प्रयोग:दीपिका3: Difference between revisions
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-[[प्रधानमंत्री]] | -[[प्रधानमंत्री]] | ||
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||कोई विधेयक वित्त विधेयक है अथवा नहीं, इसके लिए निर्णय की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 117 में वित्त विधेयक के संबंध में विशेष उपबंध का उल्लेख है। सामान्य रूप से कोई ऐसा विधेयक वित्त विधेयक होता है जो राजस्व व्यय से संबंधित हो। वित्त विधेयकों में किसी धन विधेयक के लिए [[संविधान]] में उल्लिखित किसी मामले का उपबंध करने के अतिरिक्त, अन्य मामलों का भी उपबंध किया जाता है। वित्त विधेयकों को निम्नलिखित दो श्रेणियों में रखा जा सकता है- श्रेणी (क) ऐसे विधेयक जिसमें धन विधेयक के लिए अनुच्छेद 110 में उल्लिखित किसी भी मामले के लिए उपबंध किए जाते है परंतु केवल उन्हीं मामलों के लिए ही उपबंध नहीं किए जाते, उदाहरणार्थ कोई विधेयक जिसमें करारोपण का खंड होता है परंतु वह केवल करारोपण के संबंध में नहीं होता। श्रेणी (ख) ऐसे विधेयक जिसमें संचित निधि से व्यय संबंधी उपबंध हों, जबकि कोई विधेयक 'धन विधेयक' है या नहीं इसका विनिश्चय संविधान के अनुच्छेद 110 (3) के अनुसार | ||कोई विधेयक वित्त विधेयक है अथवा नहीं, इसके लिए निर्णय की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 117 में वित्त विधेयक के संबंध में विशेष उपबंध का उल्लेख है। सामान्य रूप से कोई ऐसा विधेयक वित्त विधेयक होता है जो राजस्व व्यय से संबंधित हो। वित्त विधेयकों में किसी धन विधेयक के लिए [[संविधान]] में उल्लिखित किसी मामले का उपबंध करने के अतिरिक्त, अन्य मामलों का भी उपबंध किया जाता है। वित्त विधेयकों को निम्नलिखित दो श्रेणियों में रखा जा सकता है- श्रेणी (क) ऐसे विधेयक जिसमें धन विधेयक के लिए अनुच्छेद 110 में उल्लिखित किसी भी मामले के लिए उपबंध किए जाते है परंतु केवल उन्हीं मामलों के लिए ही उपबंध नहीं किए जाते, उदाहरणार्थ कोई विधेयक जिसमें करारोपण का खंड होता है परंतु वह केवल करारोपण के संबंध में नहीं होता। श्रेणी (ख) ऐसे विधेयक जिसमें संचित निधि से व्यय संबंधी उपबंध हों, जबकि कोई विधेयक 'धन विधेयक' है या नहीं इसका विनिश्चय संविधान के अनुच्छेद 110 (3) के अनुसार [[लोक सभा अध्यक्ष]] द्वारा किया जाता है और उसका विनिश्चय अंतिम होता है। | ||
{किन दो भाषाओं का उपयोग [[भारत]] के किसी भी हिस्से में भाषाओं के रूप में नहीं होता? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-157,प्रश्न-118 | {किन दो भाषाओं का उपयोग [[भारत]] के किसी भी हिस्से में भाषाओं के रूप में नहीं होता? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-157,प्रश्न-118 | ||
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+[[ब्रिटेन]] से | +[[ब्रिटेन]] से | ||
-[[भारत]] से | -[[भारत]] से | ||
||श्रेणी समाजवाद का उदय 20 वीं सदी में प्रारंभ इंग्लैंड में हुआ यह मूलत: फेवियन आंदोलन की ही एक शाखा थी। इसे गिल्ड समाजवाद भी कहा जाता है। इसे | ||श्रेणी समाजवाद का उदय 20 वीं सदी में प्रारंभ [[इंग्लैंड]] में हुआ यह मूलत: फेवियन आंदोलन की ही एक शाखा थी। इसे गिल्ड समाजवाद भी कहा जाता है। इसे [[फ़्रांस]] के श्रम संघवाद तथा ब्रिटेन के फेबियनवाद का विचित्र मिश्रण कहा जा सकता है। यह स्पष्टत: मार्क्सवाद का विरोधी है। यह [[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] के सभी प्रमुख सिद्धांतों- इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या, वर्ग संघर्ष, मूल्य का श्रम सिद्धांत, सर्वहारा का अधिनायकवाद, राज्य का लोप का विरोधी है। यह शांतिपूर्ण एवं संवैधानिक तरीकों में विश्वास करता है। ए.जे. पेटी ए.आर. ऑरेंज तथा एस.जी. हॉब्स इसके प्रमुख विचारक हैं। | ||
{निम्न में से कौन [[राज्य]] का आवश्यक अंग नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-14,प्रश्न-55 | {निम्न में से कौन [[राज्य]] का आवश्यक अंग नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-14,प्रश्न-55 | ||
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-भू-भाग | -भू-भाग | ||
+कानून | +कानून | ||
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{राजनीतिक यथार्थवाद के मुख्य प्रवक्ता के रूप में किया विचारक को जाना जाता है (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-74,प्रश्न-63 | |||
|type="()"} | |||
-जॉर्ज एफ, केनन | |||
+मॉरगेर्न्थाऊ | |||
-ट्रीटस्के | |||
-डेविड ईस्टन | |||
||राजनीति यथार्थवाद का मुख्य प्रवक्ता मॉरगेंथाऊ है। अपनी पुस्तक 'पॉलिटिक्स एमंग नेशंस' में मॉरगेंथाऊ ने शक्ति को अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का केंन्द्र बिंदु माना है। उसकी दृष्टि में शक्ति राष्ट्रहित का ही प्रतिबिंब है। मॉरगेंथाऊ ने यथार्थवाद को सैद्धांतिक आधार प्रदान किया है। | |||
{"स्वतंत्रता इसके अलवा और कुछ नहीं है कि इस इच्छा का प्रोत्साहित करना जो विनम्र व्यक्तियों के अनुदिष्ट अंत:करण पर आधारित हो" निम्नलिखित में से कौन-सा वाद इस वक्तव्य को मानता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-88,प्रश्न-31 | |||
|type="()"} | |||
+उदारवाद | |||
-समाजवाद | |||
-बहुलवाद | |||
-फॉसीवाद | |||
||"स्वतंत्रता इसके अलावा और कुछ नहीं है कि उस इच्छा की प्रोत्साहित करना जो विनम्र व्यक्तियों के अनुदिष्ट अंत:करण पर आधारित हो।" यह कथन स्वतंत्रता केए उदारवादी धारणा को अभिव्यक्त करता है। इसके अनुसार स्वतंत्रता की इच्छा व्यक्ति की स्वाभाविक प्रवृत्ति है, जिससे उसके सामाजिक जीवन का निर्माण होता है तथा यह व्यक्तित्व के विकास की प्राथमिक शर्त है। उदारवाद के अनुसार, राज्य साधन है तथा व्यक्ति साध्य, अत: राज्य को व्यक्ति की इच्छा को प्रोत्साहित करते हुए उसकी स्वतंत्रता में वृद्धि करनी चाहिए। | |||
{'गुटतंत्र के लौह नियम' का प्रतिपादन किसने किया? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-75,प्रश्न-74 | |||
|type="()"} | |||
+रॉबर्ट मिचेल्स ने | |||
-[[मैक्स वेबर]] ने | |||
-परेटो ने | |||
-मोस्का ने | |||
||रॉबर्ट मिचेल्स 20वीं सदी के प्रारंभ का जर्मन समाज वैज्ञानिक था। इसे राजनीतिक समाज विज्ञान का अग्रदूत माना जाता है। मोस्का, पैरेटो तथा [[मैक्स वेबर]] के साथ इसे विशिष्ट वर्गवाद का प्रर्वतक माना जाता है। मिचेल्स ने अपनी कृति 'पोलिटिकल पार्टीज' में अपना प्रमुख सिद्धांत 'गुटतंत्र का लौह नियम' प्रस्तुत किया। मिचेल्स की मान्यता है कि सभी संगठित समूह चाहे वे राज्य हो, राजनीतिक दल हो, मजदूर संघ हो, व्यवहार के धरातल पर गुटतंत्र का रूप धारण कर लेते हैं। अर्थात उनमें सारी शक्ति इन गिने नेताओं के हाथों में केंद्रित हो जाती है। चाहे उनका औपचारिक संविधान कैसा भी क्यों न हो। | |||
{[[भारत]] में केंद्र में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार का गठन कब हुआ था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-157,प्रश्न-119 | |||
|type="()"} | |||
-[[1968]] में | |||
-[[1971]] में | |||
+[[1977]] में | |||
-[[1979]] में | |||
||भूतपूर्व [[प्रधानमंत्री]] [[इंदिरा गांधी]] द्वारा लागू [[आपातकाल]] ([[1975]]-[[1976]]) के बाद जनसंघ सहित [[भारत]] के प्रमुख राजनैतिक दलों का विलय करके एक नए दल '[[जनता पार्टी]]' का गठन किया गया। जनता पार्टी ने वर्ष 1977 से 1980 तक [[भारत सरकार]] का नेतृत्व किया। इसके नेता [[मोरारजी देसाई]] थे। आंतरिक मतभेदों के कारण वर्ष [[1980]] में जनता पार्टी टूट गई। [[लोकसभा चुनाव]] [[2014]] के पूर्व डॉ. सुब्रमणियन स्वामी जनता पार्टी का विलय [[भारतीय जनता पार्टी]] में कर चुके हैं। | |||
{"अंतर्राष्ट्रीय राजनीति राष्ट्रों के बीच निरंतर होने वाले शक्ति संघर्ष के अतिरिक्त कुछ नहीं है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-77,प्रश्न-84 | |||
|type="()"} | |||
-जेम्स रोजनाऊ | |||
+मॉर्गेन्थाऊ | |||
-फेलिक्स ग्रास | |||
-थाम्पसन | |||
||हान्स जे. मार्गेन्थाऊ के शब्दों में "अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, राष्ट्रों के बीच निरंतर होने वाले शक्ति संघर्ष के अतिरिक्त कुछ नहीं है"। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का अंतिम लक्ष्य चाहे कुछ भी हो, शक्ति सदैव तात्कालिक उद्देश्य रखती है। मार्गेन्थाऊ को यथार्थवादी दृष्टिकोण का प्रमुख प्रवक्ता माना जाता है। | |||
{सर्वप्रथम किस मार्क्सवादी ने राष्ट्रवाद के अभिमत को स्वीकार किया था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-58,प्रश्न-44 | |||
|type="()"} | |||
-फिदेल कास्त्रो | |||
+स्टालिन | |||
-ग्राम्सी | |||
-काटस्की | |||
||जोसेफ स्टालिन ने मार्क्सवाद के अंतर्गत राष्ट्रवाद (Nationalism) का विचार प्रस्तुत किया। इसके पहेल [[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]], एंजिल्स व लेनिन का विचार अंतर्राष्ट्रीयतवाद (Internationalism) में विश्वास रखता था। लेकिन स्टालिन ऐसे प्रथम मार्क्सवादी विचारक व राजनेता था जिसने "एक देश में समाजवाद" का सिद्धांत प्रस्तुत किया। जिसके द्वारा क्रांति के अंतर्राष्ट्रीयतवाद की चाहत कम होती गई। | |||
{सिंडिकेलिस्ट समाजवाद में इनमें से किस पर अधिक जोर दिया गया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-61,प्रश्न-55 | |||
|type="()"} | |||
-असंगठित श्रमिकों और शांतिपूर्ण आंदोलन पर | |||
-सहकारिता और भूमिहीन श्रमिकों पर | |||
-कृषकों-श्रमिकों की एकता पर | |||
+श्रमिक संघ और व्यापक हड़ताल पर | |||
||सिंडिकेलिस्ट समाजवाद की कार्यपद्धतियों में आम हड़ताल, औद्योगिक तोड़फोड़, बहिष्कार, धीरे-धीरे काम करना, सुस्ती, लापरवाही तथा गलत लेबल लगाना प्रमुख हैं। ये अपनी कार्यपद्धति को सांकेतिक नाम ''केकेनी' देते हैं। | |||
{कौन-सा सिद्धांत मानता है कि अधिकार राज्य द्वारा निर्मित है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-90,प्रश्न-11 | |||
|type="()"} | |||
+कानूनी | |||
-प्राकृतिक | |||
-ऐतिहासिक | |||
-आदर्शवादी | |||
{शब्द 'फेडरेलिज्म', 'फोडम' (Foedus) से ग्रहण किया गया है। यह किस भाषा से लिया गया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-96,प्रश्न-1 | |||
|type="()"} | |||
-स्पेनिश | |||
+लैटिन | |||
-फ्रेंच | |||
-[[अंग्रेज़ी]] | |||
||'फेडरेलिज्म' शब्द लैटिन भाषा के 'फोडस' से ग्रहण किया गया है। | |||
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Revision as of 11:52, 17 November 2017
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