पहेली 11 अगस्त 2017: Difference between revisions

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-[[राहुल सांकृत्यायन]]
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-[[बनारसीदास चतुर्वेदी]]
-[[बनारसीदास चतुर्वेदी]]
||[[चित्र:Premchand.jpg|100px|right|border|प्रेमचंद]]'प्रेमचंद' "भारत के उपन्यास सम्राट" माने जाते हैं, जिनके युग का विस्तार सन् [[1880]] से [[1936]] तक है। यह कालखण्ड [[भारत]] के [[इतिहास]] में बहुत महत्त्व का है। सन् [[1931]] के आरम्भ में [[प्रेमचंद]] का [[ग़बन -प्रेमचंद|ग़बन]] प्रकाशित हुआ था। [[16 अप्रॅल]], [[1931]] को उन्होंने अपनी एक और महान रचना '[[कर्मभूमि]]' शुरू की। यह [[अगस्त]], [[1932]] में प्रकाशित हुई। प्रेमचंद के पत्रों के अनुसार सन् 1932 में ही वह अपना अन्तिम महान उपन्यास '[[गोदान]]' लिखने में लग गये थे, यद्यपि ‘हंस’ और ‘जागरण’ से सम्बंधित अनेक कठिनाइयों के कारण इसका प्रकाशन [[जून]], [[1936]] में ही सम्भव हो सका। अपनी अन्तिम बीमारी के दिनों में उन्होंने एक और उपन्यास, ‘मंगलसूत्र’, लिखना शुरू किया था, किन्तु अकाल मृत्यु के कारण यह अपूर्ण रह गया। ‘[[ग़बन -प्रेमचंद|ग़बन]]’, ‘[[कर्मभूमि -प्रेमचंद|कर्मभूमि]]’ और ‘[[गोदान उपन्यास|गोदान]]’ उपन्यास पर विश्व के किसी भी कृतिकार को गर्व हो सकता है। ‘कर्मभूमि’ अपनी क्रांतिकारी चेतना के कारण विशेष महत्त्वपूर्ण है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[प्रेमचंद]]
||[[चित्र:Premchand.jpg|100px|right|border|प्रेमचंद]]'प्रेमचंद' "भारत के उपन्यास सम्राट" माने जाते हैं, जिनके युग का विस्तार सन् [[1880]] से [[1936]] तक है। यह कालखण्ड [[भारत]] के [[इतिहास]] में बहुत महत्त्व का है। सन् [[1931]] के आरम्भ में [[प्रेमचंद]] का [[ग़बन -प्रेमचंद|ग़बन]] प्रकाशित हुआ था। [[16 अप्रॅल]], [[1931]] को उन्होंने अपनी एक और महान् रचना '[[कर्मभूमि]]' शुरू की। यह [[अगस्त]], [[1932]] में प्रकाशित हुई। प्रेमचंद के पत्रों के अनुसार सन् 1932 में ही वह अपना अन्तिम महान् उपन्यास '[[गोदान]]' लिखने में लग गये थे, यद्यपि ‘हंस’ और ‘जागरण’ से सम्बंधित अनेक कठिनाइयों के कारण इसका प्रकाशन [[जून]], [[1936]] में ही सम्भव हो सका। अपनी अन्तिम बीमारी के दिनों में उन्होंने एक और उपन्यास, ‘मंगलसूत्र’, लिखना शुरू किया था, किन्तु अकाल मृत्यु के कारण यह अपूर्ण रह गया। ‘[[ग़बन -प्रेमचंद|ग़बन]]’, ‘[[कर्मभूमि -प्रेमचंद|कर्मभूमि]]’ और ‘[[गोदान उपन्यास|गोदान]]’ उपन्यास पर विश्व के किसी भी कृतिकार को गर्व हो सकता है। ‘कर्मभूमि’ अपनी क्रांतिकारी चेतना के कारण विशेष महत्त्वपूर्ण है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[प्रेमचंद]]
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