प्रयोग:कविता सा.-1: Difference between revisions
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{निम्नलिखित में से चित्रकला से क्या संबंधित नहीं है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-163,प्रश्न-40 | {निम्नलिखित में से [[चित्रकला]] से क्या संबंधित नहीं है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-163,प्रश्न-40 | ||
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-रूप | -रूप | ||
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-भाव | -भाव | ||
+लिपि | +लिपि | ||
||भारतीय चित्रकला में चार रूप भित्ति चित्र, चित्रपट, चित्रफलक एवं लद्यु चित्रांकन देखने को मिलते हैं। रूप, प्रमाण और भाव भारतीय चित्रकला के छ: अंगों (रूपभेद, प्रमाण, भाव, लावण्य योजना, सादृश्य एवं वर्णिका भंग) में से तीन अंग हैं और लिपि इससे संबंधित नहीं है, लिपि का संबंध लेखन कला से है। | ||भारतीय [[चित्रकला]] में चार रूप भित्ति चित्र, चित्रपट, चित्रफलक एवं लद्यु चित्रांकन देखने को मिलते हैं। रूप, प्रमाण और भाव भारतीय चित्रकला के छ: अंगों (रूपभेद, प्रमाण, भाव, लावण्य योजना, सादृश्य एवं वर्णिका भंग) में से तीन अंग हैं और लिपि इससे संबंधित नहीं है, लिपि का संबंध लेखन कला से है। | ||
{सूमी-ए क्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-171,प्रश्न-41 | {सूमी-ए क्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-171,प्रश्न-41 | ||
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-फारसी रंग | -फारसी रंग | ||
-ईरानी कला | -ईरानी कला | ||
||सूमी-ए, एक प्रकार का जापानी स्याही चित्रण है। सूखी स्याही एक विशेष प्रकार के पत्थर को पीस कर बनायी जाती थी फिर इससे ब्रश की सहायता से चित्र बनाए जाते हैं। 2000 वर्ष पूर्व जापान में ब्रश की सहायता से सूमी स्याही द्वारा जैन धर्म के चित्र बनते थे। | ||सूमी-ए, एक प्रकार का जापानी स्याही चित्रण है। सूखी स्याही एक विशेष प्रकार के पत्थर को पीस कर बनायी जाती थी फिर इससे ब्रश की सहायता से चित्र बनाए जाते हैं। 2000 वर्ष पूर्व जापान में ब्रश की सहायता से सूमी स्याही द्वारा [[जैन धर्म]] के चित्र बनते थे। | ||
{जैन लद्यु चित्रों की विशेषता है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-45,प्रश्न-34 | {जैन लद्यु चित्रों की विशेषता है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-45,प्रश्न-34 | ||
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||जैन लद्यु चित्रों में मानवाकृतियां सवा चश्म हैं और एक ही ढंग से बनी हुई हैं। इनकी नाक अनुपात में अधिक लबीं, नुकीली और परले गाल की सीमा रेखा से आगे निकली बनाई गई है। आंखें पास-पास और बड़ी बनाई गई हैं और उनकी रचना दो वक्रों के द्वारा की गई है। | ||जैन लद्यु चित्रों में मानवाकृतियां सवा चश्म हैं और एक ही ढंग से बनी हुई हैं। इनकी नाक अनुपात में अधिक लबीं, नुकीली और परले गाल की सीमा रेखा से आगे निकली बनाई गई है। आंखें पास-पास और बड़ी बनाई गई हैं और उनकी रचना दो वक्रों के द्वारा की गई है। | ||
{शांतिनिकेतन की स्थापना किसने की? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-85,प्रश्न-63 | {[[शांतिनिकेतन]] की स्थापना किसने की? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-85,प्रश्न-63 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -[[अवनीन्द्रनाथ टैगोर]] | ||
-मदन मोहन मालवीय | -[[मदन मोहन मालवीय]] | ||
+रबींद्रनाथ टैगोर | +[[रबींद्रनाथ टैगोर]] | ||
-गगनेन्द्रनाथ टैगोर | -[[गगनेन्द्रनाथ टैगोर]] | ||
||1862ई. में महर्षि देवेन्द्रनाथ टैगोर (रबीन्द्रनाथ टैगोर के पिता) जन नाव द्वारा [[रायपुर]] की यात्रा कर रहे थे। तो उस पार धान के हरे-भरे खेत और लाल मिट्टी की भू-दृश्य देखी। उन्होंने वहां और पौधे लगाने तथा एक छोता घर बनाने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने इस घर को [[शांतिनिकेतन]] नाम दिया। 1863 में यहां एक आश्रम की स्थापना की जो 'ब्रह्मो समाज' का प्रेरक बना। 1901 में रबीन्द्रनाथ ने शांतिनिकेतन में एक स्कूल की स्थापना 'ब्रह्मचारी आश्रम' के नाम से एक मॉडल स्कूल की स्थापना की जो प्राचीन गुरुकुल पद्धति की तरह था, बाद में इसे 'पठा भवर' के नाम से जाना गया। | |||
|| | {किस भारतीय कलाकार के चित्रों की प्रतिलिपो अधिकांश घरों में पाई जाती थी? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-92,प्रश्न-20 | ||
|type="()"} | |||
-[[नंदलाल बोस]] | |||
-क्षितीन्द्रनाथ मजूमदार | |||
-[[अमृता शेरगिल]] | |||
+[[राजा रवि वर्मा]] | |||
||[[राजा रवि वर्मा]] के चित्रों की प्रतिलिपियां अधिकांश घरों में पाई जाती थीं। | |||
{'[[महात्मा बुद्ध]] का गृह-त्याग' [[अजंता]] की किस संख्यक गुफ़ा में चित्रित है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-30,प्रश्न-11 | |||
|type="()"} | |||
+16वीं | |||
-14वीं | |||
-17वीं | |||
-1 (पहली) | |||
||'[[महात्मा बुद्ध]] का गृह-त्याग '[[अजंता की गुफा|अजंता की गुफ़ा]] सं. 16 में चित्रित है। | |||
{'अप्सरा' नामक चित्र [[अजंता की गुफा|अजंता]] की किस गुफा में है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-30,प्रश्न-12 | |||
|type="()"} | |||
-गुफा नं.10 | |||
-गुफा नं.15 | |||
+गुफा नं.17 | |||
-गुफा नं.18 | |||
||'अप्सरा' नामक चित्र [[अजंता की गुफा|अजंता की गुफ़ा]] संख्या 17 है। | |||
{[[राजा रवि वर्मा]] ने [[भारत]] में सर्वप्रथम स्थापित किया- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-92,प्रश्न-19 | |||
|type="()"} | |||
-आर्ट स्कूल | |||
+ओलियोग्राफी प्रेस | |||
-आर्ट गैलरी | |||
-आर्ट स्टूडियो | |||
||[[राजा रवि वर्मा]] ने सन् 1884 में ओलियोग्राफी प्रेस खोली। इसे 'लोथोग्राफी प्रेस' के नाम से जाना जाता था। इन्होंने बड़ी मात्रा में प्रेस से प्रौराणिक चित्रों की प्रतियां निकाली जिन्हें 'ओलियोग्राफ कहा जाता है। | |||
{[[अजंता |अजंता]] में कितने प्रकार की गुफाएं हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-32,प्रश्न-24 | |||
|type="()"} | |||
+दो | |||
-तीन | |||
-चार | |||
-उनतीस | |||
||अजंता में दो प्रकार की गुफ़ाएं हैं। अजंता गुफ़ा अभयारण्य (आच्छादित पर्वतमाला) और बिहार (मठों) में बंटी है। [[अजंता की गुफाएं|अजंता की गुफ़ाएं]] बौद्ध धर्म से संबंधित हैं। | |||
{बंधक प्रयुक्त किया जाता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-173,प्रश्न-57 | |||
|type="()"} | |||
-तैल चित्रण में | |||
-पेस्टिल चित्रण में | |||
-वॉश चित्रण में | |||
+बाटिक चित्रण में | |||
||मोम का प्रयोग कर बाटिक विधि से चित्रण कार्य किया जाता है। बाटिक चित्रण एक प्राचीन कला है। इस चित्रण में पहले कपड़े पर पिघले मोम से आकृति बनाई जाती है। शेष हिस्सों को लाख के [[रंग|रंगों]] से रंजित करने के बाद मोम द्वारा हटाया जाता है। इसे 'बंधक' कहा जाता है। | |||
{सेरीग्राफ किसका तकनीकी नाम है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-173,प्रश्न-59 | |||
|type="()"} | |||
+सिल्क स्क्रीन प्रिंटिंग | |||
-वुड कट प्रिंटिंग | |||
-इंटैग्लियो प्रिंटिंश | |||
-लीथोग्राफ | |||
||बोल्टिंग क्लोथ का उपयोग 'सिल्क स्क्रीन छपाई' की प्रक्रिया में किया जाता है यह स्क्रीन प्रिंट या सेरीग्राफ स्क्रीन के माध्यम से स्याही डालकर किया गया प्रिंट है। यह एक स्टेंसिल तकनीक है। 20वीं शताब्दी में यूरोप में स्क्रीन तथा 'बोल्टिंग कलॉथ' को वाहक के रूप में उपयोग करके स्क्रीन प्रिंटिंग का काम किया जाता था। वर्तमान समय में नायलॉन और पॉलिएस्टर को स्क्रीन प्रिंटर्स के लिए मोनोफिलामेंट पदार्थ के रूप में सिल्क से ज्यादा महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है? | |||
Revision as of 12:00, 9 January 2018
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