एन. वी. रमण: Difference between revisions
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==परिचय== | ==परिचय== |
Revision as of 09:11, 19 August 2022
एन. वी. रमण
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पूरा नाम | नूतलपाटि वेंकटरमण |
जन्म | 27 अगस्त, 1957 |
जन्म भूमि | पोन्नवरम गांव, ज़िला कृष्णा, आंध्र प्रदेश |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | भारतीय न्यायपालिका |
प्रसिद्धि | 48वें मुख्य न्यायाधीश, भारत |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | एन. वी. रमण 27 जून 2000 से 1 सितंबर 2013 तक आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में जज रहे। आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के एक्टिंग जज रह चुके हैं। |
अद्यतन | 14:41, 19 अगस्त 2022 (IST)
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नूतलपाटि वेंकटरमण (अंग्रेज़ी: Nuthalapati Venkata Ramana, जन्म- 27 अगस्त, 1957) भारत के मुख्य न्यायाधीश हैं। उन्होंने देश के 48वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ले ली है। एन. वी. रमण का कार्यकाल 26 अगस्त, 2022 तक होगा। 17 फरवरी, 2014 को सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नति से पहले वह दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थे। न्यायमूर्ति एन. वी. रमण सर्वोच्च न्यायालय के मुख्न्याय यधीश हैं। वे 8 साल से सर्वोच्च न्यायालय में कार्य कर रहे हैं। उन्होंने 24 अप्रैल, 2021 को भारत के मुख्य न्यायधीश का पद संभाला था।
परिचय
एन. वी. रमण का जन्म 27 अगस्त, 1957 को आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले के पोन्नवरम गांव में हुआ था। परिवार खेती-किसानी से जुड़ा था। एन. वी. रमण ने बीएससी और लॉ की डिग्री ली है। 10 फरवरी, 1983 को उन्होंने वकालत शुरू की। वह करीब 38 साल से कानून और न्याय के क्षेत्र में अलग-अलग भूमिका निभा रहे हैं।[1]
कार्यकाल
एन. वी. रमण आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट, सेंट्रल और आंध्र प्रदेश एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट में भी प्रैक्टिस कर चुके हैं। कॉन्स्टिट्यूशनल, क्रिमिनल, सर्विस और इंटर-स्टेट रिवर लॉ में उनका स्पेशलाइजेशन है। उन्होंने विभिन्न सरकारी संगठनों के लिए पैनल वकील के रूप में भी काम किया है। एन. वी. रमण ने केंद्र सरकार के लिए अतिरिक्त स्थायी वकील और हैदराबाद में सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल में रेलवे के लिए स्थायी वकील के रूप में कार्य किया है। आंध्र प्रदेश के अतिरिक्त महाधिवक्ता के रूप में सेवाएं दी हैं।
एन. वी. रमण 27 जून 2000 से 1 सितंबर 2013 तक आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में जज रहे। आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के एक्टिंग जज रह चुके हैं। 2 सितंबर 2013 से 16 फरवरी 2014 तक दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे। उन्होंने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भाग लिया। भारत और विदेशों में आयोजित कानूनी महत्व के विभिन्न विषयों पर पेपर प्रस्तुत किए। 17 फरवरी, 2014 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया।[1]
महत्त्वपूर्ण निर्णय
जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त किए जाने के बाद इंटरनेट प्रतिबंध से जुड़े अनुराधा भसीन मामले में न्यायमूर्ति रमण द्वारा लिखे गए फैसले की अनेक लोगों ने सराहना की थी और इसे प्रगतिशील निर्णयों में से एक करार दिया था। न्यायमूर्ति रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और इंटरनेट पर कारोबार करना संविधान के तहत संरक्षित है।[2] पीठ ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन को प्रतिबंध के आदेशों की तत्काल समीक्षा करने का निर्देश दिया था। उनकी अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को रद्द करने के केंद्र सरकार के फैसले की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को सात न्यायाधीशों की वृहद पीठ को भेजने से इनकार कर दिया था।
एन. वी. रमण पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का हिस्सा थे जिसने नवम्बर 2019 में कहा था कि प्रधान न्यायाधीश का पद सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण है। नवंबर 2019 के फैसले में, शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि "जनहित" में सूचनाओं को उजागर करते हुए "न्यायिक स्वतंत्रता को भी ध्यान में रखना होगा।" वह शीर्ष अदालत की पांच न्यायाधीशों वाली उस संविधान पीठ का भी हिस्सा थे जिसने 2016 में अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार को बहाल करने का आदेश दिया था। नवंबर 2019 में उनकी अगुवाई वाली पीठ ने महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेन्द्र फणनवीस को सदन में बहुमत साबित करने के लिए शक्ति परीक्षण का आदेश दिया था और कहा था कि मामले में विलंब होने पर खरीद फरोख्त की संभावना है।
न्यायमूर्ति एन. वी. रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने उस याचिका पर भी सुनवाई की थी जिसमें पूर्व एवं मौजूदा विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के निस्तारण में बहुत देरी का मुद्दा उठाया गया था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 कौन हैं एनवी रमन्ना (हिंदी) thelallantop.com। अभिगमन तिथि: 19 मार्च, 2022।
- ↑ देश के 48वें प्रधान न्यायाधीश बने एन वी रमण (हिंदी) economictimes.indiatimes.com। अभिगमन तिथि: 19 मार्च, 2022।