी}}
*[http://www.kaverinews.com/article.php?id=371 बिहार : प्रमुख ऎतिहासिक स्थल]
{{cite web |url=http://dishacomputer.com/|accessmonthday=[[14 अगस्त]]|accessyear=[[2010]] |last=|first= |authorlink=|title=बिहार|format=एच टी एम एल |publisher=kaverinews.com|language=हिंदी}}
*[http://dishacomputer.com/ बिहार]


{{लेख प्रगति
{{लेख प्रगति

Revision as of 13:29, 29 August 2010

विक्रमशिला विश्‍वविद्यालय नालन्‍दा के समकक्ष माना जाता था। इसका निर्माण पाल वंश के शासक धर्मपाल (770-810 ईसा पूर्व) ने करवाया था। धर्मपाल ने यहां की दो चीजों से प्रभावित होकर इसका निर्माण कराया था।[1]

  1. यह एक लोकप्रिय तांत्रिक केंद्र था जो कोसी और गंगा नदी से घिरा हुआ था। यहां मां काली और भगवान शिव का मंदिर भी स्थित है।
  2. यह स्‍थान उत्‍तरवाहिनी गंगा के समीप होने के कारण भी श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बना रहता है। एक शब्‍द में कहा जाए तो यह एक प्रसिद्ध तीर्थस्‍थान था।[2]

विषय

इतिहासकार पंचानन मिश्र का कहना है कि नालन्दा विश्‍वविद्यालय में एक द्वार का पता चला है जबकि विक्रमशिला में छह द्वार थे। द्वार की संख्या छह होने का तात्पर्य है कि यहां पर छह विषयों की पढ़ाई होती थी जिनमें केवल तंत्र विद्या ही नहीं बल्कि फीजिक्स, केमिस्ट्री, क्रिएटिव रिलीजन, कल्चर आदि शामिल थे। विक्रमशिला विश्वविद्यालय में लगभग दस हजार विद्यार्थियों की पढ़ाई होती थी और उनके लिए क़रीब एक सौ आचार्य पढ़ाने का काम करते थे। गौतम बुद्ध स्वयं यहा आए थे और यही से गंगा नदी पार कर सहरसा की ओर गए थे।

बौद्ध धर्म का प्रचार

दसवीं शताब्दी ई. में तिब्बती लेखक तारानाथ के वर्णन के अनुसार प्रत्येक द्वार के पण्डित थे। पूर्वी द्वार के द्वार पण्डित रत्नाकर शान्ति, पश्चिमी द्वार के वर्गाश्वर कीर्ति, उत्तरी द्वार के नारोपन्त, दक्षिणी द्वार के प्रज्ञाकरमित्रा थे। आचार्य दीपक विक्रमशील विश्वविद्यालय के सर्वाधिक प्रसिद्ध आचार्य हुये हैं। विश्वविद्यालयों के छात्रों की संख्या का सही अनुमान प्राप्त नहीं हो पाया है। 12वीं शताब्दी में यहां 3000 छात्रों के होने का विवरण प्राप्त होता है। लेकिन यहां के सभागार के जो खण्डहर मिले हैं उनसे पता चलता है कि सभागार में 8000 व्यक्तियों को बिठाने की व्यवस्था थी। विदेशी छात्रों में तिब्वती छात्रों की संख्या अधिक थी। एक छात्रावास तो केवल तिब्बती छात्रों के लिए ही था।

यहां से तिब्बत के राजा के अनुरोध पर दिपांकर अतीश तिब्बत गए और उन्होंने तिब्बत से बौद्ध भिक्षुओं को चीन, जापान, मलेशिया, थाइलैंड से लेकर अफ़ग़ानिस्तान तक भेजकर बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया। विक्रमशिला विश्वविद्यालय में विद्याध्ययन के लिए आने वाले तिब्बत के विद्वानों के लिए अलग से एक अतिथिशाला थी। विक्रमशिला से अनेक विद्वान तिब्बत गए थे तथा वहाँ उन्होंने कई ग्रन्थों का तिब्बती भाषा में अनुवाद किया। विक्रमशिला के बारे में सबसे पहले राहुल सांस्कृत्यायन ने सुल्तानगंज के क़रीब होने का अंदेशा प्रकट किया था। उसका मुख्य कारण था कि अंग्रेजों के जमाने में सुल्तानगंज के निकट एक गांव में बुद्ध की प्रतिमा मिली थी। बावजूद उसके अंग्रेजों ने विक्रमशिला के बारे में पता लगाने का प्रयास नहीं किया। इसके चलते विक्रमशिला की खुदाई पुरातत्व विभाग द्वारा 1986 के आसपास शुरू हुआ।[3] इस विश्वविद्यालय के अनेकानेक विद्वानों ने विभिन्न ग्रंथों की रचना की, जिनका बौद्ध साहित्य और इतिहास में नाम है। इन विद्वानों में कुछ प्रसिद्ध नाम हैं- रक्षित, विरोचन, ज्ञानपाद, बुद्ध, जेतारि रत्नाकर शान्ति, ज्ञानश्री मिश्र, रत्नवज्र और अभयंकर। दीपंकर नामक विद्वान ने लगभग २०० ग्रंथों की रचना की थी। वह इस शिक्षाकेन्द्र के महान प्रतिभाशाली विद्वानों में से एक थे।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बिहार : प्रमुख ऎतिहासिक स्थल (हिंदी) (एच टी एम एल) kaverinews.com। अभिगमन तिथि: 14 अगस्त, 2010
  2. भागलपुर:एक परिचय (हिंदी) (एच टी एम एल) kaverinews.com। अभिगमन तिथि: 14 अगस्त, 2010
  3. विक्रमशिला विश्वविद्यालय को लेकर सरकार गंभीर पहल नहीं कर रही (हिंदी) (एच टी एम एल) bhagalpurmycity.blogspot.com। अभिगमन तिथि: 14 अगस्त, 2010

बाहरी कड़ियाँ


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ