आरण्यक साहित्य: Difference between revisions

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[[ब्राह्मण ग्रन्थ]] के जो भाग अरण्य में पठनीय हैं, उन्हें 'आरण्यक' कहा गया या यों कहें कि [[वेद]] का वह भाग, जिसमें यज्ञानुष्ठान-पद्धति, याज्ञिक मन्त्र, पदार्थ एवं फलादि में आध्यात्मिकता का संकेत दिया गया, वे 'आरण्यक' हैं। जो मनुष्य को आध्यात्मिक बोध की ओर झुका कर सांसारिक बंधनों से ऊपर उठते हैं। (वानप्रस्थाश्रम में संसार-त्याग के उपरांत अरण्य में अध्ययन होने के कारण भी इन्हें 'आरण्यक' कहा गया।) चारों वेदों के आरण्यकों के नाम हैं-
[[ब्राह्मण ग्रन्थ]] के जो भाग अरण्य में पठनीय हैं, उन्हें 'आरण्यक' कहा गया या यों कहें कि [[वेद]] का वह भाग, जिसमें यज्ञानुष्ठान-पद्धति, याज्ञिक मन्त्र, पदार्थ एवं फलादि में आध्यात्मिकता का संकेत दिया गया, वे 'आरण्यक' हैं। जो मनुष्य को आध्यात्मिक बोध की ओर झुका कर सांसारिक बंधनों से ऊपर उठते हैं। (वानप्रस्थाश्रम में संसार-त्याग के उपरांत अरण्य में अध्ययन होने के कारण भी इन्हें 'आरण्यक' कहा गया।) चारों वेदों के आरण्यकों के नाम हैं-
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*कृष्ण यजुर्वेद (तैत्तिरीय आरण्यक); [[सामवेद]]  
*कृष्ण यजुर्वेद (तैत्तिरीय आरण्यक); [[सामवेद]]  
*(तलवकार या जैमिनीयोपनिषद)।
*(तलवकार या जैमिनीयोपनिषद)।
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Revision as of 13:07, 31 March 2010

आरण्यक / Aranyak

ब्राह्मण ग्रन्थ के जो भाग अरण्य में पठनीय हैं, उन्हें 'आरण्यक' कहा गया या यों कहें कि वेद का वह भाग, जिसमें यज्ञानुष्ठान-पद्धति, याज्ञिक मन्त्र, पदार्थ एवं फलादि में आध्यात्मिकता का संकेत दिया गया, वे 'आरण्यक' हैं। जो मनुष्य को आध्यात्मिक बोध की ओर झुका कर सांसारिक बंधनों से ऊपर उठते हैं। (वानप्रस्थाश्रम में संसार-त्याग के उपरांत अरण्य में अध्ययन होने के कारण भी इन्हें 'आरण्यक' कहा गया।) चारों वेदों के आरण्यकों के नाम हैं-

  • ॠग्वेद (ऐतरेय, शाखांयन आरण्यक);
  • शुक्ल यजुर्वेद (शतपथ ब्राह्मण के माध्यंदिन शाखा का 14वां काण्ड एवं काण्वशाखा का 17वां काण्ड);
  • कृष्ण यजुर्वेद (तैत्तिरीय आरण्यक); सामवेद
  • (तलवकार या जैमिनीयोपनिषद)।