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'''बह्वृची''' पाणिनिकालीन भारतवर्ष में ब्रह्मचारिणी कन्याओं के लिए प्रयुक्त होने वाली संज्ञा थी।
'''बह्वृची''' पाणिनिकालीन भारतवर्ष में ब्रह्मचारिणी कन्याओं के लिए प्रयुक्त होने वाली संज्ञा थी।


*बह्वृच नामक [[ऋग्वेद]] के चरण में अध्ययन करने वाली ब्रह्मचारिणी कन्याएं '''बह्वृची''' संज्ञा की अधिकारिणी थीं। इससे ज्ञात होता है कि चरणों में जो मान मर्यादा छात्रों को होती थी, वही छात्राओं के लिए भी थी। अन्य उदाहरण सूचित करते हैं कि [[मीमांसा]] और व्याकरण शास्त्र जैसे जटिल विषयों का अध्ययन भी स्त्रियां करती थीं।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पाणिनीकालीन भारत|लेखक=वासुदेवशरण अग्रवाल|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी-1|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=102|url=}}</ref>
*बह्वृच नामक [[ऋग्वेद]] के चरण में अध्ययन करने वाली ब्रह्मचारिणी कन्याएं '''बह्वृची''' संज्ञा की अधिकारिणी थीं। इससे ज्ञात होता है कि चरणों में जो मान मर्यादा छात्रों को होती थी, वही छात्राओं के लिए भी थी। अन्य उदाहरण सूचित करते हैं कि [[मीमांसा दर्शन|मीमांसा]] और व्याकरण शास्त्र जैसे जटिल विषयों का अध्ययन भी स्त्रियां करती थीं।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पाणिनीकालीन भारत|लेखक=वासुदेवशरण अग्रवाल|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी-1|संकलन= भारतकोश पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=102|url=}}</ref>





Revision as of 07:40, 10 April 2018

बह्वृची पाणिनिकालीन भारतवर्ष में ब्रह्मचारिणी कन्याओं के लिए प्रयुक्त होने वाली संज्ञा थी।

  • बह्वृच नामक ऋग्वेद के चरण में अध्ययन करने वाली ब्रह्मचारिणी कन्याएं बह्वृची संज्ञा की अधिकारिणी थीं। इससे ज्ञात होता है कि चरणों में जो मान मर्यादा छात्रों को होती थी, वही छात्राओं के लिए भी थी। अन्य उदाहरण सूचित करते हैं कि मीमांसा और व्याकरण शास्त्र जैसे जटिल विषयों का अध्ययन भी स्त्रियां करती थीं।[1]


  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पाणिनीकालीन भारत |लेखक: वासुदेवशरण अग्रवाल |प्रकाशक: चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी-1 |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 102 |

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